निबंध-- ' भृष्टाचार : कारण समस्या एवं समाधान '(आसान भाषा में ) ESSAY ON CORRUPTION IN HINDI


'भृष्टाचार : कारण समस्या एवं समाधान ' से सम्बंधित  निबंध  एवं  प्रश्न  लगभग  सभी परीक्षाओ  में  पूछे  जाते है ,यह टॉपिक MPPSC &  UPSC में निबंध तथा  ETHICS  के PAPER  में  प्रमुखता  से सम्मिलित  किया गया है,

ESSAY ON CORRUPTION IN HINDI





रुपरेखा 
*भ्रष्टाचार का अर्थ :--
*भ्रष्टाचार के प्रकार:--1. कानून संगत भ्रष्टाचार2. कानून विरोधी भ्रष्टाचार
*भ्रष्टाचार के कारण1. उपभोक्तावाद2. केंद्रीयकरण3. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था4. कम वेतन5. पारंपरिक मान्यताएं6. असमानता
* भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव1. राजनीतिक दुष्प्रभाव2. आर्थिक दुष्परिणाम3.  सामाजिक दुष्प्रभाव4. पर्यावरणीय दुष्प्रभाव
* भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय1. समूह निर्माण2. क्रमिक सुधार3. सशक्तिकरण4. कड़े कानूनों का निर्माण 5. सामाजिक उपाय6. विभिन्न  संगठनों की स्थापना 7. परिवार की भूमिका8.  विसलब्लोअर9. सूचना तंत्र का विकास

*भ्रष्टाचार का अर्थ:-

- भ्रष्टाचार का सामान्य अर्थ होता है, भ्रष्ट या गलत आचरण अर्थात किसी शासकीय पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा निजी लाभ और हानि के दृष्टिकोण से उसे प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग ही भ्रष्टाचार है इसका सबसे प्रत्यक्ष रूप रिश्वत लेना है¡

* भ्रष्टाचार के प्रकार:--

1. कानून संगत भ्रष्टाचार:-- ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार भ्रष्टाचार के संबंध में महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें हमेशा कानून का उल्लंघन हो यह आवश्यक नहीं है, अर्थात भ्रष्टाचार कानून संगत या नियम संगत भी हो सकता है जैसे कहीं बाहर कानून या नियम संगत कार्य अति तीव्रता पुरवइया बिना बारी के करवाने के लिए भी भ्रष्टाचार किया जाता है । ऐसा भ्रष्टाचार कानून संगत भ्रष्टाचार माना जाता है क्योंकि इस प्रकार की भ्रष्टाचार में न तो किसी नियम का उल्लंघन होता है, ना ही नियम कानून को  शिथील किया जाता है।
2. कानून विरोधी भ्रष्टाचार:-- ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल अनुसार प्रशासकों के जिन कार्यों से नियमों का उल्लंघन होता है, सामान्यतः इस प्रकार का भ्रष्टाचार अधिक पाया जाता है , इस प्रकार के भ्रष्टाचार में खुलकर नियमो अवहेलना की जाति और रिश्वत लेकर योग्य लोगों की उपेक्षा करके अयोग्य लोगों को लाभ पहुंचाया जाता है। और निजी लाभ के लिए प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग भी किया जाता है।
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*भ्रष्टाचार  उत्पन्न होने  / फैलने के कारक:--

1. उपभोक्तावाद:- भ्रष्टाचार के लिए वर्तमान जीवन शैली बहुत हद तक उत्तरदाई है क्योंकि वर्तमान में सरल और सादगी पूर्ण जीवनशैली की बजाए भोग और दिखावे वाली जीवनशैली का ज्यादा प्रसार है , जो भ्रष्टाचार के उद्भव हेतु उत्तरदाई हैं।
2. केंद्रीकरण:- आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था का केंद्रीकरण भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है।
       लॉर्ड एक्टन के अनुसार , " सत्ता भ्रष्ट करते हैं और संपूर्ण सकता संपूर्ण पृष्ठ करती हैं " इसलिए केंद्रीकृत राजनीतिक व्यवस्था ने भ्रष्टाचार ज्यादा होता है।
3. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था:- मुनाफे के चलने वाली अर्थव्यवस्था पूंजीवाद है,  चूंकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में उन क्षेत्रों में भी लाभ अर्जित करने का प्रयास किया जाता है जहां मुनाफा कमाना उचित नहीं होता है जैसे अगर आर्थिक क्षेत्र में मुनाफा कमाना सही है किंतु इसी मुनाफे के सिद्धांत को सामाजिक, स्वास्थ्य, धार्मिक आदि क्षेत्रों में लागू किया जाए तो यह केवल भ्रष्टाचार को जन्म देगा।
4. कम वेतन:- सामान्यतः यह देखा गया है कि भ्रष्टाचार का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक धन कमाना होता है अतः किसी व्यक्ति का वेतन कम होता है जिसमें वह अपनी जरूरी आवश्यकताएं पूरी नहीं कर पाता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचार की और नमक होता है।
   जे आर डी टाटा के अनुसार,  " अगर किसी व्यक्ति का पद ज्यादा बड़ा है और वेतन तुलनात्मक रूप से कम है तो व्यक्ति अवसर मिलने पर अवश्य ही भ्रष्टाचार करेगा "
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5. पारंपरिक मान्यताएं:- पारंपरिक मान्यताएं भी भ्रष्टाचार की उद्भव का एक प्रमुख कारण है।
     गुन्नार मिडल के अनुसार, " भ्रष्टाचार का संबंध इस बात से ही की किसी देश के निवासी इसके प्रति प्रतिबद्धता रखते हैं समाज के प्रति, परिवार के प्रति, धर्म के प्रति या देश के प्रति" भारत जैसे देश में परिवार और समाज के प्रति प्रतिबद्धता का स्तर ज्यादा होता है जिसके कारण भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है क्योंकि कई बार व्यक्ति को ना चाहते हुए भी ऐसे कार्य करने पड़ते है जो नियमों के अनुकूल नहीं होते हैं जिससे भ्रष्टाचार उत्पन्न होता है। क्योंकि भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली मैं ऐसे गुण से खिलाए जाते हैं कि व्यक्ति के लिए परिवार व रिश्तेदार अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं अतः जब कभी  इनसे संबंधित कोई कार्य करना पड़ता है तो उसने ना चाहते हुए भी नियमों को शिथिल करना पड़ता और आवश्यकता पड़ने पर इन नियमों का उल्लंघन भी करना पड़ता है। ताकि सामाजिक व पारिवारिक स्थिति में गिरावट ना हो।
6. असमानता:- समाज में अवयव तथा जीवन स्तर में व्याप्त और समानता भ्रष्टाचार को जन्म देती है समाज का एक व्यक्ति स्तरीकरण में अपनी स्थिति उच्च रखना चाहता है  निम्न उत्तर का व्यक्ति मध्यमवर्ग मैं आना चाहता है और मध्यम इस पर का व्यक्ति उच्च स्तर में आना चाहता है। परिणाम स्वरूप इनके द्वारा कम समय में अधिक धन कमाने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग किया जाता है, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव/ परिणाम 

1. राजनीतिक दुष्प्रभाव:- राजनीतिक मोर्चे पर भ्रष्टाचार कानून के शासन व लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी बाधा है। लोकतंत्र में संस्थाएं एवं सार्वजनिक पद निजी लाभ के लिए प्रयुक्त नहीं किए जा सकते हैं किंतु भ्रष्टाचार के कारण लोकतंत्र में संस्थाएं एवं पद निजी लाभ के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। परिणाम स्वरूप लोकतांत्रिक संस्थाएं भी अपनी वैधता खो देती हैं और भ्रष्ट माहौल में उत्तरदाई राजनीतिक नेतृत्व विकसित नहीं हो पाता है।
     भारत जैसे देशों में भ्रष्टाचार से राजनीति के अपराधीकरण और चुनाव लड़ने की उच्च लागत जैसी समस्याएं पैदा हुई है इससे भारतीय लोकतंत्र के " कुछ लोगों का कुछ लोगों के लिए " बन जाने का खतरा सामने आया है। क्योंकि अब भारतीय लोकतंत्र अपराधी तंत्र और धनिक तंत्र की तरफ तेजी से अग्रसर हो रहा है।
2. आर्थिक दुष्प्रभाव:- आर्थिक मोर्चे पर भ्रष्टाचार आर्थिक विकास को कम करता है सामान्यतः भ्रष्टाचार के कारण राष्ट्रीय आय में कमी तथा संसाधनों का दुरुपयोग जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं।
     भ्रष्टाचार स्वस्थ आर्थिक प्रतियोगिता को कम करता है और बाजार में निष्पक्षता को गलत तरीके से प्रभावित करता है भ्रष्टाचार के कारण ऐसी कंपनियों को वरीयता दे दी जाती है जो बाजार पर एकाधिकार स्थापित करके अपनी मनमानी कीमत उपभोक्ताओं से वसूलती है जिससे जनता का आर्थिक विकास बाधित होता है।
     भ्रष्टाचार विकासशील समाज में उच्च मुद्रास्फीति का एक प्रमुख कारण है साथ ही साथ भ्रष्टाचार की चलते राष्ट्रीय आय में भी कमी होती है क्योंकि यह देखने में आता है कि जिन राष्ट्रों में भ्रष्टाचार का स्तर ज्यादा होता है वे अपनी राष्ट्रीय आय व आर्थिक क्रियाओं के हिसाब से कम कर एकत्रित कर पाते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार के कारण कर की चोरी करने वाले लोगों को संरक्षण प्राप्त हो जाता है।
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3. सामाजिक दुष्प्रभाव:- भ्रष्टाचार का सर्वाधिक दुष्प्रभाव सामाजिक संरचना पर पड़ता है भ्रष्टाचार के कारण लोगों के उत्साह में कमी आती है परिणाम स्वरूप नागरिक समाज कमजोर हो जाता है जिसके कारण आंदोलन और हड़ताल आदि होती है तथा सामाजिक संरचना प्रभावित होती है।
        " ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल "की रिपोर्ट के अनुसार भ्रष्टाचार का सर्वाधिक प्रभाव गरीब जनता पर पड़ता है जिसकी कोई सिफारिश नहीं होती है और ना ही कोई सुनवाई। भ्रष्टाचार गरीब को और अधिक गरीब बना देता है।
            सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति में व्यापक रूप से भ्रष्टाचार के फैले होने के कारण देश में गरीबी बनी हुई है। अतः भ्रष्टाचार के कारण सामाजिक कल्याण के कार्यों में बाधा पहुंचती है इसलिए भ्रष्टाचार को केवल आर्थिक समस्या ना मानकर एक सामाजिक समस्या माना है।
4. पर्यावरणीय दुष्प्रभाव:- भ्रष्टाचार के कारण पर्यावरणीय समस्या व संकट बने रहते हैं भ्रष्टाचार के कारण पर्यावरणीय मानकों व नियमों की अनदेखी की जाती है जिसके कारण वनों व जैव विविधता का हाथ होता है नदियां प्रदूषित होती है पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ता है सामान्यतः यह देखा जाता है कि लाभ हेतु पर्यावरणीय मानकों को ना केवल शिथिल किया जाता है बल्कि उन को तोड़कर ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी जाती है जिसके कारण पर्यावरण को बहुत भारी नुकसान होता है।
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*भ्रष्टाचार की रोकथाम के उपाय**

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1. समूह निर्माण:- भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सरकार के प्रतिनिधियों श्रमिक वर्ग व्यापारिक वर्ग एवं नागरिक समाज के विभिन्न प्रकार की समूह का निर्माण करने की आवश्यकता है जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध निरंतर माहौल बनाए ताकि भ्रष्टाचारियों पर निरंतर दबाव बना

रहे ।
2. चरणबद्ध क्रमिक सुधार:- भ्रष्टाचार को भी एक बार में समाप्त नहीं किया जा सकता है एक बार में किसी भ्रष्टाचारी को दंडित किया जा सकता है परंतु उस विभाग को भ्रष्टाचार से मुक्ति नहीं बनाया जा सकता है अतः भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए अलग-अलग चरणों में प्रयास करनी होंगे जैसे सर्वप्रथम कार्यों में पारदर्शिता लाना इसके उपरांत सिटीजन चार्टर का निर्माण और कानूनों का निर्माण करना अन्य फिर इन कानूनों के साथ सख्ती बरतना।
3. सशक्तिकरण:- भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए जनता को सशक्त करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि यही जनता सशक्त नहीं होगी तो लोक सेवकों पर दबाव नहीं रहेगा और वह निरंकुश हो जाएंगे।
         महात्मा गांधी भी जनता को सशक्त बनाने की प्रबल समर्थक थे उनका मानना था कि " स्वराज मुट्ठी भर लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्ति करके नहीं आएगा बल्कि सत्ता का दुरुपयोग किए जाने की दशा में उनका प्रतिरोध करने की जनता में सामर्थ्य विकसित करने से आएगा "
                भ्रष्टाचार सत्ता का दुरुपयोग है एवं इस दुरुपयोग को रोकने के लिए अधिकारों के प्रयोग करने वाले पर नियंत्रण रख सकें।
4. कड़े कानूनों का निर्माण:- भ्रष्टाचार की समस्या का सबसे जटिल पहलू यह है कि इसे कानून की सीमा में बांधना मुश्किल है अर्थात किसी अपराध के लिए क्या दंड दिया जाए इसका निर्धारण करना कठिन है लेकिन सिंगापुर जैसे देशों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कानूनों का निर्माण करके भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास काफी हद तक सफल रहा है। किंतु भारत में भ्रष्टाचार के संबंध में कड़े कानूनों का अभाव तथा भारत में भ्रष्टाचार निवारण हेतु कड़े कानूनों का निर्माण एवं उन्हें सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
5. विभिन्न संगठनों की स्थापना -इसको  रोकने के लिए विभिन्न प्रकार की संवैधानिक एवं वैधानिक संगठनों की स्थापना की जानी चाहिए तथा इन्हें सहायता होनी चाहिए साथ ही इन्हें शक्ति संपन्न बनाया जाए ताकि भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाना संभव हो सके।
              भारत में केंद्रीय सतर्कता आयोग व केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो तथा कुछ राज्यों में लोकायुक्त व केंद्र में लोकपाल जैसे संगठन अवश्य है किंतु इनके पास इतनी शक्तियां नहीं है कि यह पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सके अतः आवश्यकता इस बात की है कि न केवल नवीन संगठनों की स्थापना की जाए अपितु पहले से स्थापित संगठनों को और अधिक शक्ति संपन्न बनाया जाए।
6. सामाजिक उपाय:- यह देखा जाता है कि समाज में जिस प्रकार की मूल्य मानक प्रचलित है। शासकीय अधिकारियों द्वारा उन्हीं मानकों के अनुरूप कार्य किया जाता है।
       भ्रष्टाचार निवारण के लिए समाज एक महत्वपूर्ण अभिकरण है समाज के द्वारा सामाजिक नियंत्रण की औपचारिक साधनों के माध्यम से जैसे भ्रष्टाचारियों को स्वीकार करने की घातक प्रवृत्ति समाज में बढ़ रही है इस प्रवृत्ति को समाप्त करके ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है।
7. परिवार की भूमिका:- परिवार सामाजिकरण का एक प्रमुख अभिकरण ही परिवार में ही बच्चे को समाज की मूल्य मानक से खिलाए जाते हैं और इन्हीं मूल्य मानकों को आत्मसात करके बच्चा सामाजिक प्राणी बनता है। अतः परिवार में जिस प्रकार की मुरली से खिलाए जाते ही व्यक्ति उन्हीं के अनुसार ही कार्य करता है।
          पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का मानना था कि " भ्रष्टाचार की समस्या का रोकथाम परिवार नामक सामाजिक संस्था ही कर सकती है अगर परिवार के जन दोस्त लोग सेवकों को अपनी मौन स्वीकृति प्रदान करना बंद कर दे तो काफी हद तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। " साथ ही यह प्रयास भी किया जाना चाहिए कि यदि कोई लोकसेवक भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो उसके परिवारजनों को भी समान दोषी मानकर दंड दिया जाना चाहिए। ऐसा करने से परिवार जन भ्रष्टाचारियों को रोकेंगे परिणाम स्वरूप भ्रष्टाचार में कमी आएगी।

8. विसलब्लोअर एक्ट:-

 विसलब्लोअर्स से आशय भ्रष्टाचार की प्रथम सूचना देने वाले व्यक्ति से हैं अर्थात ऐसा व्यक्ति जो सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार की जानकारी देता है यह व्यक्ति विभाग का कर्मचारी या कोई बाहरी व्यक्ति भी हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों को और अधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिए किंतु सबसे बड़ी समस्या विसलब्लोअर्स के उत्पीड़न और उनकी हत्या की घटना से है इसके लिए सरकार के द्वारा "विसलब्लोअर प्रोटक्शन एक्ट 2011" का निर्माण किया गया जो 2014 से प्रभावि हो चुका है आवश्यकता इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने की है।
9. सूचना तंत्र:- भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सूचना तंत्र का विकास एक प्रभावी उपाय ही अगर प्रशासन में एक प्रभावी सूचना तंत्र विकसित कर दिया जाए तो कार्यों में पारदर्शिता आएगी और पारदर्शिता के परिणाम स्वरूप लोक सेवकों पर दबाव निर्मित होगा और वे भ्रष्टाचार से दूरी बनाएंगे।
     भारत में सूचना तंत्र के विकास का प्रथम प्रयास सिटीजन चार्टर के रूप में किया गया सिटीजन चार्टर ऐसे घोषणा पत्र होते हैं जिनमें विभिन्न विभागों से क्रियाकलापों अधिकारियों कार्य में लगने वाले शुल्क व समय सीमा शिकायतकर्ता अधिकारी का नाम आदि जानकारियां होती हैं तथा इन्हें संबंधित कार्यालयों की दीवारों पर लिखा जाता है ताकि आम जनता को यह आसानी से पता लग सके कि इन सूचनाओं के आधार पर आम आदमी संबंधित विभाग के कर्मचारियों पर दबाव बना सकता है और अपने कार्यों को सही तरीके व समय सीमा में करवाकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सकते हैं।
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               सूचना तंत्र को विकसित करने का दूसरा प्रमुख प्रयास " ई गवर्नेंस " के रूप में दिखाई देता है इसमें शासकीय कार्यों को अधिकांश मात्रा में तकनीकी माध्यम से कंप्यूटराइज करके किया जा रहा है परिणाम स्वरूप अब प्रौद्योगिकी की जानकारी रखने वाले लोग आसानी से अपने सभी  जरुरी  कार्य संपन्न कर सकते।


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