राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक संवैधानिक तथा सांविधिक संस्थाएं -MPPSC ,
NATIONAL AND REGIONAL CONSTITUTIONAL AND STATUTORY BODIES - MPPSC ,
aayog se sambandhit question mppsc pre exam in hindi
➤भारत निर्वाचन आयोग
➤राज्य निर्वाचन आयोग
➤संघ लोक सेवाआयोग
➤मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग
➤नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
➤नीति आयोग
➤मानवाधिकार आयोग
➤बाल संरक्षण आयोग
➤अनुसूचित जाति एवं
➤अनुसूचित जनजाति आयोग
➤पिछड़ा वर्ग आयोग
➤सूचना आयोग
➤सतर्कता आयोग
➤राष्ट्रीय हरित अधिकरण
➤खाद्य संरक्षण आयोग।
राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक संवैधानिक तथा सांविधिक संस्थाएं -MPPSC
➤राज्य निर्वाचन आयोग
➤संघ लोक सेवाआयोग
➤मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग
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➤नीति आयोग
➤मानवाधिकार आयोग
➤बाल संरक्षण आयोग
➤अनुसूचित जाति एवं
➤अनुसूचित जनजाति आयोग
➤पिछड़ा वर्ग आयोग
➤सूचना आयोग
➤सतर्कता आयोग
➤राष्ट्रीय हरित अधिकरण
➤खाद्य संरक्षण आयोग।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक-mppsc pre
➥मुख्यालय नई दिल्ली
➥वर्तमान नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक- G C मुर्मू
➥अनुच्छेद 148 के प्रावधानों के अनुसार एक स्वतंत्र नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
प्रमुख तथ्य ---
➥भारतीय संविधान में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का पद , भारत शासन अधिनियम 1919 के अधीन महालेखा परीक्षक के आधार पर बनाया था।
➥भारत के प्रथम नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक श्री नरहरि राव थे।
➤नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता के मुख्य प्रावधान -निम्नलिखित है---
➥CAG को भारत का राष्ट्रपति नियुक्त करता है,
➥सीएजी को पद ग्रहण करने से 6 वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु पूर्ण करने जो भी पहले हो तक पद पर रहने का अधिकार है
➥सीएजी को राष्ट्रपति के आदेश से उसी रीति से हटाया जा सकता है जिस रीति से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है
➥सीएजी को पद से हटाने का आधार सिद्ध कदाचार या असमर्थता होती है
➥पद ग्रहण करने के पश्चात सीएजी के वेतन तथा सेवा शर्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्य एवं शक्तियां -
(CAG-MPPSC)
➥संविधान के अनुच्छेद 149 में सीएजी के कार्यों तथा शक्तियों का वर्णन किया गया है।
➥सीएजी का मुख्य कार्य अंकेक्षण अथवा लेखा परीक्षण है, वह लेखा परीक्षण से संबंधित अनेक कार्य करता है जैसे -संसद द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत संघ, राज्यों के लेखो का परीक्षण अर्थात अंकेक्षण करता है
➥राष्ट्रपति की सहमति से यह निर्धारित करता है कि संघ तथा राज्यों में लेखा करने की विधि की प्रक्रिया क्या हो,
➥राजकीय संगठनों में भंडार तथा सामग्री के लेखों को नियंत्रित करता है ।
➥राष्ट्रपति और राज्यपाल सीएजी की रिपोर्ट को क्रमशः संसद एवं विधान मंडल के समक्ष रखवाते हैं।
➥सीएजी को राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक भी कहा जाता है
➤➤➤नोट-संचित निधि से निर्गम पर सीएजी का कोई नियंत्रण नहीं होता है
➤किसी भी कोचिंग में एडमिशन लेने से पहले इन बातो का रखे विशेष ध्यान
➤7 important tips for clear exam from home without coaching
➤important study material for exams
➤ mppsc /civil service exam preparation
संघ लोक सेवा आयोग UPSC
➥मुख्यालय नई दिल्ली
➥संवैधानिक अनुच्छेद --315
➥वर्तमान अध्यक्ष श्री प्रदीप जोशी
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 के अंतर्गत संघ के लिए संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के लिए एक एक राज्य लोक सेवा आयोग का प्रावधान किया गया है
➤➤➤संघ लोक सेवा आयोग से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष सहित 9 या 11 सदस्य होते हैं
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो तक की अवधि के लिए निर्धारित होता है
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को साबित कदाचार एवं दूराचरण के आधार पर निर्धारित रीति से हटाया जा सकता है
वर्तमान में संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री अरविन्द सक्सेना है।
➤➤➤संघ लोक सेवा आयोग के कार्य एवं अधिकार
संघ लोक सेवा आयोग विभिन्न अखिल भारतीय सेवाओं की नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित करता है
संघ लोक सेवा आयोग अखिल भारतीय स्तर की सेवाओं के अतिरिक्त अन्य केंद्रीय कार्मिकों की नियुक्ति के लिए भी परीक्षा आयोजित करता है।
संघ लोक सेवा आयोग स्थानांतरण पदोन्नति विभागीय जांच आदि से संबंधित विभिन्न विभागों के निवेदन पर अपना योगदान देता है
संघ की सेवाओं के दौरान घायल हो जाने के कारण पेंशन देने संबंधी मामलों से जुड़े कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
यूपीएससी राष्ट्रपति द्वारा शॉप पर गए दायित्वों को भी पूरा करता है
➽➽NOTE ---- भारत में सबसे पहले संघ लोक सेवा आयोग का गठन भारत शासन अधिनियम 1919 जिसे मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है, के प्रावधानों के अंतर्गत वर्ष 1926 में केंद्रीय लोकसेवा आयोग के रूप में हुआ था।
ब्रिटिश भारत में संघ लोक सेवा आयोग के सबसे पहले अध्यक्ष सर रोज बार कर थे
स्वतंत्र भारत में संघ लोक सेवा आयोग के सबसे पहले अध्यक्ष एच के कृपलानी थे
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग-MPPSC
National Commission for Scheduled Castes-mppsc
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग aayog se sambandhit question
➥यह एक संवैधानिक निकाय है
➥इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 338 के द्वारा किया गया है।
➥अनुच्छेद 338 संविधान के भाग 16 में वर्णित है जिसे कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध वाले अनुच्छेद की संज्ञा दी गई है।
➥भारत में अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष:- रामशंकर कठेरिया है।
➥ मूल संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध करता है जो अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित सभी मामलों का निरीक्षण करें तथा उनसे संबंधित प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करें। उसे अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयुक्त कहा जाएगा तथा उसे उक्त कार्य सोपे जाएंगे।
➥1978 में सरकार ने एक संकल्प के माध्यम से अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए गैर संवैधानिक बहू सदस्य आयोग की स्थापना की।
➥1987 में एक संकल्प के माध्यम से आयुक्त के कार्यों में संशोधन किया गया तथा नाम बदलकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग कर दिया गया।
➥ बाद में 1990 में 65वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए एक विशेष अधिकारी के स्थान पर उच्चस्तरीय बहू सदस्य राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की स्थापना की गई।
➥पुनः 2003 के 90 संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा इस राष्ट्रीय आयोग को दो भागों में विभाजित कर दिया गया तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अनुच्छेद 338 के अंतर्गत एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद 338 क के अंतर्गत नामक दो नए आयोग बना दिए गए।
➥वर्ष 2004 से पृथक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में आया आयोग में एक अध्यक्ष एक उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्य होते हैं।
➥नियुक्ति:- राष्ट्रपति के द्वारा उसके आदेश एवं मुहर लगी आदेश के द्वारा नियुक्त किए जाते है
उनकी सेवा शर्ते एवं कार्यकाल भी राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
1. अनुसूचित जातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित मामलों का निरीक्षण एवं अधीक्षण करना तथा उनके क्रियान्वयन की समीक्षा करना।
2. अनुसूचित जातियों के हितों का उल्लंघन करने वाले किसी मामले की जांच पड़ताल इन सुनवाई करना।
3. अनुसूचित जातियों के समाज आर्थिक विकास से संबंधित योजनाओं के निर्माण के समय सहभागिता निभाना एवं उचित परामर्श देना तथा संघ शासित प्रदेशों एवं अन्य राज्यों में उसके विकास से संबंधित कार्यों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना।
4. इनके निरीक्षण के संबंध में उठाए गए कदमों एवं किए जा रहे कार्यों के बारे में राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष जब भी आवश्यक हो प्रतिवेदन प्रस्तुत करना।
5. इन संरक्षण आत्मक उपायों के संदर्भ में केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करना एवं इस संबंध में आवश्यक सिफारिशों तथा अनुसूचित जाति एवं समाज आर्थिक विकास एवं लाभ के लिए प्रयास करना।
6. यदि राष्ट्रपति आदेश दिए तो अनुसूचित जातियों के समाज आर्थिक विकास गीतों के संरक्षण एवं संवैधानिक संरक्षण से संबंधित शॉप पर गए किसी अन्य कार्य को संपन्न करना।
जब आयोग किसी कार्य की जांच पड़ताल कर रहा है या किसी शिकायत की जांच कर रहा है तो इसे दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होंगी जहां याचिका दायर की जा सकती है तथा विशेषकर निम्नलिखित मामलों में:-
1. भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को सम्मान करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;
2. किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ;
3. शपथ पत्रों पर साक्षी ग्रहण करना ;
4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोग अभिलेख या उसके पति की अपेक्षा करना;
5. साक्ष्य और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए समय निकालना ;
6. कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति के नियम द्वारा आधारित करें।
संघ और प्रत्येक राज्य सरकार को अनुसूचित जातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।
आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है वह जब भी उचित समझे अपनी रिपोर्ट दे सकता है।
राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संबंधित राज्यों के राज्यपालों को भेजता है जो उसे राज्य के विधान मंडल के समक्ष रखा जाएगा और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर कि गैया किए जाने के लिए प्रस्थापित कार्यवाही तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश और स्वीकृत की गई है तो अधिकृत के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
राष्ट्रपति किसी राज्य सरकार के संबंधित किसी आयोग की रिपोर्ट को भी राज्य के राज्यपाल के पास भेजते हैं राज्यपाल इसे आयोग की सिफारिश पर की गई कार्यवाही का उल्लेख करते हुए ज्ञापन के साथ राज्य विधानमंडल के समक्ष रखते हैं। इस ज्ञापन में से किन्ही सिफारिशों को स्वीकार नहीं किए जाने के कारण भी होने चाहिए।
MPPSC NOTES-PDF
आयोग का नाम - अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग
वर्तमान अध्यक्ष:- नंदकुमार साय
सदस्य संख्या:-04 आयोग में एक अध्यक्ष तीन अन्य सदस्य होते हैं।
नियुक्ति :- राष्ट्रपति के द्वारा उसके आदेश एवं मोहर लगे आदेश द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
कार्यकाल:- कार्यकाल व सेवा शर्ते भी राष्ट्रपति द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं।
स्थापना:- 2003 में उन 89वे संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुसूचित जाति आयोग एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को दो भागों में विभाजित कर दिया गया तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अनुच्छेद 338 के अंतर्गत एवं अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद 338- क के अंतर्गत नामक दो नया योग बना दिए गए जिसमें एक आयोग राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग था आयोग था।
वर्ष 2004 से प्रत्येक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में आया।
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1. अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उप बंधित रक्ष उपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करें और उन पर निगरानी रखें ऐसे रक्षोंपायो के कार्यक्रम का मूल्यांकन करें करें;
2. अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और रक्षोंपायो से वंचित करने के संबंध में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच करें;
3. अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग ले और उन पर सलाह दें तथा संघ और किसी अन्य के अधीन उसके विकास की प्रकृति का मूल्यांकन करें करें;
4. उन रक्षापायो के कार्यक्रम के बारे में प्रतिवर्ष और ऐसे अन्य समय ऊपर जो आयोग ठीक समझे राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करें;
5. अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण कल्याण और विकास तथा उन्नयन के संबंध में ऐसे अन्य कृतियों का निर्वहन करें जो राष्ट्रपति संसद के द्वारा बनाई गई किसी विधि के उप बंधुओं के अधीन रहते हुए नियम द्वारा भी निर्देशित करें।
आयोग के अन्य कार्य:-
2005 में राष्ट्रपति ने अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा कल्याण तथा विकास और उन्नति के लिए आयोग के निम्नलिखित कुछ अन्य कार्य निर्धारित किए:-
A. वन क्षेत्र में रही अनुसूचित जनजातियों को लघु वनोपज पर स्वामित्व का अधिकार देने संबंधित उपाय।
B. कानून के अनुसार जनजातीय समुदायों के खनिज तथा जल संसाधनों आदि पर अधिकार को सुरक्षित रखने संबंधित उपाय।
C. जनजातियों के विकास तथा उनके लिए अधिक वह अन्य आजीविका रणनीतियों पर काम करने संबंधित उपाय।
D. विकास परियोजनाओं तथा विस्थापित जनजातीय समूहों के लिए सहायता एवं पुनर्वास उपायों की प्रभाव कारिता बढ़ाने संबंधित उपाय।
E. जनजातीय लोगों का भूमि से बिलगाव रोकने के उपाय तथा उनके लोगों का प्रभारी पुनर्वास करना जो पहले ही भूमि से विलग हो चुके हैं।
F. जनजातीय समुदायों की वन सुरक्षा तथा सामाजिक वानिकी में अधिकतम सहयोग एवं संलग्न नेता प्राप्त करने संबंधित उपाय।
G. पेसा अधिनियम 1996 का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने संबंधित उपाय।
H. जनजातियों द्वारा झूम खेती के प्रचलन को कम करने तथा अंततः समाप्त करने संबंधित उपाय जिसके कारण उनकी लगातार और अशक्तिकरण के साथ भूमि तथा पर्यावरण का अपरदन होता है।
आयोग को अपनी कार्यविधि को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त हैं।
1. भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को सम्मान करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
2. किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की उपेक्षा करना;
3. शपथ पत्रों पर साक्षी ग्रहण करना
4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोग अभिलेख या उसकी प्रति की उपेक्षा करना
5. पक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा करने के लिए कमीशन निकालना
6. कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति नियम द्वारा आधारित करें।
संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।
- आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता हूं यदि आवश्यक समझा जाता है तो समय से पहले भी आयोग अपना प्रतिवेदन दे सकता है।
➥मुख्यालय -नई दिल्ली
➥संवैधानिक प्रावधान -अनुच्छेद 338-B
➥वर्तमान अध्यक्ष -भगवान लाल साहनी
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग वर्ग कुल पांच सदस्य होते है।
इसमें एक अध्यक्ष एक उपाध्यक्ष तथा तीन सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के वर्तमान अध्यक्ष - श्री भगवान लाल साहनी है
महत्वपूर्ण तथ्य---
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संविधान के 102 वें संविधान संशोधन के द्वारा संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।
इस आयोग के गठन के प्रावधान वर्ष 1993 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग अधिनियम द्वारा स्थाई रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करने के प्रावधानों के रूप में किया गया ,जिसमें एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधान थे इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
➥वर्ष 1978 में वी पी मंडल की अध्यक्षता में दूसरे पिछड़े वर्ग आयोग का गठन किया गया था इस 6 सदस्य आयोग ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1980 में राष्ट्रपति को सौंपी,
➥वी पी मंडल आयोग की सिफारिशों में मुख्य रूप से ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की जिसे सरकार ने 1990 में लागू किया।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कार्य एवं शक्तियां निम्नलिखित हैं
➥पिछड़े वर्गों की स्थिति में सुधार के लिए नियमित रूप से सरकार को परामर्श देना
➥क्रीमी लेयर की धन सीमा के बारे में सरकार को परामर्श देना
➥पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की जांच करना तथा इनके संचालन के लिए सरकार को परामर्श देना
➥पिछड़े वर्गों की स्थिति का समय समय पर अध्ययन करना कौन सी जाति पिछड़े वर्ग में सम्मिलित है और कौन सी जाति नहीं है इस मामले में भी सरकार को परामर्श देना
➥अनुच्छेद 340 (2 )के अनुसार यह अपने कार्यों का वार्षिक प्रतिवेदन आयोग राष्ट्रपति को देगा और राष्ट्रपति इस प्रतिवेदन को संसद के समक्ष रखवाएगा।
➥इसके अलावा पिछड़े वर्गों के लिए संवैधानिक संरक्षण भली-भांति लागू हो रहा है या नहीं इसकी जांच करना इसे क्रियान्वयन करना आदि के लिए सरकार को सिफारिश करना आदि इसके प्रमुख कार्य है।
आयोग का नाम:- केंद्रीय सतर्कता आयोग
गठन :-1964 केंद्र सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव के अंतर्गत
सिफारिश:- भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाई गई संथानम समिति की सिफारिश
वैधानिक दर्जा:- सितंबर 2003 में दिया गया
अपने कार्यकाल के पश्चात वे केंद्र अथवा राज्य सरकार के किसी भी पद के योग्य नहीं होते हैं।
राष्ट्रपति केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या अन्य किसी भी सतर्कता आयुक्त को उनके पद से किसी भी समय निम्नलिखित परिस्थितियों में हटा सकते हैं:-
1. यदि वह दिवालिया घोषित हो।
2. यदि वह नैतिक चरित्र हीनता के आधार पर किसी अपराध में दोषी पाया गया हो।
3. यदि वह अपने कार्यकाल में अपने कार्य क्षेत्र से बाहर किसी प्रकार के लाभ पद को ग्रहण करता है।
4. यदि वह मानसिक अथवा शारीरिक कारणों से कार्य करने में असमर्थ हो।
5. यदि वह कोई ऐसे अन्य लाभ प्राप्त कर रहा हो जिससे कि आयोग के कार्य में वह पूर्वाग्रह युक्त हो।
संगठन:- सेंट्रल विजिलेंस कमिशन का अपना सचिवालय मुख्य तकनीकी परीक्षक शाखा तथा विभागीय जांच के लिए आयुक्तों की एक शाखा होगी।
2. निम्नलिखित श्रेणियों में से संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध किसी भी शिकायत की जांच करना जिसमें उस पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी अपराध का आरोप हो हो;
A. भारत सरकार के ग्रुप ए के कर्मचारी एवं अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी;
B. केंद्र सरकार के प्राधिकरण के निर्दिष्ट स्तर के अधिकारी
3. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत अपराधों की जांच से संबंधित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना सीबीआई के कामकाज की देखरेख करना।
4. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत अपराध की जांच से संबंधित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन सीबीआई को निर्देश देना।
5. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत किए गए अपराध की विशेष दिल्ली पुलिस बल के द्वारा की गई जांच की समीक्षा करना।
6. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत मुकदमा चलाने हेतु संबंधित अपराधी कारणों को दिए गए लंबित प्रार्थना पत्रों की समीक्षा करना।
7. केंद्र सरकार और इसके प्राधिकरण को ऐसे किसी मामले में सलाह देना।
8. केंद्र सरकार के मंत्रालयों को प्राधिकरण उसे सतर्कता प्रशासन पर नजर रखना।
9. लोकहित उद्घाटन तथा सूचक की सुरक्षा से संबंधित संकल्प के अंतर्गत प्राप्त शिकायतों की जांच करना तथा आयुक्त कार्यवाही की अनुशंसा करना।
10. केंद्र सरकार केंद्रीय सेवाओं तथा अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित सतर्कता एवं अनुशासनिक मामलों के नियम विनियम बनाने के लिए सेंट्रल विजिलेंस कमीशन से सलाह लेगी।
1. अखिल भारतीय सेवा के वे सदस्य जो संघ सरकार के मामलों से संबंधित हैं तथा केंद्र सरकार के ग्रुप ए के अधिकारी हैं।
2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्केल 5 से ऊपर के अधिकारी।
3. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, नाबार्ड एवं सिटी के ग्रेट डी और इससे ऊपर के अधिकारी।
4. सरकारी क्षेत्र उपक्रमों के बोर्ड के मुख्य कार्यकारी और कार्यकारी तथा अनुसूची क और E-8 और ऊपर की अन्य अधिकारी।
5. सरकारी क्षेत्र उपक्रमों के वोटों के मुख्य अधिकारी और कार्यकारी तथा अनुसूची क और ख औरE- 7 और ऊपर की अन्य अधिकारी।
8.साधारण बीमा कंपनियां के प्रबंधक एवं उनसे ऊपर के स्तर के अधिकारी।
➥ इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन कौन है
➥ भारत निर्वाचन आयोग का गठन कब हुआ
➥ भारत निर्वाचन आयोग के कार्य
➥ भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियां
➥ निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन, बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम CRPA act-2005 के प्रावधानों के तहत किया गया ,
तथा बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम को वर्ष 2006 में संशोधित किया गया।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन एक अध्यक्ष एवं छः सदस्य से मिलकर के होता है।
आयोग के छः सदस्यों में से कम से कम 2 सदस्य अनिवार्य रूप से महिलाएं होनी चाहिए
आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को 10 वर्ष के अनुभव का प्रावधान भी किया गया है
आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार के द्वारा की जाती है
➥नियुक्ति समिति में निम्नलिखित सदस्य होते हैं
प्रधानमंत्री
दोनों सदनों के विपक्ष के नेता
गृहमंत्री एवं
मानव संसाधन विकास मंत्री।
बच्चों के उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों की जांच करना
बच्चों को आतंकवाद, सांप्रदायिक हिंसा, घरेलू हिंसा, एड्स, वेश्यावृत्ति ,भिक्षावृत्ति आदि से बचाने हेतु कदम उठाना
केंद्र या राज्य सरकारों के तहत आने वाले किशोर सुधार ग्रहों का निरीक्षण करना एवं उचित कार्यवाही करना गरीब बच्चों के अधिकारों से संबंधित मामलों पर विशेष ध्यान देना
बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना
बाल अधिकारों को श्रेष्ठ रूप से लागू करवाने हेतु विभिन्न अनुसंधान करवाना
बच्चों से जुड़े कार्यक्रमों अंतरराष्ट्रीय संधियों और मौजूदा नीतियों की समीक्षा कर बच्चों के हित में उन्हें लागू करवाना
चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर के माध्यम से शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही सुनिश्चित करना।
➥इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 338 के द्वारा किया गया है।
➥अनुच्छेद 338 संविधान के भाग 16 में वर्णित है जिसे कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध वाले अनुच्छेद की संज्ञा दी गई है।
➥भारत में अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष:- रामशंकर कठेरिया है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के बारे में महत्व पूर्ण तथ्य --
➥ मूल संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध करता है जो अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित सभी मामलों का निरीक्षण करें तथा उनसे संबंधित प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करें। उसे अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयुक्त कहा जाएगा तथा उसे उक्त कार्य सोपे जाएंगे।
➥1978 में सरकार ने एक संकल्प के माध्यम से अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए गैर संवैधानिक बहू सदस्य आयोग की स्थापना की।
➥1987 में एक संकल्प के माध्यम से आयुक्त के कार्यों में संशोधन किया गया तथा नाम बदलकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग कर दिया गया।
➥ बाद में 1990 में 65वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुसूचित जातियों जनजातियों के लिए एक विशेष अधिकारी के स्थान पर उच्चस्तरीय बहू सदस्य राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की स्थापना की गई।
➥पुनः 2003 के 90 संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा इस राष्ट्रीय आयोग को दो भागों में विभाजित कर दिया गया तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अनुच्छेद 338 के अंतर्गत एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद 338 क के अंतर्गत नामक दो नए आयोग बना दिए गए।
➥वर्ष 2004 से पृथक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में आया आयोग में एक अध्यक्ष एक उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्य होते हैं।
➥नियुक्ति:- राष्ट्रपति के द्वारा उसके आदेश एवं मुहर लगी आदेश के द्वारा नियुक्त किए जाते है
उनकी सेवा शर्ते एवं कार्यकाल भी राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के कार्य:-mppsc
1. अनुसूचित जातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित मामलों का निरीक्षण एवं अधीक्षण करना तथा उनके क्रियान्वयन की समीक्षा करना।
2. अनुसूचित जातियों के हितों का उल्लंघन करने वाले किसी मामले की जांच पड़ताल इन सुनवाई करना।
3. अनुसूचित जातियों के समाज आर्थिक विकास से संबंधित योजनाओं के निर्माण के समय सहभागिता निभाना एवं उचित परामर्श देना तथा संघ शासित प्रदेशों एवं अन्य राज्यों में उसके विकास से संबंधित कार्यों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना।
4. इनके निरीक्षण के संबंध में उठाए गए कदमों एवं किए जा रहे कार्यों के बारे में राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष जब भी आवश्यक हो प्रतिवेदन प्रस्तुत करना।
5. इन संरक्षण आत्मक उपायों के संदर्भ में केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करना एवं इस संबंध में आवश्यक सिफारिशों तथा अनुसूचित जाति एवं समाज आर्थिक विकास एवं लाभ के लिए प्रयास करना।
6. यदि राष्ट्रपति आदेश दिए तो अनुसूचित जातियों के समाज आर्थिक विकास गीतों के संरक्षण एवं संवैधानिक संरक्षण से संबंधित शॉप पर गए किसी अन्य कार्य को संपन्न करना।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की शक्तियां:-
powers of national commission for scheduled castes
आयोग को अपने कार्यों को संपन्न करने के लिए शक्तियां प्रदान की गई है।जब आयोग किसी कार्य की जांच पड़ताल कर रहा है या किसी शिकायत की जांच कर रहा है तो इसे दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होंगी जहां याचिका दायर की जा सकती है तथा विशेषकर निम्नलिखित मामलों में:-
1. भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को सम्मान करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;
2. किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ;
3. शपथ पत्रों पर साक्षी ग्रहण करना ;
4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोग अभिलेख या उसके पति की अपेक्षा करना;
5. साक्ष्य और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए समय निकालना ;
6. कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति के नियम द्वारा आधारित करें।
संघ और प्रत्येक राज्य सरकार को अनुसूचित जातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।
various commission related question answer in Hindi
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का प्रतिवेदन:-
आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है वह जब भी उचित समझे अपनी रिपोर्ट दे सकता है।
राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संबंधित राज्यों के राज्यपालों को भेजता है जो उसे राज्य के विधान मंडल के समक्ष रखा जाएगा और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर कि गैया किए जाने के लिए प्रस्थापित कार्यवाही तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश और स्वीकृत की गई है तो अधिकृत के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
राष्ट्रपति किसी राज्य सरकार के संबंधित किसी आयोग की रिपोर्ट को भी राज्य के राज्यपाल के पास भेजते हैं राज्यपाल इसे आयोग की सिफारिश पर की गई कार्यवाही का उल्लेख करते हुए ज्ञापन के साथ राज्य विधानमंडल के समक्ष रखते हैं। इस ज्ञापन में से किन्ही सिफारिशों को स्वीकार नहीं किए जाने के कारण भी होने चाहिए।
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अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग -mppsc
National Commission for Scheduled Tribes-mppsc
आयोग का नाम - अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग
वर्तमान अध्यक्ष:- नंदकुमार साय
सदस्य संख्या:-04 आयोग में एक अध्यक्ष तीन अन्य सदस्य होते हैं।
नियुक्ति :- राष्ट्रपति के द्वारा उसके आदेश एवं मोहर लगे आदेश द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
कार्यकाल:- कार्यकाल व सेवा शर्ते भी राष्ट्रपति द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं।
स्थापना:- 2003 में उन 89वे संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुसूचित जाति आयोग एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को दो भागों में विभाजित कर दिया गया तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अनुच्छेद 338 के अंतर्गत एवं अनुसूचित जनजाति आयोग अनुच्छेद 338- क के अंतर्गत नामक दो नया योग बना दिए गए जिसमें एक आयोग राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग था आयोग था।
वर्ष 2004 से प्रत्येक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में आया।
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अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के कार्य:-
1. अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उप बंधित रक्ष उपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करें और उन पर निगरानी रखें ऐसे रक्षोंपायो के कार्यक्रम का मूल्यांकन करें करें;
2. अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और रक्षोंपायो से वंचित करने के संबंध में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच करें;
3. अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग ले और उन पर सलाह दें तथा संघ और किसी अन्य के अधीन उसके विकास की प्रकृति का मूल्यांकन करें करें;
4. उन रक्षापायो के कार्यक्रम के बारे में प्रतिवर्ष और ऐसे अन्य समय ऊपर जो आयोग ठीक समझे राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करें;
5. अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण कल्याण और विकास तथा उन्नयन के संबंध में ऐसे अन्य कृतियों का निर्वहन करें जो राष्ट्रपति संसद के द्वारा बनाई गई किसी विधि के उप बंधुओं के अधीन रहते हुए नियम द्वारा भी निर्देशित करें।
आयोग के अन्य कार्य:-
2005 में राष्ट्रपति ने अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा कल्याण तथा विकास और उन्नति के लिए आयोग के निम्नलिखित कुछ अन्य कार्य निर्धारित किए:-
A. वन क्षेत्र में रही अनुसूचित जनजातियों को लघु वनोपज पर स्वामित्व का अधिकार देने संबंधित उपाय।
B. कानून के अनुसार जनजातीय समुदायों के खनिज तथा जल संसाधनों आदि पर अधिकार को सुरक्षित रखने संबंधित उपाय।
C. जनजातियों के विकास तथा उनके लिए अधिक वह अन्य आजीविका रणनीतियों पर काम करने संबंधित उपाय।
D. विकास परियोजनाओं तथा विस्थापित जनजातीय समूहों के लिए सहायता एवं पुनर्वास उपायों की प्रभाव कारिता बढ़ाने संबंधित उपाय।
E. जनजातीय लोगों का भूमि से बिलगाव रोकने के उपाय तथा उनके लोगों का प्रभारी पुनर्वास करना जो पहले ही भूमि से विलग हो चुके हैं।
F. जनजातीय समुदायों की वन सुरक्षा तथा सामाजिक वानिकी में अधिकतम सहयोग एवं संलग्न नेता प्राप्त करने संबंधित उपाय।
G. पेसा अधिनियम 1996 का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने संबंधित उपाय।
H. जनजातियों द्वारा झूम खेती के प्रचलन को कम करने तथा अंततः समाप्त करने संबंधित उपाय जिसके कारण उनकी लगातार और अशक्तिकरण के साथ भूमि तथा पर्यावरण का अपरदन होता है।
अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग की शक्तियां:-
powers of national commission for scheduled tribes
आयोग को अपनी कार्यविधि को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त हैं।
1. भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को सम्मान करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
2. किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की उपेक्षा करना;
3. शपथ पत्रों पर साक्षी ग्रहण करना
4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोग अभिलेख या उसकी प्रति की उपेक्षा करना
5. पक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा करने के लिए कमीशन निकालना
6. कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति नियम द्वारा आधारित करें।
संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।
अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग का प्रतिवेदन:
- आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता हूं यदि आवश्यक समझा जाता है तो समय से पहले भी आयोग अपना प्रतिवेदन दे सकता है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग -mppsc
NATIONAL COMMISSION FOR BACKWARD CLASSES-mppsc
(नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस )
➥स्थापना -14 अगस्त 1993➥मुख्यालय -नई दिल्ली
➥संवैधानिक प्रावधान -अनुच्छेद 338-B
➥वर्तमान अध्यक्ष -भगवान लाल साहनी
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना/राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में सदयो की संख्या --
इसमें एक अध्यक्ष एक उपाध्यक्ष तथा तीन सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के वर्तमान अध्यक्ष - श्री भगवान लाल साहनी है
महत्वपूर्ण तथ्य---
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संविधान के 102 वें संविधान संशोधन के द्वारा संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।
इस आयोग के गठन के प्रावधान वर्ष 1993 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग अधिनियम द्वारा स्थाई रूप से पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करने के प्रावधानों के रूप में किया गया ,जिसमें एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधान थे इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन से संबंधित ऐतिहासिक पहलू
➥राष्ट्रपति ने सर्वप्रथम काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया इस आयोग ने 30 मार्च 1955 को इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को दी➥वर्ष 1978 में वी पी मंडल की अध्यक्षता में दूसरे पिछड़े वर्ग आयोग का गठन किया गया था इस 6 सदस्य आयोग ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1980 में राष्ट्रपति को सौंपी,
➥वी पी मंडल आयोग की सिफारिशों में मुख्य रूप से ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की जिसे सरकार ने 1990 में लागू किया।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कार्य एवं शक्तियां
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कार्य एवं शक्तियां निम्नलिखित हैं
➥पिछड़े वर्गों की स्थिति में सुधार के लिए नियमित रूप से सरकार को परामर्श देना
➥क्रीमी लेयर की धन सीमा के बारे में सरकार को परामर्श देना
➥पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की जांच करना तथा इनके संचालन के लिए सरकार को परामर्श देना
➥पिछड़े वर्गों की स्थिति का समय समय पर अध्ययन करना कौन सी जाति पिछड़े वर्ग में सम्मिलित है और कौन सी जाति नहीं है इस मामले में भी सरकार को परामर्श देना
➥अनुच्छेद 340 (2 )के अनुसार यह अपने कार्यों का वार्षिक प्रतिवेदन आयोग राष्ट्रपति को देगा और राष्ट्रपति इस प्रतिवेदन को संसद के समक्ष रखवाएगा।
➥इसके अलावा पिछड़े वर्गों के लिए संवैधानिक संरक्षण भली-भांति लागू हो रहा है या नहीं इसकी जांच करना इसे क्रियान्वयन करना आदि के लिए सरकार को सिफारिश करना आदि इसके प्रमुख कार्य है।
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केंद्रीय सतर्कता आयोग - एमपीपीएससी
सेंट्रल विजिलेंस कमिशन - एमपीपीएससी
आयोग का नाम:- केंद्रीय सतर्कता आयोग
गठन :-1964 केंद्र सरकार द्वारा पारित एक प्रस्ताव के अंतर्गत
सिफारिश:- भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाई गई संथानम समिति की सिफारिश
वैधानिक दर्जा:- सितंबर 2003 में दिया गया
केंद्रीय सतर्कता आयोग के वर्तमान अध्यक्ष श्री संजय कोठारी है
केंद्रीय सतर्कता आयोग में कितने सदस्य होते है ?
सदस्य संख्या:- इसमें एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त( अध्यक्ष) व दो या दो से कम सतर्कता आयुक्त होते हैं।केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति को करता है करता है ??
नियुक्ति:- राष्ट्रपति के द्वारा 3 सदस्य समिति की सिफारिश पर होती हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति समिति के प्रमुख- प्रधानमंत्री
अन्य सदस्य- लोकसभा में विपक्ष का नेता केंद्रीय गृहमंत्री।केंद्रीय सतर्कता आयुक्त का कार्यकाल कितना होता है ?
कार्यकाल:- 4 वर्ष अथवा 65 वर्ष तक जो भी पहले हो तक होता है।अपने कार्यकाल के पश्चात वे केंद्र अथवा राज्य सरकार के किसी भी पद के योग्य नहीं होते हैं।
राष्ट्रपति केंद्रीय सतर्कता आयुक्त या अन्य किसी भी सतर्कता आयुक्त को उनके पद से किसी भी समय निम्नलिखित परिस्थितियों में हटा सकते हैं:-
1. यदि वह दिवालिया घोषित हो।
2. यदि वह नैतिक चरित्र हीनता के आधार पर किसी अपराध में दोषी पाया गया हो।
3. यदि वह अपने कार्यकाल में अपने कार्य क्षेत्र से बाहर किसी प्रकार के लाभ पद को ग्रहण करता है।
4. यदि वह मानसिक अथवा शारीरिक कारणों से कार्य करने में असमर्थ हो।
5. यदि वह कोई ऐसे अन्य लाभ प्राप्त कर रहा हो जिससे कि आयोग के कार्य में वह पूर्वाग्रह युक्त हो।
संगठन:- सेंट्रल विजिलेंस कमिशन का अपना सचिवालय मुख्य तकनीकी परीक्षक शाखा तथा विभागीय जांच के लिए आयुक्तों की एक शाखा होगी।
केंद्रीय सतर्कता आयोग के कार्य -
सेंट्रल विजिलेंस कमिशन के निम्न कार्य है-
1. केंद्र सरकार के निर्देश पर ऐसे किसी भी विषय की जांच करना जिसमें केंद्र सरकार या इसके प्राधिकरण के किसी कर्मचारी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत कोई अपराध किया गया हो।2. निम्नलिखित श्रेणियों में से संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध किसी भी शिकायत की जांच करना जिसमें उस पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी अपराध का आरोप हो हो;
A. भारत सरकार के ग्रुप ए के कर्मचारी एवं अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी;
B. केंद्र सरकार के प्राधिकरण के निर्दिष्ट स्तर के अधिकारी
3. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत अपराधों की जांच से संबंधित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना सीबीआई के कामकाज की देखरेख करना।
4. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत अपराध की जांच से संबंधित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन सीबीआई को निर्देश देना।
5. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत किए गए अपराध की विशेष दिल्ली पुलिस बल के द्वारा की गई जांच की समीक्षा करना।
6. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत मुकदमा चलाने हेतु संबंधित अपराधी कारणों को दिए गए लंबित प्रार्थना पत्रों की समीक्षा करना।
7. केंद्र सरकार और इसके प्राधिकरण को ऐसे किसी मामले में सलाह देना।
8. केंद्र सरकार के मंत्रालयों को प्राधिकरण उसे सतर्कता प्रशासन पर नजर रखना।
9. लोकहित उद्घाटन तथा सूचक की सुरक्षा से संबंधित संकल्प के अंतर्गत प्राप्त शिकायतों की जांच करना तथा आयुक्त कार्यवाही की अनुशंसा करना।
10. केंद्र सरकार केंद्रीय सेवाओं तथा अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित सतर्कता एवं अनुशासनिक मामलों के नियम विनियम बनाने के लिए सेंट्रल विजिलेंस कमीशन से सलाह लेगी।
केंद्रीय सतर्कता आयोग का कार्यक्षेत्र:-
1. अखिल भारतीय सेवा के वे सदस्य जो संघ सरकार के मामलों से संबंधित हैं तथा केंद्र सरकार के ग्रुप ए के अधिकारी हैं।
2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्केल 5 से ऊपर के अधिकारी।
3. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, नाबार्ड एवं सिटी के ग्रेट डी और इससे ऊपर के अधिकारी।
4. सरकारी क्षेत्र उपक्रमों के बोर्ड के मुख्य कार्यकारी और कार्यकारी तथा अनुसूची क और E-8 और ऊपर की अन्य अधिकारी।
5. सरकारी क्षेत्र उपक्रमों के वोटों के मुख्य अधिकारी और कार्यकारी तथा अनुसूची क और ख औरE- 7 और ऊपर की अन्य अधिकारी।
8.साधारण बीमा कंपनियां के प्रबंधक एवं उनसे ऊपर के स्तर के अधिकारी।
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इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया एमपीपीएससी
भारत निर्वाचन आयोग एमपीपीएससी
➥ भारत निर्वाचन आयोग का गठन कब हुआ
➥ भारत निर्वाचन आयोग के कार्य
➥ भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियां
➥ निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग-mppsc
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग-mppsc
National Commission for protection of child right (NCPCR)
➥राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना- 5 मार्च 2007
➥राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का मुख्यालय-नई दिल्ली
➥राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के प्रथम अध्यक्ष -शांता सिन्हा
➥राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के वर्तमान अध्यक्ष -प्रियंक कानूनगो
➥राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन, बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम CRPA act-2005 के प्रावधानों के तहत किया गया ,
तथा बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम को वर्ष 2006 में संशोधित किया गया।
➥राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन/ सदस्य संख्या
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन एक अध्यक्ष एवं छः सदस्य से मिलकर के होता है।
आयोग के छः सदस्यों में से कम से कम 2 सदस्य अनिवार्य रूप से महिलाएं होनी चाहिए
आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को 10 वर्ष के अनुभव का प्रावधान भी किया गया है
आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार के द्वारा की जाती है
➥नियुक्ति समिति में निम्नलिखित सदस्य होते हैं
प्रधानमंत्री
दोनों सदनों के विपक्ष के नेता
गृहमंत्री एवं
मानव संसाधन विकास मंत्री।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
➥राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के कार्य एवं शक्तियां
बाल अधिकार संरक्षण आयोग के कार्य निम्नलिखित हैबच्चों के उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों की जांच करना
बच्चों को आतंकवाद, सांप्रदायिक हिंसा, घरेलू हिंसा, एड्स, वेश्यावृत्ति ,भिक्षावृत्ति आदि से बचाने हेतु कदम उठाना
केंद्र या राज्य सरकारों के तहत आने वाले किशोर सुधार ग्रहों का निरीक्षण करना एवं उचित कार्यवाही करना गरीब बच्चों के अधिकारों से संबंधित मामलों पर विशेष ध्यान देना
बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना
बाल अधिकारों को श्रेष्ठ रूप से लागू करवाने हेतु विभिन्न अनुसंधान करवाना
बच्चों से जुड़े कार्यक्रमों अंतरराष्ट्रीय संधियों और मौजूदा नीतियों की समीक्षा कर बच्चों के हित में उन्हें लागू करवाना
चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर के माध्यम से शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही सुनिश्चित करना।
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केंद्रीय सूचना आयोग-mppsc
➥केंद्रीय सूचना आयोग के अध्यक्ष कौन है ?
➥केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना कब हुई?
➥केंद्रीय सूचना आयोग की उपयोगिता ?
➥केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य एवं शक्तियां।
➥Kendriya Suchna Aayog- MPPSC
➥मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग
➥केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना कब हुई?
➥केंद्रीय सूचना आयोग की उपयोगिता ?
➥केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य एवं शक्तियां।
➥Kendriya Suchna Aayog- MPPSC
➥मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग
➥केंद्रीय सूचना आयोग से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न ?