जैन धर्म से सम्बंधित प्रश्न- उत्तर , आसान भाषा में MPPSC / UPSC

जैन धर्म से सम्बंधित प्रश्न- उत्तर  आसान भाषा में/ 

महावीर स्वामी से सम्बंधित प्रश्न- उत्तर
PSC / ETHICS & HISTORY PAPER हेतु 

जैन धर्म -महत्त्व पूर्ण प्रश्न एवं  उत्तर , आसान भाषा में MPPSC / UPSC


जैन धर्म से सम्बंधित प्रश्न- उत्तर / महावीर स्वामी से सम्बंधित प्रश्न- उत्तर


महावीर स्वामी का जीवन परिचय

  जैन धर्म के 24 वे एवं अंतिम तीर्थंकर
जन्म: 540 ईसा पूर्व ( कुंडल ग्राम )
बचपन का नाम :वर्धमान
पिता :ज्ञातृक वंश के राजा सिद्धार्थ
 माता: त्रिशला (वैशाली नृप चेतक की बहन )
पत्नी :यशोदा
 पुत्री : अनोज्या  (प्रियदर्शनी )
प्रथम शिष्य :जमाली
मृत्यु: 468 ई पू पावापुरी ( राजगृह)


जैन धर्म  एवं बौद्ध धर्म तुलना  करिए

उत्तर- जैन एवं बौद्ध  दोनों ही धर्म का उदय ब्राह्मण विरोध प्रतिक्रिया स्वरुप हुआ था दोनों का उद्देश्य ब्राह्मणवाद का खंडन एवं एक सरल व्यवहारिक धर्म का प्रचार करना था।
समानता :-
१  दोनों धर्म सुधारवादी थे ‌।दोनों का उद्देश्य सत्य अहिंसा सत्कर्म एवं नैतिक आचरण का व्यवहारिक दृष्टिकोण था
२  दोनों का मूल सिद्धांत सांसारिक कष्टों एवं जन्म मरण से मुक्त हो निवार्ण प्राप्ति था।
३  दोनों धर्मो ने जाति प्रथा छुआछूत का विरोध किया।
४  दोनों ही स्त्री पुरुष समानता के पक्षधर थे एवं अपने द्वार सभी के लिए खोलें।
५  दोनों ने ही कर्मकांड पाखंड यज्ञ आदि का विरोध किया एवं सत्कर्म शुद्ध आचरण को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया।
६  दोनों धर्म मानवतावादी थे तथा अपने धर्म का प्रचार मानव कल्याण हेतु किया।
असमानताएं:-
१  जैन धर्म निरपेक्ष अहिंसा का समर्थक था पेड़ पौधे छोटे-बड़े सभी जीव की हत्या को अनुचित मानता है ,जबकि बौद्ध धर्म में विशेष परिस्थिति में जीव हत्या एवं मांस खाना उचित है।
२  जैन धर्म कठोर तपस्या व्रत उपवास आदि को निर्वाण प्राप्ति का साधन मानता था ,जबकि बौद्ध धर्म कठोर तप व्रत आदि का विरोध करता है।
३  जैन धर्म आत्म सत्ता की अखंडता में विश्वास रखता है, जबकि बौद्ध धर्म आत्मा को संवेदनाओं का प्रवाह मानता है।
                             दोनों धर्मों में कुछ आधारों पर भिन्नता है ,किंतु दोनों का अंतिम उद्देश्य कर्म बंधन से मुक्त हो निवार्ण प्राप्ति है, तथा सरल समाज की स्थापना करना है।
                                                                                      MPPSC EXAM PREPARATION AT HOME 

 शासन-प्रशासन में जैन धर्म की महत्ता।

उत्तर-वर्तमान परिदृश्य में स्वार्थ स्वहित, हिंसा ,घृणा ,भ्रष्टाचार आदि लगातार बढ़ रहे है जिससे  शासन प्रशासन की कार्य क्षमता  प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है ऐसे में जैन दर्शन की शिक्षा/ विचार आवश्यक हो जाते हैं।
१जैन धर्म ने स्वार्थ एवं  सवहित से ऊपर उठ एक सरल व्यावहारिक धर्म की स्थापना की व मानव कल्याण को बल दिया जो आज प्रासंगिक है।
२ जैन धर्म ने अहिंसा का संदेश दिया जो आज हमें हिंसा ,दंगे, सांप्रदायिकता से मुक्त कर शांति पर बल देता  है।
३ जैन धर्म में कीड़े मकोड़े तक को मारना पाप है  जीवमात्र के प्रति इतनी  करूणा एवं दया जैन धर्म की देन है जो प्रशासक को दयावान बनाती है!
४ जैन दर्शन में हमें अस्तेय अपरिग्रह जैसे महाव्रत मिले हैं जो आज भ्रष्टाचार निवारण में शस्त्र रूपी है।
५ जैन दर्शन हमें सत्य एवं  सरल वचन प्रयोग करने की शिक्षा देता है जो कि वर्तमान में नितांत आवश्यक है।
६  ब्रह्मचर्य अपना कर शासक प्रशासक  अपने कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक कर पालन कर सकते है।
७  जैन दर्शन में कर्मवाद पर बल दिया गया है जो प्रशासकों विवेकी बनाता है व उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
८ स्यादवाद संबंधित जैन धर्म का सिद्धांत अधिकारियों में विचार को तार्किक रूप से अभिव्यक्त करने की क्षमता बढ़ाता है जो कि प्रासंगिक है
      इस प्रकार जैन धर्म के नैतिक सिद्धांत सत्य ,अहिंसा , क्षमा ,दया करुणा ,सहानुभूति शासन प्रशासन के सुचारू रूप से संचालन  एवं  राष्ट्र  उन्नति की दृष्टि से आवश्यक है जो कि वर्तमान में प्रासंगिक है।

 जैन दर्शन में पंच महाव्रत कौन कौन से हैं

उत्तर - जैन दर्शन में पंच महाव्रत का महत्व बताया गया है जिसका पालन करना प्रत्येक जैन अनुयायी के लिए आवश्यक है।
पंच महाव्रत :-
१ अहिंसा
२ सत्य
३ अस्तेय
४ ब्रह्मचर्य
५ अपरिग्रह
अहिंसा:-  कर्म बंधन से मुक्ति हेतु प्रमुख रूप से आवश्यक है कर्मों में बंधे रहने का कारण हिंसा ही है चाहे वह जानकर की गई हो या अनजाने में ।
जैन धर्म में गृहस्थ , भिक्षुओं सभी के लिए मांस खाना एवं जीव हत्या पेड़ पौधे आदि को मारना पाप है एवं इसका विचार भी पाप है।
२ सत्य:-  मन कर्म वचन से सत्य का पालन एवं असत्य का त्याग। क्रोध मोह लोभ मद के समय भी शांत रहना ।भय एवं हंसी मजाक में भी असत्य ना बोलना। कटु वचन का प्रयोग ना करना।
३अस्तेय :- किसी अन्य की वस्तु को बिना अनुमति ग्रहण करना या विचार करना भी पाप है ।
नियम :-
*किसी के घर में बिना अनुमति प्रवेश न करना
* भिक्षा में मिले भोजन को गुरु आज्ञा बिना ग्रहण न करना। *गृहपति की आज्ञा बिना सामान का प्रयोग ना करना
४ ब्रह्मचर्य:- सभी इंद्रीय वासनाओं को त्याग संयमित जीवन यापन करना।
नियम:-
*स्त्री से वार्तालाप एवं दृष्टिपात ना करना।
* स्त्री के निवास स्थान पर निवास ना करना
* अधिक एवं स्वादिष्ट भोजन ना खाना।
५ अपरिग्रह:-  किसी वस्तु व्यक्ति के प्रति अनासक्त होना ।संपत्ति का संचय ना करना भी अपरिग्रह है।
     इन पंच महाव्रत ओं का पालन कर मानव  सुखमय जीवन व्यतीत कर कर्म से मुक्त हो निवार्ण प्राप्त कर सकता है।
जैन धर्म -महत्त्व पूर्ण प्रश्न एवं  उत्तर , आसान भाषा में MPPSC / UPSC
                                                                      इन्हे भी पढ़े  --अब घर बैठे करे एग्जाम की पूरी तैयारी 


 जैन दर्शन में स्यादवाद

उत्तर- ज्ञान मीमांसा संबंधी रहस्यवादी सिद्धांत। किसी तथ्य को आंशिक सत्य स्वीकारना। स्यादवाद अर्थात सापेक्षवाद ।जैन दर्शन में किसी तथ्य को समझने, समझाने ,या अभिव्यक्त करने का सापेक्षिय सिद्धांत है।
                  जैन धर्म अनुसार केवल मुक्त/ सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त साधक ही एक समय में वस्तु गुणों को जान सकता है।, साधारण मानव का ज्ञान परिस्थितियों दृष्टिकोण पर निर्भर करता है एक समय में वस्तु के एक ही गुण को जान पाते हैं जो आंशिक सत्य, सापेक्ष ,आंशिक गलत हो सकता है।
व्यक्ति का यह आंशिक ज्ञान 'नय' कहलाता है।
लोगों के मध्य मतभेद का यही कारण है कि वह अपने विचारों को नितांत सत्य मानकर दूसरे के विचारों की उपेक्षा करते हैं विचारों को तार्किक रूप से अभिव्यक्त करने एवं सत्य की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए जैन धर्म में स्यादवाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया ।
उदाहरण एक हाथी को अंधो द्वारा छू कर दिए गए तर्क।
  पहले अंधा  कान छूकर  हाथी सुपड़े के समान है, दूसरा अंधा पैर छुकर  हाथी खंबे के समान है, तीसरा अंधा सुण्ड छुकर हाथी अजगर समान है। इस प्रकार सभी ने भांति भांति अपने अनुभव को प्रकट किये।, किंतु समस्त  आॅखवाले जानते हैं कि संपूर्ण हाथी इनमें से किसी प्रकार का नहीं है। दार्शनिक एवं तार्किक विवाद भी कुछ इसी प्रकार चलते हैं।
जैन धर्म अनुसार सापेक्षिक ज्ञान की तार्किकता के आधार पर निर्णय सात प्रकार के होते हैं।
१ स्याद है।
२ स्याद नहीं है।
३ हे और नहीं भी।
४ स्याद अवक्तव्य हैं।
५ स्याद है अवक्तव्य है।
६ स्याद नहीं है तथा अवक्तव्य है।
७ स्याद है, नहीं है तथा अवक्तव्य है।
   यह विचारों की बहुलता का सिद्धांत है जिसमे सत्य को भिन्न भिन्न दृष्टि से देखा गया है।

जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांतों का वर्णन करें?

उत्तर   भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार है
१ कर्म वाद का सिद्धांत: चार्वाक दर्शन को छोड़ संपूर्ण भारतीय दर्शन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कर्मवाद पर विशेष बल देता है जैनधर्मानुसार हम जो भी करते हैं उसका फल हमें अवश्य मिलता है शुभ कर्मों हेतु पुरस्कार अशुभ कर्मों हेतु दण्डकी व्यवस्था है
            कर्म को भारतीय दर्शन में दो भागों में विभाजित किया गया है
१ अनारवाद कर्म : जिसका फल मिलना अभी बाकी है
२ प्रारब्ध कर्म: जिन कर्मों का फल मिलना प्रारंभ हो चुका है ।
          कुछ विचारक कर्मवाद के सिद्धांत की आलोचना करते हैं , परंतु गीता में लिखा है कर्मवाद  का सिद्धांत समस्त सिद्धांतों में श्रेष्ठ है।
२  आत्मवाद का सिद्धांत: जैन दर्शन आत्मसत्ता की अखंडता में विश्वास करता है यहां आत्मा को शरीर से भिन्न एक आध्यात्मिक सत्ता कहा गया है जो नित्य और अविनाशी है
       शंकर ने आत्मज्ञान को ब्रह्म ज्ञान माना है तथा वेदों और उपनिषदों में भी आत्मसत्ता में विश्वास पर बल दिया गया है।
३ अनईश्वरवाद : भारतीय दर्शन में सनातन धर्म से वर्तमान तक ईश्वरीय महिमा का व्यापक वर्णन है किंतु जैन एवं बौद्ध धर्म ने ईश्वरीय सत्ता को नकार कर अनईश्वरवाद को जन्म दिया है।, उनका मानना है कि यदि संसार में ईश्वर है तो जग में नाना प्रकार के दुख क्यों हैं? अर्थात उन्होंने वेद सत्ता को नकारा ।
                   इसके अतिरिक्त जैन दर्शन में कर्मफल, मोक्ष एवं नैतिक आचरण पर बल दिया गया है जिसका अंतिम उद्देश्य अनंतचातुष्टय से मुक्त हो मोक्ष प्राप्त करना है।

 महावीर स्वामी के पंच महाव्रत बताइए

उत्तर। मानव को कर्म बंधन से मुक्त कर निवारण दिलाने  हेतु जैन धर्म में पंच महाव्रत की महत्ता बताई गई है जिसका पालन करना प्रत्येक जैन अनुयायी लिए आवश्यक है ।
पंच महाव्रत:-
सत्य, अहिंसा, अस्तेय ,ब्रह्मचर्य अपरिग्रह


 महावीर स्वामी के अनुसार त्रिरत्न क्या है

उत्तर  कर्मों से मुक्त होकर निवार्ण प्राप्ति हेतु  महावीर ने तीन साधन बताए हैं जिन्हें त्रिरत्न कहा गया है ।
   त्रिरत्न :-
 समय ज्ञान
 सम्यक दर्शन
 सम्यक चरित्र


 अनंत चतुष्टय

उत्तर-  यह मोक्ष की अवस्था है, ऐसी स्थिति में आत्मा अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन ,अनंत विर्य तथा अनंत आनंद की स्थिति में होती है।


 पुद्गल

उत्तर   पुद्गल से तात्पर्य उस तत्व से है जिसका संयोजन व विभाजन किया जा सके। इसके सबसे छोटे भाग को अणु कहा जाता है, समस्त भौतिक पदार्थ अणुओं के संयोजन से बनते हैं ।रंग, स्पर्श, गंध ,रस पुद्गल के गुण हैं जो सभी पदार्थों में दिखाई देते हैं।


बंधन मोक्ष

उत्तर   जैन धर्म अनुसार कर्म फल की विशिष्ट  प्रक्रिया में उलझे रहना बंधन है।, और दुखों की समाप्ति तथा जन्म मरण से मुक्त हो जाना मोक्ष है।
        बंधन के समय व्यक्ति के अनंत चतुष्टय छुप जाते हैं और मोक्ष के समय पुनः प्रकट हो जाते हैं।

मोक्ष प्राप्ति के  पांच  चरण  बताइए

उत्तर - मोक्ष प्राप्ति के प्रमुख चरण :-
१ अत्रव
२ बंधन
३ भंवर
४ निर्जरा
५ मोक्ष

Previous
Next Post »