भारत में पंचायती राज का इतिहास,
भारत में पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित विभिन्न समितियां एवं उनके प्रमुख सुझाव,
73 वा संविधान संशोधन एवं उसके महत्वपूर्ण प्रावधान,
पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न एवं आसान भाषा में उत्तर,
भारत में पंचायती राज व्यवस्था पर निबंध,
पंचायती राज व्यवस्था नोट्स - PDF mppsc mains
पंचायती राज क्या हैं शब्द का अर्थ है - ग्रामीण स्थानीय स्वशासन पद्धति , जो कि सभी राज्यों में राज्य विधानसभा द्वारा स्थापित की जाती है ,एवं इसका उद्देश्य लोकतंत्र का निर्माण करना है।
भारत में पंचायती राज संस्थाओं के गठन में महात्मा गांधी के विचारों की प्रमुख भूमिका रही है।
अर्थात यूं कहें कि भारत में पंचायती राज संस्थाओं का गठन या स्थानीय स्वशासन संस्था महात्मा गांधी के विचारों का ही मूर्त रूप हैं।
क्योंकि महात्मा गांधी हमेशा भारत की आत्मा का निवास स्थान गांव को मानते थे।
राष्ट्रपिता के इस सपने को मूर्त रूप देने के लिए संविधान निर्माताओं ने स्थानीय स्वशासन एवं पंचायतों के गठन के प्रावधानों को अनुच्छेद 40 के तहत राज्य के नीति निदेशक तत्व में सम्मिलित करके संवैधानिक रूप प्रदान किया।
चूँकि राज्य के नीति निदेशक तत्व शासन के प्रमुख कर्तव्य होते हैं और इन्हीं कर्तव्यों को पूरा करने के लिए समय-समय पर विभिन्न सरकारों ने पंचायती राज संस्थाओं को लागू करने के लिए प्रयास किए ,
भारत में पंचायती राज संस्थाओं के विकास के लिए विभिन्न समितियों का गठन …
पंचायती राज का विकास का क्रम / पंचायती राज का इतिहास /
पंचायती राज के गठन से सम्बंधित समितियां ,गठन का वर्ष एवं सिफ़ारिशें
1. पंचायती राज के गठन से सम्बंधित बलवंत राय मेहता समिति:-
इस समिति का गठन जनवरी 1957 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम 1952 एवं राष्ट्रीय विस्तार सेवा 1953 के कार्यों की जांच हेतु एवं बेहतरी हेतु हेतु किया गया था।
इस समिति के अध्यक्ष बलवंत राय मेहता थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट नवंबर 1957 को दी जिसमें समिति ने लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की योजना बनाने की सिफारिश की।
जिसे पंचायती राज के नाम से जाना जाता है।
बलवंत राय मेहता समिति द्वारा दी गई सिफारिश निम्न है:-
1. त्रिस्तरीय पंचायती राज पद्धति को अपनाया जाए, जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत हो हो, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति हो एवं जिला स्तर पर जिला परिषद हो।
2. निर्वाचन पद्धति:- ग्राम पंचायत की स्थापना प्रत्यक्ष रूप से चयनित प्रतिनिधियों द्वारा की जानी चाहिए।
पंचायत समिति एवं जिला परिषद में इन प्रतिनिधियों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से होना चाहिए।
3. पंचायती राज संस्थाओं को योजना एवं विकास कार्य सौंपा जाए।
4. पंचायत समिति को एक कार्यकारी निकाय बनाया जाए एवं जिला परिषद को सलाहकार निकाय निकाय बनाया जाए जो पर्यवेक्षण और समन्वय का कार्य भी करेंगे।
जिला परिषद के अध्यक्ष जिला अधिकारी अधिकारी होंगे।
5. इन निकायों को पर्याप्त संसाधन दिए जाएं ताकि यह सही रूप से कार्य कर सकें ।
उपरोक्त सिफारिशों को राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा जनवरी 1958 को स्वीकृत किया गया एवं यह राज्यों पर छोड़ दिया गया कि वह आवश्यकता अनुसार इसका विकास राज्यों में करें।
● 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में सर्वप्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा पंचायती राज का उद्घाटन किया गया।
तत्पश्चात आंध्र प्रदेश द्वारा 1959 में ही यह व्यवस्था लागू की गई।
1960 तक बहुत से राज्यों ने पंचायती राज को अपनाया परंतु सभी की संरचना एवं कार्य प्रणाली में अंतर था
जैसे राजस्थान में त्रिस्तरीय थी वहीं पश्चिम बंगाल में चार स्तरीय थी।
यह जानना भी आवश्यक होगा कि राजस्थान एवं आंध्र प्रदेश में पंचायत समिति में ,पंचायत समिति को मजबूत बनाया अर्थात इन्होंने विकास हेतु ब्लॉक स्तर को योजना की यूनिट बनाया।
वही महाराष्ट्र एवं गुजरात में जिला परिषद को शक्तिशाली बनाया एवं विकास की इकाई जिला परिषद् बनाई।
इस व्यवस्था प्रणाली के अलग-अलग पक्षों पर विचार करने के लिए अनेक समितियां एवं कार्य दल आदि 1960 में ही बनाए गए।
2.पंचायती राज के गठन से सम्बंधित अशोक मेहता समिति:-
पंचायती राज संस्थाओं पर दिसंबर 1977 को जनता पार्टी द्वारा अशोक मेहता की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया
जिसने अपनी रिपोर्ट 1978 में दी।
समिति के गठन का उद्देश्य पंचायती राज के गिरते प्रभाव को पुनर्जीवित करने हेतु सुझाव देना था।
.पंचायती राज के गठन से सम्बंधित अशोक मेहता समिति द्वारा दिए गए सुझाव निम्न है:-
• पंचायती राज संस्थाओं संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए।
• पंचायती राज संस्थाएं त्रिस्तरीय ना होकर द्वी स्तरीय हो ,
जिसमें एक स्तर पर जिला परिषद एवं दूसरे स्थल पर मंडल पंचायत हो।
मंडल पंचायत 15000 से 20000 जनसंख्या वाले गांवों के समूह से बनाई जाएगी।
• जिला परिषद एक कार्यकारी निकाय होगी जो राज्य स्तर पर योजनाओं के विकास के लिए जिम्मेदार होगी।
• पंचायती चुनावों में राजनीतिक पार्टियों की भागीदारी हर स्तर पर हो।
• आर्थिक स्रोतों के तौर पर पंचायती राज संस्थाओं को कराधान की शक्ति अनिवार्य रूप से दी जाए।
• जिला स्तर पर बनी समिति द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को वित्त सही रूप से पहुंच रहा है या नहीं - इसकी जांच एवं लेखा परीक्षण ।
• राज्य सरकारों को पंचायती राज संस्थाओं में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए और यदि राज्य सरकार द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है तो इस स्थिति में पुनः 6 माह में चुनाव आवश्यक रूप से होने चाहिए।
• न्याय पंचायतों को विकास पंचायतों से अलग रखा जाना चाहिए एवं योग्य न्यायाधीश को पदस्थ करना चाहिए।
• मुख्य चुनाव आयुक्त के परामर्श से राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी द्वारा पंचायती राज चुनाव करवाए जाने चाहिए।
• पंचायती राज संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले विकास कार्य जिला परिषद को स्थानांतरित किए जाने चाहिए एवं सभी कार्य इसी की निगरानी में होना चाहिए।
• अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में उन्हें सीटों में आरक्षण मिलना चाहिए।
जनता पार्टी की सरकार इस समिति का कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही भंग हो गई ,अतः केंद्र स्तर पर इन सिफारिशों पर कोई काम नहीं हुआ।
तीन राज्यों में ये सिफारिशें लागू हुई है -कर्नाटक, पश्चिम बंगाल एवं आंध्र प्रदेश।
3. पंचायती राज के गठन से सम्बंधित पी .वी.के. राव समिति
योजना आयोग द्वारा सन 1985 में पी . वी. के. राव की अध्यक्षता में गरीबी उन्मूलन एवं ग्रामीण विकास की समीक्षा हेतु मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए इस समिति का गठन किया गया।
जांच के पश्चात समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि विकास प्रक्रिया केवल दफ्तरों तक ही सीमित रह गई है और पंचायती राज से अलग हो गई है।
साथ ही यह भी कहा कि नौकरशाही करण से संस्थाओं की स्थिति में में गिरावट आई है जिसके परिणाम स्वरूप इसे बिना जड़ की घास कहा गया।
निष्कर्ष देने के पश्चात इस समिति ने कुछ सुझाव प्रस्तुत किए जो निम्न है:-
• लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में जिला परिषद को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए।
• कुछ मामलों का राज्य स्तर से जिला स्तर पर हस्तांतरण किया जाना चाहिए।
• जिला विकास आयुक्त पद का सृजन करना चाहिए जो जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी हो
सभी विकास विभागों के प्रभारी के रूप में कार्य करें ।
• पंचायती राज संस्थाओं में नियमित निर्वाचन होना चाहिए।
1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा लोकतंत्र के विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं का पुनरुद्धार करने हेतु एल. एम. सिंघवी समिति का गठन किया गया
जिसकी अध्यक्षता एल एम सिंघवी सिंघवी द्वारा की गई थी।
• पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए एवं संविधान में नया अध्याय जोड़ा जाना चाहिए इसमें संस्थाओं के निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव हेतु उपबंद किया जा सके।
• गांव के समूहों के लिए न्याय पंचायतों की स्थापना की जानी चाहिए।
• ग्राम पंचायत को अधिक व्यावहारिक बनाने हेतु गावों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए ,जिसमें ग्राम सभा की महत्ता पर जोर दिया जाए एवं उसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र की मूर्ति बनाया जाए।
• गांव की पंचायतों को जितना अधिक हो सके उतना अधिक आर्थिक संसाधन उपलब्ध करवाए जाने चाहिए।
,• किसी विवाद के होने पर उसके निपटारे के लिए कोई न्यायिक अधिकारी की स्थापना की जानी चाहिए।
1988 में सरकार की सलाहकार समिति की उप समिति के रूप में के थुंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया ,
जिसका उद्देश्य राजनीतिक तथा प्रशासनिक ढांचे की जांच करना था।
समिति द्वारा पंचायती राज संस्थाओं हेतु निम्न सुझाव दिए गए:-
• पंचायती राज संस्थाओं संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए।
• गांव स्तर तथा जिला स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था होनी चाहिए।
• पंचायती राज व्यवस्था की धुरी जिला परिषद होनी चाहिए जो विकास एवं योजना निर्माण का कार्य एक एजेंसी के रूप में करें।
• पंचायती राज व्यवस्था में कार्यकाल को 5 वर्ष के लिए निश्चित किया जाना चाहिए।
• पंचायती राज पर विषय सूची बनाई जानी चाहिए एवं उसे संविधान में समाहित किया जाना चाहिए।
• तीनों स्तरों पर जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाना चाहिए
एवं महिलाओं को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
• राज्यों में वित्त आयोग का गठन किया जाना चाहिए जो पंचायती राज में वित्त वितरण के मानदंड तय करेगा।
• जिला परिषद का मुख्य पदाधिकारी या मुख्य कार्यकारी अधिकारी कलेक्टर होगा।
1988 कांग्रेस पार्टी द्वारा वी. एन. गाडगिल की अध्यक्षता में पंचायती राज संस्थाओं को प्रभाव कारी बनाने के उद्देश्य से गाडगिल समिति का गठन किया गया।
• पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दी जाए।
• पंचायती राज व्यवस्था त्रिस्तरीय हो जो गांव -प्रखंड एवं जिला स्तर में विभाजित हो।
• पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया जाना चाहिए।
• तीनों स्तरों पर सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन होना चाहिए।
,• अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
• पंचायत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास हेतु योजना निर्माण एवं उनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं की होनी चाहिए।
• पंचायती राज संस्थाओं को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह कर लगा सकें तथा उसे जमा कर सकें या वसूल कर सके।
• संस्थाओं में वित्त उपलब्धि हेतु राज्य वित्त आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।
• पंचायतों में चुनाव करवाने हेतु राज्य चुनाव आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।
उपरोक्त विभिन्न समितियों की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए अंततः भारत की संसद ने 1992 -93 में 73 वाँ संशोधन पारित किया ,
यह संशोधन महात्मा गांधी के सपनों को मूर्त रूप देने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ तथा इसी संशोधन के तहत भारत में पंचायती राज संस्थाओं को ना केवल स्थापित किया गया बल्कि उन को संवैधानिक दर्जा भी प्रदान किया गया।
73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया
73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायत के सभी स्तरों पर एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया गया।
73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए निर्धारित किया गया
5 वर्ष से पूर्व पंचायतों के भंग होने की स्थिति में 6 माह के भीतर चुनाव करवाने के प्रावधान किए गए।
पंचायतों के विभिन्न कार्यों को संपादित करने के लिए धन की पूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि से अनुदान देने के प्रावधान किए गए।
73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों को कार्य करने के लिए कुल 29 विषय प्रदान किए गए तथा उनको संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया साथ ही साथ संविधान में भाग 9 जोड़ा गया।
पंचायती राज्य संस्थाओं या स्थानीय स्वशासन का मूल उद्देश्य सत्ता का विकेंद्रीकरण करना एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करके लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करना है।
भारत में पंचायती राज का शुभारंभ अर्थात प्रथम ग्राम पंचायत का गठन 2 अक्टूबर 1959 ईस्वी को राजस्थान के नागौर जिले के अंदर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के द्वारा किया गया किया गया
भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक लॉर्ड रिपन को माना जाता है, क्योंकि लॉर्ड रिपन के ही शासनकाल 1882 ईसवी में स्थानीय स्वशासन की नींव रखी गई थी, इसी कारण से उन्हें स्थानीय स्वशासन का पिता भी कहा जाता है।
किसी ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले उन सभी व्यक्तियों जिनकी आयु 18 वर्ष अथवा इससे अधिक है तथा जिनका नाम उस ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में सम्मिलित हो उनको मिलाकर ग्राम सभा का गठन होता है।
ग्राम सभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है।
जांच के पश्चात समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि विकास प्रक्रिया केवल दफ्तरों तक ही सीमित रह गई है और पंचायती राज से अलग हो गई है।
साथ ही यह भी कहा कि नौकरशाही करण से संस्थाओं की स्थिति में में गिरावट आई है जिसके परिणाम स्वरूप इसे बिना जड़ की घास कहा गया।
निष्कर्ष देने के पश्चात इस समिति ने कुछ सुझाव प्रस्तुत किए जो निम्न है:-
• लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में जिला परिषद को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए।
• कुछ मामलों का राज्य स्तर से जिला स्तर पर हस्तांतरण किया जाना चाहिए।
• जिला विकास आयुक्त पद का सृजन करना चाहिए जो जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी हो
सभी विकास विभागों के प्रभारी के रूप में कार्य करें ।
• पंचायती राज संस्थाओं में नियमित निर्वाचन होना चाहिए।
4. पंचायती राज के गठन से सम्बंधित एल.एम.सिंघवी समिति:-
1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा लोकतंत्र के विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं का पुनरुद्धार करने हेतु एल. एम. सिंघवी समिति का गठन किया गया
जिसकी अध्यक्षता एल एम सिंघवी सिंघवी द्वारा की गई थी।
पंचायती राज के गठन से सम्बंधित एल.एम.सिंघवी समिति द्वारा निम्न सुझाव दिए गए:-
• पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए एवं संविधान में नया अध्याय जोड़ा जाना चाहिए इसमें संस्थाओं के निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव हेतु उपबंद किया जा सके।
• गांव के समूहों के लिए न्याय पंचायतों की स्थापना की जानी चाहिए।
• ग्राम पंचायत को अधिक व्यावहारिक बनाने हेतु गावों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए ,जिसमें ग्राम सभा की महत्ता पर जोर दिया जाए एवं उसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र की मूर्ति बनाया जाए।
• गांव की पंचायतों को जितना अधिक हो सके उतना अधिक आर्थिक संसाधन उपलब्ध करवाए जाने चाहिए।
,• किसी विवाद के होने पर उसके निपटारे के लिए कोई न्यायिक अधिकारी की स्थापना की जानी चाहिए।
5. . पंचायती राज के गठन से सम्बंधित थुंगन समिति:-
1988 में सरकार की सलाहकार समिति की उप समिति के रूप में के थुंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया ,
जिसका उद्देश्य राजनीतिक तथा प्रशासनिक ढांचे की जांच करना था।
समिति द्वारा पंचायती राज संस्थाओं हेतु निम्न सुझाव दिए गए:-
• पंचायती राज संस्थाओं संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए।
• गांव स्तर तथा जिला स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था होनी चाहिए।
• पंचायती राज व्यवस्था की धुरी जिला परिषद होनी चाहिए जो विकास एवं योजना निर्माण का कार्य एक एजेंसी के रूप में करें।
• पंचायती राज व्यवस्था में कार्यकाल को 5 वर्ष के लिए निश्चित किया जाना चाहिए।
• पंचायती राज पर विषय सूची बनाई जानी चाहिए एवं उसे संविधान में समाहित किया जाना चाहिए।
• तीनों स्तरों पर जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाना चाहिए
एवं महिलाओं को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
• राज्यों में वित्त आयोग का गठन किया जाना चाहिए जो पंचायती राज में वित्त वितरण के मानदंड तय करेगा।
• जिला परिषद का मुख्य पदाधिकारी या मुख्य कार्यकारी अधिकारी कलेक्टर होगा।
6.पंचायती राज के गठन से सम्बंधित गाडगिल समिति:-
1988 कांग्रेस पार्टी द्वारा वी. एन. गाडगिल की अध्यक्षता में पंचायती राज संस्थाओं को प्रभाव कारी बनाने के उद्देश्य से गाडगिल समिति का गठन किया गया।
.पंचायती राज के गठन से सम्बंधित गाडगिल समिति द्वारा निम्न सुझाव दिए गए:-
• पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दी जाए।
• पंचायती राज व्यवस्था त्रिस्तरीय हो जो गांव -प्रखंड एवं जिला स्तर में विभाजित हो।
• पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया जाना चाहिए।
• तीनों स्तरों पर सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन होना चाहिए।
,• अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
• पंचायत क्षेत्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास हेतु योजना निर्माण एवं उनके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं की होनी चाहिए।
• पंचायती राज संस्थाओं को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह कर लगा सकें तथा उसे जमा कर सकें या वसूल कर सके।
• संस्थाओं में वित्त उपलब्धि हेतु राज्य वित्त आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।
• पंचायतों में चुनाव करवाने हेतु राज्य चुनाव आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।
उपरोक्त विभिन्न समितियों की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए अंततः भारत की संसद ने 1992 -93 में 73 वाँ संशोधन पारित किया ,
यह संशोधन महात्मा गांधी के सपनों को मूर्त रूप देने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ तथा इसी संशोधन के तहत भारत में पंचायती राज संस्थाओं को ना केवल स्थापित किया गया बल्कि उन को संवैधानिक दर्जा भी प्रदान किया गया।
73वें संविधान संशोधन के प्रमुख प्रावधान
73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया
73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायत के सभी स्तरों पर एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया गया।
73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए निर्धारित किया गया
5 वर्ष से पूर्व पंचायतों के भंग होने की स्थिति में 6 माह के भीतर चुनाव करवाने के प्रावधान किए गए।
पंचायतों के विभिन्न कार्यों को संपादित करने के लिए धन की पूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि से अनुदान देने के प्रावधान किए गए।
73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों को कार्य करने के लिए कुल 29 विषय प्रदान किए गए तथा उनको संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया साथ ही साथ संविधान में भाग 9 जोड़ा गया।
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पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य एवं प्रश्न उत्तर-
पंचायती राज संस्थाओं या स्थानीय स्वशासन का मूल उद्देश्य क्या है?
पंचायती राज्य संस्थाओं या स्थानीय स्वशासन का मूल उद्देश्य सत्ता का विकेंद्रीकरण करना एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करके लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करना है।
भारत में पहली ग्राम पंचायत का गठन कब और कहां किया गया ?
भारत में पंचायती राज का शुभारंभ अर्थात प्रथम ग्राम पंचायत का गठन 2 अक्टूबर 1959 ईस्वी को राजस्थान के नागौर जिले के अंदर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के द्वारा किया गया किया गया
भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक किसे माना जाता है ?
भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक लॉर्ड रिपन को माना जाता है, क्योंकि लॉर्ड रिपन के ही शासनकाल 1882 ईसवी में स्थानीय स्वशासन की नींव रखी गई थी, इसी कारण से उन्हें स्थानीय स्वशासन का पिता भी कहा जाता है।
ग्राम सभा किसे कहते हैं?
किसी ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले उन सभी व्यक्तियों जिनकी आयु 18 वर्ष अथवा इससे अधिक है तथा जिनका नाम उस ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में सम्मिलित हो उनको मिलाकर ग्राम सभा का गठन होता है।
ग्राम सभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए ?
ग्राम सभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है।
ग्राम पंचायत अध्यक्ष अर्थात सरपंच बनने के लिए न्यूनतम आयु कितनी आवश्यक है?
ग्राम पंचायत अध्यक्ष अर्थात सरपंच पद के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
ग्राम पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव किस प्रकार होता है?
ग्राम पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव ग्राम सभा के सदस्यों के प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा होता है।
जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव किस प्रकार होता है?
जिला पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है, इसमें उस जिले के अंतर्गत आने वाली सभी जनपद या आंचलिक पंचायत के अध्यक्ष एवं जिला पंचायत के सदस्य मिलकर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते हैं
भारत में 73 वा संविधान संशोधन किस तिथि को लागू हुआ ?
भारत में 73 वा संविधान संशोधन 24 अप्रैल 1993 को लागू हुआ।
पंचायती राज दिवस किस तिथि को मनाया जाता है ?
पंचायती राज दिवस प्रतिवर्ष 24 अप्रैल को मनाया जाता है।
24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाने का मूल कारण यह है कि 73 वा संविधान संशोधन 24 अप्रैल 1993 को ही पूरे देश में लागू किया गया था
भारत में वर्तमान समय में किन राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं है?
वर्तमान समय में भारत में 3 राज्य -नागालैंड मेघालय एवं मिजोरम तथा 1 केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में पंचायती राज व्यवस्था के प्रावधान लागू नहीं है अर्थात इन राज्यों में पंचायत नहीं है।
अगर पंचायतें 5 वर्ष से कम समय में विघटित हो जाती है तो चुनाव करवाने की क्या प्रावधान है ?
अगर पंचायत 5 वर्ष के कार्यकाल से पूर्व विघटित हो जाती है तो 6 महीने के अंदर दोबारा निर्वाचन करवाने के प्रावधान है ।
यह निर्वाचन पंचायत की शेष अवधि के लिए मान्य होता
अगर कोई ग्राम पंचायत अपने कार्यकाल को पूरा करने से मात्र 6 महीने पहले विघटित होती है तब निर्वाचन के क्या प्रावधान है?
अगर कोई ग्राम पंचायत अपनी निर्धारित अवधि से 6 महीने से कम समय पूर्व ही विघटित हो जाती है तब इस स्थिति में शेष अवधि के लिए निर्वाचन नहीं करवाया जाता है
अब निर्वाचन पूरे 5 वर्ष के लिए होगा।
मध्यप्रदेश में पंचायतों में महिलाओं के लिए कितने आरक्षण का प्रावधान किया गया है ?
मध्य प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था की गई है
संविधान में पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण से संबंधित क्या प्रावधान किए गए हैं?
पंचायतों में एक तिहाई स्थान अर्थात 33% आरक्षण महिलाओं के लिए निर्धारित किया गया है।
पंचायती राज्य संस्थाओं को 73वें संविधान संशोधन के द्वारा कार्य करने हेतु कितने विषय प्रदान किए गए?
73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों को कार्य करने हेतु कुल 29 विषय प्रदान किए गए हैं इन विषयों का वर्णन 11वीं अनुसूची में किया गया है।
ग्राम पंचायत का अध्यक्ष अर्थात सरपंच किस संस्था का पदेन सदस्य भी होता है ?
ग्राम पंचायत अध्यक्ष अर्थात सरपंच जिला पंचायत जिसे आंचलिक पंचायत या प्रखंड पंचायत भी कहा जाता है का पदेन सदस्य भी होता है।
स्थानीय स्वशासन किसे कहते हैं ?#
स्थानीय स्वशासन का तात्पर्य ऐसे शासन से है जिसमें राज्य या प्रांतों को छोटे-छोटे प्रशासकीय खंडों एवं उप खंडों में विभाजित कर दिया जाता है, इसके अंतर्गत जनता अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करती है ,जिससे उनमें राजनीतिक चेतना का विकास होता है ,भारत में स्थानीय स्वशासन के अंतर्गत पंचायती राज तथा नगरीय निकाय नगर पालिका नगर निगम स्थापित किए गए हैं।
ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइए?
ग्राम सभा के प्रमुख कार्य निम्न है -
ग्रामीण विकास से संबंधित कार्य,
ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की गांव की आवश्यकता अनुसार प्राथमिकता निर्धारित करना
ग्राम पंचायत के कार्यों में पारदर्शिता लाना
ग्रामीण समाज में सौहार्द एवं एकता बनाना
आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बजट पर विचार विमर्श करना
ग्राम पंचायतों की सदस्यों से आय व्यय का दौरा मांगना।
ग्राम सभा के संवैधानिक प्रावधान किस अनुच्छेद में दिए गए हैं ?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 A मे ग्राम सभा का प्रावधान किया गया है
पंचायतों के निर्वाचन संबंधी प्रावधान किस अनुच्छेद में किए गए हैं ?
भारत में पंचायतों के निर्वाचन संबंधी प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 K में पंचायतों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग के गठन का प्रावधान एवं उससे संबंधित शर्तें अवधि आदि के प्रावधान किए गए हैं।
ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु कितनी निर्धारित की गई है?
ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
ग्राम पंचायतें अपनी आय के लिए कौन-कौन से कर लगा सकती है?
73वें संविधान संशोधन के तहत ग्राम पंचायतों को अपनी आय के लिए कुछ कर लगाने की शक्ति दी गई हैयह कर निम्नलिखित है
पंचायतों के आय के स्रोत पंचायत --
अपनी आय के लिए निम्नलिखित करो का उपयोग कर सकती है
मनोरंजन कर ,दुग्ध उत्पादन कर, चूल्हा कर ,पशुओं की पंजीयन फीस , गांव के मेले बाजार आदि पर कर ,सड़कों नालियों की सफाई तथा प्रकाश पर कर ,कूड़ा करकट तथा मृत पशुओं की बिक्री से आए।,राज्य सरकारों द्वारा अनुदान
ग्राम पंचायतों के अनिवार्य कार्य बताइए?
ग्राम पंचायतों की अनिवार्य कार्य निम्नलिखित है-
पेयजल की व्यवस्था करना ,
प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा का प्रबंधन करना
सड़कों व नालियों को बनवाना
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की रक्षा के लिए व्यवस्था करना
सार्वजनिक स्थानों की व्यवस्था करना
कृषि एवं भूमि का विकास करना
ग्रामीण विकास के कार्यों को सहयोग प्रदान करना
लोक व्यवस्था में सरकार को सहायता प्रदान करना
हॉट व बाजारों का प्रबंधन करना आदि।
न्याय पंचायत किसे कहते हैं ?
ग्राम वासियों को सस्ता और शीघ्र न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से 73वें संविधान संशोधन द्वारा एक न्याय पंचायत की व्यवस्था की गई जो का या तीन या चार पंचायतों के लिए एक न्याय पंचायत होगी ,
इसमें कुछ सदस्य मनोनीत तथा कुछ निर्वाचित पंचायतों के द्वारा होते हैं
इसकी अधिकारिता छोटे दीवानी व फौजदारी मामलों तक सीमित होती है तथा दंड स्वरूप यह केवल ₹50 से लेकर अधिकतम ₹1000 तक का जुर्माना लगा सकती है
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