सिंधु घाटी सभ्यता की रोचक कहानी
हड़प्पा सभ्यता की खोज,
सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति,
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है?
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार
सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताएं
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना का वर्णन ,
हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन ,
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था समाज और धर्म का वर्णन
सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
हड़प्पा सभ्यता की लिपि,
हड़प्पा सभ्यता की मुहरें,
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था
सिंधु घाटी सभ्यता प्रश्नोत्तरी
सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रश्न
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
हड़प्पा सभ्यता से संबंधित प्रश्न उत्तर
सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर
सिंधु घाटी सभ्यता बहुविकल्पीय प्रश्न
सिन्धु घाटी सभ्यता सामान्य ज्ञान
सिंधु घाटी सभ्यता की मूर्तिकला/ वास्तुकला
हड़प्पा सभ्यता की फोटो
सिंधु घाटी सभ्यता के बंदरगाह
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारण
सिंधु घाटी सभ्यता की देन
सिंधु घाटी सभ्यता का प्रारम्भ
सर्वप्रथम चार्ल्स मेंसन ने 1826 ईस्वी में हड़प्पा नामक स्थल पर एक प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिलने की पुष्टि की थी ,1921 ईस्वी में भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल थे ,तब रायबहादुर दयाराम साहनी ने 1921 ईस्वी में हड़प्पा की तथा राखल दास बनर्जी 1922 ईस्वी में मोहनजोदड़ो की खुदाई करवाई थी
डीपी अग्रवाल ने रेडियो कार्बन C-14 तकनीक के अनुसार सिंधु सभ्यता की तिथि 2350 ईसापूर्व से 1750 ईसा पूर्व मानी गई है, यह सभ्यता 400 - 500 वर्षों तक विद्यमान रही, तथा 2200 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व के मध्य तक यह अपनी परिपक्व अवस्था में थी,
नवीन शोध के अनुसार यह सभ्यता लगभग 8000 साल पुरानी है, अभी तक उत्खनन तथा अनुसंधान द्वारा करीब 2800 स्थल ज्ञात किए गए हैं
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है?
हड़प्पा सभ्यता
➥इस सभ्यता का सबसे उपयुक्त नाम हड़प्पा सभ्यता है ,क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा स्थल को ही खोजा गया था,
➥सिंधु सभ्यता :
हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक स्थल सिंधु नदी के आसपास अधिक केंद्रित थे अत:इसे सिंधु सभ्यता कहा गया
➥सिंधु सरस्वती सभ्यता
हड़प्पा का मुख्य क्षेत्र सिंधु घाटी नहीं बल्कि सरस्वती तथा उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र था ,जो सिंधु व गंगा के बीच स्थित था ,इसीलिए कुछ विद्वानों इसे सिंधु सरस्वती सभ्यता भी कहते हैं
➥कांस्य युगीन सभ्यता :
सिंधु वासियों ने प्रथम बार तांबे में टीन मिलाकर कासा तैयार किया था ,अतः इसे कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाता है
➥प्रथम नगरीय क्रांति
सिंधु सभ्यता को प्रथम नगरीय क्रांति भी कहा जाता है ,क्योंकि भारत में प्रथम बार नगरों का उदय इसी सभ्यता के समय हुआ
सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माताओं के निर्धारण का महत्वपूर्ण स्त्रोत उत्खनन से प्राप्त मानव कंकाल है ,सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं,इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंधु सभ्यता में चार प्रजातियां निवास करती थी
भूमध्य सागरीय ,प्रोटो ऑस्ट्रेलायड,अल्पाइन तथा मंगोलॉयड, सबसे ज्यादा भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग थे
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार/सिंधु घाटी सभ्यता कहाँ तक फैली थी ?
सिंधु घाटी सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता थी ,जिसका उद्भव ताम्र पाषाण काल में भारत के पश्चिमी क्षेत्र में हुआ था ,और इसका विस्तार भारत के अलावा पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्रों में भी था
सिंधु सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा (जम्मू चिनाब )से लेकर दक्षिण में दैमाबाद (महाराष्ट्र गोदावरी जिला अहमदनगर )तथा पश्चिम में सुत्कागेडोर (बलूचिस्तान दाश्क नदी )से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर( जिला मेरठ उत्तर प्रदेश हिडन )नदी तक था
वहां उत्तर से दक्षिण लगभग 1100 किलोमीटर तक तथा पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 किलोमीटर तक फैली हुई थीसिंधु घाटी सभ्यता अपने त्रिभुजाकार स्वरूप में थी ,जिसका क्षेत्रफल लगभग 1300000 वर्ग किलोमीटर या 1299600 वर्ग किलोमीटर है
➥सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उनके खोज कर्ता
➥हड़प्पारावी नदी उत्खनन कर्ता रायबहादुर दयाराम साहनी वर्ष 1921 स्थिति पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोटगोमरी जिला
साक्ष्य =कांस्य गाड़ी ,अन्ना गार चित्रित मुद्रा शंख का बैल ,उर्वरता की देवी स्वास्तिक चिन्ह
➥मोहनजोदड़ो -
सिंधु नदी ,राखल दास बनर्जी ने 1922 ,पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला,
साक्ष्य =पुरोहितों का आवास वृहत स्नानागार पशुपतिनाथ की मूर्ति कांस्य की नर्तकी की मूर्ति 16 मकानों का बैरक, चमकता हुआ बंदर का चित्र, एक श्रृंगी पशुओं वाली मुद्रा मातृ देवी की मूर्ति
➥चन्हूदडो -
सिंधु नदी , गोपाल मजूमदार खोजकर्ता ,उत्खनन कर्ता अर्नेस्ट मेंके 1934 - 35 , सिंध प्रांत पाकिस्तान
साक्ष्य =लिपस्टिक पाउडर काजल के साक्ष्य ,कांस्य की गाड़ी ,वृक्काकार ईटे, मनके बनाने का कारखाना ,बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते का साक्ष्य ,दो मछलियों के अंकन वाली मुद्राएं
➥कोटदीजी -
सिंधु नदी , खोजकर्ता -घुरये फजल अहमद खाँ, 1935 /1953 /1955 पाकिस्तान के सिंध प्रांत का खेरपुर स्थान
साक्ष्य =किले बंदी का साक्ष्य नहीं कच्ची ईंटों के मकान व चूल्हे
➥कालीबंगा -
घग्घर नदी , खोज अमलानंद घोष 1953 ,बी बी लाल 1961 और बी के थापर ने खुदाई की,राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला
साक्ष्य =जूते हुए खेत के साक्ष्य ,लकड़ी की नाली ,भूकंप के साक्ष्य, अग्नि हवन कुंड ,अलंकृत ईटे एक साथ दो फसल बोने के साक्ष्य ,चूड़ियां अनेक प्रकार के बर्तन तांबे के औजार मिट्टी की मूर्तियां तथा खिलौने पूर्ण आंशिक सामाधिकरण एवं दाह संस्कार के प्रमाण मिले हैं
➥राखीगढ़ी -
घग्घर नदी ,सूरजभान 1969 हरियाणा का हिसार जिला
साक्ष्य =ताम्र उपकरण हड़प्पा लिपि मुद्रा रक्षा प्राचीर के साक्ष्य
➥बन्नावाली -
रंगोइ रविंद्र सिंह विष्ट 1973 - 74 हरियाणा का हिसार जिला
साक्ष्य -जौ ,मिट्टी का हल, सड़कों पर बैलगाड़ी के पहिए का साक्ष्य, बहुत कुछ कालीबंगा से मिलते जुलते हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा कालीन दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं
➥रोपड़ -
सतलज नदी , खोज बृजवासी लाल उत्खनन यज्ञदत्त शर्मा 1950 /1953 /1956 पंजाब का रोपड़ जिला
साक्ष्य =मानव के साथ कुत्ते दफनाने का साक्ष्य ,तांबे की कुल्हाड़ी
➥आलमगीरपुर -
हिन्डन नदी , यज्ञदत्त शर्मा 1958 उत्तरप्रदेश का मेरठ जिला
साक्ष्य =मृदभांड बर्तनों पर मरी गिलहरी की चित्रकारी
➥धोलावीरा -
खोज जगपत जोशी 1967-68 उत्खनन रविंद्र सिंह विष्ट 1990 - 91 गुजरात का कच्छ जिला
साक्ष्य = यह भारत में सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर है
एकमात्र नगर जो तीन भागों में विभक्त था दुर्ग भाग ,मध्यम नगर निचला नगर ,मकान कच्ची ईटों से बने थे ,
सिंधु लिपि के 10 बड़े चिन्हों से निर्मित शिलालेख पालीशदार श्वेत पत्थर बड़ी संख्या में प्राप्त किए हैं,
हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र खेल का मैदान मिला है
➥सुत्कागेडोर -
दाश्क नदी ,खोज -आंरेन स्टाइन 1927 जार्ज डेल्स 1962 ,पाकिस्तान के बलूचिस्तान के मकरान में समुद्र तट के किनारे
साक्ष्य =नगर दुर्ग और बंदरगाह का पता लगाया तीन संस्कृतियों के अवशेष मानव अस्थियों से भरा बर्तन बेबीलोन से व्यापार का साक्ष्य
➥सुरकोटदा -
सरस्वती नदी , जगपत जोशी 1964 गुजरात का कच्छ जिला
साक्ष्य =घोड़े की अस्थियां ,कलश ,शवाधान ,तराजू का पलड़ा
➥सुत्काकोह -
शादीकौर जार्ज डेल्स 1962 पाकिस्तान के बलूचिस्तान का पेरिन
साक्ष्य =दो टीले व बर्तनों के मृदभांड मिले
➥लोथल -
भोगवा नदी ,रंगनाथ राव 1955 - 62 गुजरात का अहमदाबाद जिला
साक्ष्य =तीन युग्मित समाधि ,वृत्ताकार तथा चौकोर अग्निवेदिका ,चावल और बाजरे का साक्ष्य ,फारस की मुहर राक्षस का अंकन ,घोड़े के साक्ष्य ,पूर्ण हाथी दांत ,मनका बनाने के कारखाने, चालाक लोमड़ी का साक्ष्य
➥रंगपुर -
मादर नदी, रंगनाथ राव 1953 - 54 माधव स्वरूप वत्स 1931 गुजरात का अहमदाबाद जिला
साक्ष्य =कच्ची ईंटों के दुर्ग, नालियां ,मृदभांड ,बांट पत्थर के फलक और मिट्टी के पिंड, तीन संस्कृतियों के अवशेष ,कच्ची ईंट दुर्ग धान की भूसी ज्वार ,बाजरा
➥मांडा -
चेनाब नदी ,जगपति जोशी 1982
साक्ष्य =चर्ट ब्लेड हड्डी के बाणाग्र मुहर मिले
हड़प्पा सभ्यता से संबंधित प्रश्न उत्तर
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना का वर्णन /
हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन
सिंधु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी, जिसका ज्ञान इसके पुरातात्विक अवशेषों तथा अनुसंधानो से होता है ,इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी - पर्यावरण के अनुकूल इसका अद्भुत नगर नियोजन तथा जल निकास प्रणाली
इस व्यवस्था का वर्णन निम्न बिन्दुओं के आधार पर कर सकते हैं =
➥शहर विभाजन-
मोहनजोदडो हड़प्पा आदि से प्राप्त अवशेष के आधार पर हम कह सकते हैं कि नगर दो भागों में विभाजित था पश्चिमी भाग ऊंचा तथा दुर्ग कहलाता था जबकि पूर्वी भाग निचला व शहर कहलाता था
➥नगर विन्यास -
नगर विन्यास में ग्रीड पद्धति अपनाई थी
➥सड़कें -
सिंधु सभ्यता कालीन नगरों में चोडी-चोडी सड़के ,पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर जाती थी, जो प्रायः एक दूसरे को समकोण पर काटती थी, सड़कों के किनारे की नालियां ऊपर से ढकी होती थी ,घरों का गंदा पानी इन्हीं नालियों से होता हुआ नगर की मुख्य नाली में गिरता था
➥जल प्रबंधन -
नगरों में जल निकासी की समुचित व्यवस्था होती थी ,सड़कों के किनारे नालियां होती थी जो पक्की व ढकी हुई होती थी
➥भवन निर्माण -
कालीबंगा व रंगपुर को छोड़कर सभी में पक्की हुई ईटों का प्रयोग हुआ है ,आमतौर पर प्रत्येक घर में एक आंगन एक रसोई घर तथा एक स्नानागार होता था अधिकांश घरों में कुओं के अवशेष भी मिले हैं
➥सार्वजनिक स्थल-
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार ,सिंधु सभ्यता का अद्भुत निर्माण है जबकि अन्नागार सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत हैं
घरों के दरवाजे एवं खिड़कियां मुख्य सड़क पर न खुलकर गलियों में खुलती थी, लेकिन लोथल इसका अपवाद है यद्यपि मकान बनाने में कई प्रकार की ईटों का प्रयोग होता था ,जिसमें 4:2:1 क्रमशः (लंबाई चौड़ाई तथा मोटाई का अनुपात) के आकार की है ज्यादा प्रचलित थी
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता एक सुव्यवस्थित नगर नियोजित व्यवस्था तथा विकसित थी, वर्तमान में स्मार्ट सिटी के अंतर्गत इस सभ्यता की व्यवस्था को अपनाये जाने की कोशिश की जा रही है
हड़प्पा सभ्यता का स्वरूप:-हड़प्पा सभ्यता की लिपि, हड़प्पा सभ्यता की मुहरें, हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था
➥सामाजिक जीवन :-
उत्खनन से प्राप्त सामग्री से सिंधु सभ्यता के लोगों की सामाजिक स्थिति, विशेषकर तत्कालीन खानपान वेशभूषा आभूषण आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ,
सामाजिक जीवन को निम्न प्रकार से समझ सकते हैं
सामाजिक संगठन ➤सिंधु सभ्यता का समाज जातियों में विभाजित नहीं था ,संपूर्ण समाज यद्यपि चार वर्णो विद्वान ,योद्धा ,व्यापारी एवं श्रमिक में विभाजित था, किंतु वर्ण का निर्धारण संभवत जन्म के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर किया जाता था
भोजन ➤ इस सभ्यता के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे ,इस सभ्यता के निवासियों का मुख्य भोजन गेहूं जो दूध फल और मास था
वेशभूषा ➤ सिंधु सभ्यता के अंतर्गत उत्खनन से प्राप्त मूर्तियों से तत्कालीन लोगों की वेशभूषा के बारे में जानकारी मिलती है, सिंधु सभ्यता के स्त्री और पुरुषों की वेशभूषा प्रायः समान थी ,इस सभ्यता के लोग सूती व ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे
प्रसाधन सामग्री एवं आभूषण➤ हड़प्पावासी साज सज्जा पर विशेष ध्यान देते थे ,स्त्री एवं पुरुष दोनों आभूषण धारण करते थे, यहां से प्रसाधन मंजूषा मिलि हे ,चन्हूदडो से लिपिस्टिक के साक्ष्य मिले हैं
आमोद प्रमोद के साधन ➤ सिंधु सभ्यता के विभिन्न स्थलों की खुदाई में क्रीडा तथा मनोविनोद की अनेक वस्तुएं प्राप्त हुई है ,इस सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधन शिकार करना मछली पकड़ना पशु पक्षियों को लड़ाना चोपड़ व पाशा खेलना ढोल व वीणा बजाना आदि थे
राजनीतिक जीवन :-
हड़प्पाईयो के राजनीतिक संगठन का कोई स्पष्ट आभास नहीं है फिर भी विभिन्न विद्वानों ने इस विषय पर विभिन्न मत प्रतिपादित किए हैं, जो इस प्रकार है =
हंटर के अनुसार "मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक था।"
व्हीलर के अनुसार " सिंधु सभ्यता के लोगों का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी। "
मेके के अनुसार " हड़प्पा सभ्यता में जनप्रतिनिधि का शासन रहा होगा।"
किंतु इन मतों के समर्थन में भी कोई पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं
डॉ आर एस शर्मा के अनुसार हड़प्पा सभ्यता अपने नगरीकरण के लिए प्रसिद्ध थी ,चूंकि यहां के नगरीकरण का प्रमुख आधार उन्नत वाणिज्य एवं व्यापार था।, अत:हड़प्पा सभ्यता का शासन संभवत:वणिक वर्ग के हाथों में रहा होगा।
उपर्युक्त सभी मतों में से यद्यपि डॉ आर एस शर्मा का मत सर्वाधिक तार्किक प्रतीत होता है, तथपि इस संबंध में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने हेतु अभी और भी पुरातात्विक खोजो एवं अनुसंधान की आवश्यकता है
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था
आर्थिक जीवन ➤ सिंधु सभ्यता के विभिन्न स्थलों के उत्खनन से प्राप्त किए गए अवशेषों से ज्ञात होता है कि सिंधु सभ्यता के लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी जो इस प्रकार है -
कृषि ➤ सिंधु सभ्यता के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था, यहां गेहूं कपास मटर तिल तथा विभिन्न प्रकार के फूल उगाए जाते थे ,सेंधव नगरों में कृषि पदार्थों की आपूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों से होती थी इसलिए अन्नागार नदियों के किनारे बनाए गए थे
पशुपालन ➤ सिंधु सभ्यता के लोग कृषि के अतिरिक्त पशुपालन भी करते थे, पुरातात्विक स्रोतों से ज्ञात होता है कि ये लोग गाय बैल भेड़ भैंस बकरी व कुत्ता आदि पालते थे,
ये लोग संभवत: अश्व से अपरिचित थे गुजरात के निवासी हाथी पालते थे
व्यापार एवं वाणिज्य ➤सिंधु सभ्यता के लोग सुमेरिया ,बेबीलोन ,अफगानिस्तान, बलूचिस्तान ,मिस्त्र आदि देशों से व्यापार करते थे ,वैदेशिक व्यापार थल व जल दोनों ही मार्गो से किया जाता था ,थल पर बैलगाड़ियों एवं जल में जहाजों का प्रयोग किया जाता था,
सिंधु घाटी सभ्यता के बंदरगाह➤
इस सभ्यता के प्रमुख बंदरगाह लोथल और सुत्काकोह थे
माप तोल प्रणाली ➤ हड़प्पा सभ्यता में माप की दशमलव प्रणाली तथा माप तोल की इकाई 16 के गुणांक मैं होती थी, वाणिज्य व्यापार में मानक माप तोल के पैमानों का उपयोग किया जाता था,
मोहनजोदड़ो से सीप का बना बांट तथा लोथल से हाथी दांत का स्केल प्राप्त हुआ है
शिल्प एवं उद्योग ➤ हड़प्पा सभ्यता में शिल्प एवं उद्योग भी विकसित अवस्था में थे ,सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्त्र उद्योग था ,मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्र का साक्ष्य प्राप्त होता है ,शिल्प उद्योग में शंख सीप हाथी दांत गोमेद फिरोजा ,सेलखड़ी मिट्टी धातु व प्रस्तर की वस्तुएं बनाई जाती थी ,इससे ना केवल बर्तन बल्कि मनके व मुहरे भी बनाई जाती थी,
वस्तु विनिमय प्रणाली ➤ हड़प्पा सभ्यता का वाणिज्य व्यापार मुख्यतः वस्तु विनियम प्रणाली पर आधारित था
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत की प्रथम नगरीकृत सभ्यता का प्रमुख आधार उसकी आर्थिक संपन्नता थी ,जबकि इस आर्थिक संपन्नता का आधार उन्नत कृषि ,पशुपालन एवं विकसित वाणिज्य व्यापार था
हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था समाज और धर्म का वर्णन करें /
हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन
मातृ देवी की पूजा ➤मातृ देवी सिंधु सभ्यता के लोगों की प्रधान देवी थी ,जिनकी अनेक मूर्तियां खुदाई से प्राप्त हुई हैं ,सिंधु सभ्यता के लोग मातृ देवी को संपूर्ण लोक की जननी एवं पोषिका मानते थे ,मोहनजोदड़ो से प्राप्त मातृ देवी की मूर्ति के आधार पर हम कह सकते हैं कि ये लोग मातृ देवी की पूजा करते थे
पाशुपति शिव की पूजा ➤ मोहनजोदड़ो से हमें पशुपति शिव की पूजा का भी साक्ष्य प्राप्त होता है उसी प्रकार हड़प्पा सभ्यता में लिंग पूजा पशु पूजा नाग पूजा पीपल नीम व बबूल की पूजा भी की जाती थी ,साथ ही अग्निपूजा भी प्रचलित थी कालीबंगा तथा लोथल से अग्निवेदिका के साक्ष्य प्राप्त होते हैं
मृतक संस्कार ➤सेंधव वासी पुनर्जन्म में विश्वास करते थे ,इसलिए मृत्यु के बाद दाह संस्कार के तीन तरीके प्रचलित थे, पूर्णशवाधान आंशिक शवाधान एवं कलश शवाधान
प्रेतवाद ➤ इस सभ्यता के धर्म में प्रेतवाद का भाव भी दिखाई देता है ,प्रेतवाद वह धार्मिक अवधारणा है जिसमें प्रेतों की पूजा बुरी आत्मा के भय से की जाती थी ,
इस सभ्यता में हमें भक्ति तथा पुनर्जन्म के भी साक्ष्य प्राप्त होते हैं
वृहत स्नानागार तथा आवास ➤ सिंधु सभ्यता में जल पूजा प्रचलित थी मोहनजोदड़ो से वृहत स्नानागार तथा पुरोहित आवास के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं इससे स्नान के महत्व का पता चलता है
अग्नि तथा स्वास्तिक ➤ अग्नि पूजा तथा स्वास्तिक पूजा भी प्रचलित थी, कालीबंगा तथा लोथल से अग्निवेदिका के साक्ष्य प्राप्त होते हैं
इसके धार्मिक दृष्टिकोण का आधार लौकिक तथा व्यावहारिक था ,मूर्ति पूजा का प्रारंभ संभवतः सेंधव सभ्यता से ही होता है
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक विशेषताएं वर्तमान के धर्म में भी दिखाई देती है ,
इस रुप में वर्तमान कालीन धर्म हड़प्पा कालीन धर्म से प्रेरणा ले रहा है
उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर कहा जा सकता है कि हड़प्पा वासियों की धार्मिक आर्थिक राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था उन्नत एवं विकसित थी वर्तमान में इस व्यवस्था को अपनाए जाने की कोशिश की जा रही है
हड़प्पा सभ्यता से संबंधित प्रश्न उत्तर -PDF
हड़प्पा सभ्यता का उद्भव/प्रारम्भ
1921 ईस्वी से लेकर आज तक हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1000 स्थलों की खोज हो चुकी है किंतु इतिहासकारों के मध्य आज भी इस सभ्यता के उद्भव का प्रश्न विवादास्पद बना हुआ है इस विवाद के पीछे निम्नलिखित कारण है
1) साहित्यिक स्रोतों की अनुपलब्धता तथा पुरातात्विक स्रोतों की अपर्याप्तता2) क्षैतिज खुदाई का अभाव
3) अभी तक इस सभ्यता के जितने भी स्थलों की खोज हुई है वे प्रायः अपनी विकसित अवस्था में थे ,इस कारण इस सभ्यता के उद्भव के विषय में पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं
सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति के सिद्धांत
हड़प्पा सभ्यता के उद्भव के संबंध में इतिहासकारों ने जितने भी मत दिए हैं उनमें प्रमुख है-
*विदेशी /आकस्मिक /मेसोपोटामियाई/सुमेरियन उत्पत्ति का सिद्धांत
➥गार्डन चाइल्ड मार्टिमर व्हीलर क्रेमर डीडी कौशांबी आदि इतिहासकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में विदेशी प्रभाव को स्वीकार करते हैं,
इस सिद्धांत के समर्थकों ने अपने मत के पक्ष में कुछ तर्क भी दिए हैं - 1)दोनों ही नगरीकृत सभ्यता थी
2)दोनों ही सभ्यता के लोग ईट मुहर चाकनिर्मित मृदभांड अन्नागार व लिपि का प्रयोग करते थे
3) बलूचिस्तान से प्राप्त टीलों की संरचना मेसोपोटामिया से प्राप्त जिगुएट के सामान थी ,
किन्तु सूक्ष्म अवलोकन के पश्चात उपर्युक्त तर्कों की सीमाएं स्पष्ट हो जाती है
जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है -
a दोनों ही सभ्यता के नगरीकरण में पर्याप्त अंतर था, हड़प्पा सभ्यता के नगर अधिक विकसित व व्यवस्थित थे
b हडप्पा सभ्यता के भवनों में प्रायः पक्की ईंटों का जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता के भवनों में प्रायः कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया था
c हड़प्पा सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता से मंदिरों के साक्ष्य मिले हैं
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में मेसोपोटामियाई उत्पत्ति का सिद्धांत तर्कतः स्वीकार नहीं किया जा सकता और न ही हड़प्पा सभ्यता को मेसोपोटामियाई सभ्यता के उपनिवेश के रूप में देखा जा सकता है
*द्रविड़ उत्पत्ति का सिद्धांत➤ इस मत के समर्थकों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का विकास द्रविड़ो के द्वारा किया गया था ,
इस सिद्धांत के समर्थकों ने अपने मत के पक्ष में कुछ तर्क भी दिए हैं
1)द्रविड़ो के समान ही हड़प्पाई लोगों में भी प्रकृति पूजा एवं पशुपति शिव की पूजा प्रचलित थी
2)द्रविड़ो के समान ही हड़प्पाई लोगों में भी भूमध्य सागर नस्ल की प्रधानता थी
3)द्रविड़ो के समान ही हड़प्पाई लोगों में भी मातृसत्तात्मक व्यवस्था प्रचलित थी
इस सिद्धांत के समर्थन में कोई भी पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है ,
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में द्रविड़ उत्पत्ति के सिद्धांत को भी तर्कतः स्वीकार नहीं किया जा सकता है
*आर्य उत्पत्ति का सिद्धांत ➤बीबी लाल एस आर राव जगपति जोशी टी एन रामचंद्रन आदि इतिहासकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव में आर्य उत्पत्ति के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं ,
इस सिद्धांत के समर्थकों ने अपने मत के पक्ष में कुछ तर्क भी दिए-
1)दोनों ही सभ्यता का केंद्रीय क्षेत्र एक समान था
2)दोनों ही सभ्यता में प्रकृति पूजा प्रचलित थी
3)दोनों ही सभ्यता में घोड़ों एवं अग्निवेदिकाओ के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं
4)आर्यो के देवता इन्द्र दुर्गो के देवता थे हड़प्पा में भी दुर्गों का महत्व था,
यद्यपि हड़प्पा सभ्यता एवं वैदिक संस्कृति के बीच कुछ समानताएं दिखाई देती है ,परंतु दोनों के मध्य अनेक भिन्नताए भी थी -
1)नवीन शोधो से यह स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता का केंद्रीय क्षेत्र सप्तसैधव प्रदेश नहीं बल्कि सरस्वती नदी घाटी था
2)हड़प्पा सभ्यता एक नगरीकृत सभ्यता थी जबकि वैदिक सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी
3)हड़प्पाई समाजमातृसत्तात्मक जबकि वैदिक पितृसत्तात्मक समाज था
4) वेदों में इंद्र को पुरंदर अर्थात दुर्गो को तोड़ने वाला कहा गया है ना कि दुर्गों का निर्माता
5) वैदिक काल में लोहे के साक्ष्य प्राप्त होते हैं जबकि हड़प्पा सभ्यता में लोहे के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं
6)आर्यों को लिपि का ज्ञान नहीं था जबकि हड़प्पा सभ्यता में लिपि प्रचलित थी
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि वैदिक आर्यों को हड़प्पा सभ्यता का निर्माता नहीं माना जा सकता है
*देशी उत्पत्ति का सिद्धांत➤ फेयर सर्विस रोमिला थापर अमलानंद घोष डीपी अग्रवाल आदि इतिहासकारों ने यहां प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि हड़प्पा सभ्यता एक स्वदेशी सभ्यता ही थी ,तथा इसका विकास 3000 वर्षों से भी अधिक समय तक चली एक क्रमिक प्रक्रिया के फलस्वरुप हुआ था ,
फेयर सर्विस एवं रोमिला थापर के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम भाग में स्थित ईरानी व बलूची संस्कृतियों के विकास के परिणामस्वरूप ही हड़प्पा सभ्यता का विकास हुआ था ,
उसी प्रकार अमलानंद घोष ने राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में स्थित सोथी संस्कृति के विकास से हड़प्पा सभ्यता का उद्भव माना है साथ ही डीपी अग्रवाल ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि बलूचिस्तान में स्थित मेहरगढ़ नाल व कुल्ली तथा सिंध में स्थित आमरी व कोटदीची प्राक हड़प्पाई संस्कृतियों के क्रमिक विकास से ही हड़प्पा सभ्यता का नगरीय स्वरूप अस्तित्व में आया है
पुरातात्विक खोजो से यह स्पष्ट हो गया है कि हड़प्पा सभ्यता से पूर्व अफगानिस्तान बलूचिस्तान व सिंध में कई ग्रामीण संस्कृतियां अस्तित्व में थी ,चूंकी ये संस्कृतियां सिंधु नदी-घाटी के मैदानों में स्थित थी अतः यहां कृषि का निरंतर विकास होता गया आगे चलकर यहां के निवासियों ने प्रस्तर व तांबे के उपकरणों के साथ साथ कांस्य के उपकरणों का भी उपयोग कृषि क्षेत्र में प्रारंभ कर दिया होगा जिससे कृषि अधिशेष प्राप्त हुआ होगा ,
इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के उद्भव से संबंधित विभिन्न विचारों में सर्वाधिक तार्किक विचार देशी उत्पत्ति का सिद्धांत प्रतीत होता है ,हालांकि इस संबंध में किसी निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने हेतु अभी और भी पुरातात्विक खोजो एवं अनुसंधानो की आवश्यकता है
सिंधु सभ्यता के निर्माता कौन थे
यहां एक अत्यंत विवादास्पद प्रश्न है ,सिंधु सभ्यता के निर्माता भारतीय अर्थात स्थानीय ही थे अथवा विदेशी यह निर्धारित करना भी एक कठिन कार्य है, विभिन्न विद्वानों ने द्रविड़ो ,सुमेरो और आर्यों आदि को इस सभ्यता का निर्माता माना है
सिंधु सभ्यता के पतन के कारण:-
सिंधु सभ्यता का विनाश किस प्रकार और कब हुआ इस संदर्भ में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है अतः अनेक विद्वानों ने कल्पना तथा अनुमान के आधार पर इस सभ्यता के विनाश के कई कारण बताए हैं जिनका विवरण निम्नांकित है-
गार्डन चाइल्ड एवं व्हीलर का अनुमान है कि किसी बाहरी जाति के आक्रमणकारियों ने इस सभ्यता का विनाश किया ,मोहनजोदड़ो में सड़कों गलियों तथा आंगन आदि में अनेक अस्थिपंजर मिले ,इससे यह निष्कर्ष निकाला गया की बाहरी लोगों ने उन पर अचानक आक्रमण कर दिया और उनकी हत्या कर दी ,
किंतु यह मत उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि उत्खनन में जो अस्थियां प्राप्त हुई है वे एक ही नस्ल की है ,यदि बाहरी आक्रमण हुआ होता तो आक्रमणकारी भी मारे गए होते तो उनकी भी अस्थियां मिलनी चाहिए थी
➥जलवायु परिवर्तन➤
ओरेल स्टेइन एवं अमलानंद घोष का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सिंधु सभ्यता का विनाश हुआ होगा प्रारंभ में सिंधु प्रदेश में वर्षा प्रचुर रूप से होती थी किंतु कालांतर में वर्षा कम होने लगी और धीरे-धीरे प्रदेश रेगिस्तान बन गया अतः नगर उजाड़ हो गए
➥बाढ➤
जॉन मार्शल अर्नेस्ट मेंके एवं एस आर राव का मत है सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों की बाढ़ो ने मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा नगरों का विनाश किया था ,यहां पर उत्खनन में सिंधु नदी के वर्तमान तल से 21 मीटर ऊंचाई पर नदी की रेत तथा मिट्टी मिली है ,इससे स्पष्ट होता है कि नदियों में बाढ़ का पानी कभी-कभी 21 मीटर तक ऊँचा चढ़ जाता था
➥भूकंप /भूतात्विक परिवर्तन/ जलप्लावन ➤
एमआर स साहनी का मत है कि संभवतः किसी शक्तिशाली भूकंप के द्वारा इस सभ्यता का विनाश हुआ हुआ होगा
➥प्राकृतिक आपदा ➤
के यू आर कानेडी के अनुसार मलेरिया तथा महामारी जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हुआ
➥प्रशासनिक शिथिलता ➤
जॉन मार्शल के अनुसार प्रशासनिक शिथिलता के कारण इस सभ्यता का विनाश हुआ
उल्लेखनीय है कि संपूर्ण हड़प्पा सभ्यता के पतन के पीछे कोई एक कारण नहीं बल्कि अलग-अलग नगरों के पतन के पीछे अलग-अलग कारण उत्तरदाई रहे हैं ,ऊपर उल्लेखित किसी भी कारण जैसे आक्रमण बाढ़ जलवायु परिवर्तन भूकंप प्राकृतिक आपदा आदि में से किसी भी वजह से यह सूक्ष्म संतुलन बिगड़ गया होगा इससे उत्पादन अधिशेष एवं वाणिज्य व्यापार में गिरावट आ गई होगी जिससे क्रमिक रूप से इस नगरीकृत सभ्यता का पतन परवर्ती हड़प्पाकालीन ग्रामीण संस्कृतियों के रूप में हो गया होगा
अंततः इस सभ्यता का क्रमिक पतन हुआ तथा वह नगरीय सभ्यता से ग्रामीण सभ्यता में पहुंच गई
सिंधु सभ्यता की देन:-
इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता सभी प्राचीन सभ्यताओं में सर्वश्रेष्ठ थी ,सिंधु सभ्यता की देन के विषय में डॉक्टर राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है सिंधु सभ्यता के लोगों ने सबसे पहले नगर दिए सबसे पहले नागरिक सभ्यता प्रदान की सबसे पहले नगर योजना उपलब्ध कराएं ,बाढ़ से बचने के लिए सबसे पहले पत्थर और ईटों के बांध दिए और सफाई के लिए सबसे पहले जल निकास व्यवस्था प्रदान की उनको ही सबसे पहले मिट्टी के बर्तन बनाने का श्रेय प्राप्त है
सेंधव सभ्यता की एक प्रमुख देन नगरीय जीवन के क्षेत्र में है पूर्ण विकसित नगरीय जीवन का सूत्रपात इसी सभ्यता से हुआ
सिंधु सभ्यता का विदेशों से संबंध:-
सिंधु सभ्यता के विभिन्न स्थलों के उत्खनन से ज्ञात होता है कि सिंधु सभ्यता के लोगों के विश्व के अन्य देशों के साथ भी संबंध थे ,
यह संबंध राजनीतिक थे अथवा नहीं इसमें संदेह है ,किंतु यह निश्चित है कि उनके अन्य देशों से व्यापारिक संबंध थे
सिंधु सभ्यता के व्यापारिक आदान प्रदान ने सांस्कृतिक क्षेत्र में भी एक दूसरे को प्रभावित किया ,
उदाहरण के तौर पर कहा जा सकता है कि सिंधु एवं सुमेर सभ्यता में काफी समानता है ,सुमेर में अनेक मुहरे प्राप्त हुई है ,जो सिंधु सभ्यता की मोहरों से एकरूपता रखती है परंतु दोनों सभ्यताओं में किसने किसको प्रभावित किया इस विषय पर विद्वान एकमत नहीं है
इसी प्रकार मिस्र में मिले आभूषणों और श्रृंगार के प्रसाधनों से स्पष्ट होता है कि वे सिंधु सभ्यता के आभूषणों व श्रृंगार प्रसाधनों के लगभग समान ही है इससे स्पष्ट होता है कि सिंधुवासियो का विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं से घनिष्ठ संबंध था
सिंधु घाटी सभ्यता की रोचक कहानी by- POONAM RAJPUT AGAR-MALWA (MADHYA-PRADESH)