अरस्तु ,जो कि एक महान यूनानी दार्शनिक थे, अरस्तु के न्याय संबंधी विचार ,अरस्तु के राज्य संबंधी विचार ,अरस्तु के सिद्धांत ,अरस्तु के क्रांति संबंधी विचार ,आदि से संबंधित प्रश्न विभिन्न परीक्षाओं में ,विशेषकर प्रशासनिक सेवाओं की भर्ती परीक्षाओं में प्रमुखता से पूछे जाते हैं,
इस लेख में अरस्तु से संबंधित सभी प्रमुख विचारों को ,अरस्तु की जीवनी आदि के बारे में आसान भाषा में वर्णन किया गया है,
इस लेख को पढ़ने के उपरांत अरस्तु से संबंधित प्रश्नों को आसानी के साथ हल किया जा सकेगा
अरस्तु के प्रमुख सिद्धांत- MPPSC |
अरस्तु का जन्म -384 ईसा पूर्व (उत्तरी ग्रीस )
मृत्यु - 322 ईसा पूर्व
अरस्तु के गुरु - प्लेटो
शिष्य - सिकंदर महान
शिक्षण संस्था का नाम - लीशियस
अरस्तु की प्रमुख रचनाएं
द पॉलिटिक्सहिस्टोरिया
एनीमिया
अरस्तु के प्रमुख सिद्धांत
1.सद्गुण का सिद्धांत
2.न्याय का सिद्धांत
3.राज्य की अवधारणा
4. सामाजिक विचार
अरस्तु ,प्लेटो के शिष्य और एक महान यूनानी दार्शनिक थे। जहां प्लेटो ने दार्शनिक आदर्शवाद की स्थापना की वही अरस्तू ने व्यवहारिक यथार्थवाद की स्थापना की। अरस्तु ने प्लेटों के विचारों का खंडन भी किया है।
अरस्तु का सद्गुण का सिद्धांत
अरस्तु के अनुसार मनुष्य के जीवन में सद्गुणों का प्रमुख महत्व है सद्गुणों के संबंध में अरस्तु के प्रमुख विचार निम्न है-
1. अरस्तु ने सद्गुणों को परिभाषित करते हुए कहा कि सद्गुण मनुष्य कि ऐसे स्थाई मानसिक अवस्था है ,जो निरंतर अभ्यास के फल स्वरुप विकसित होती है ,तथा मनुष्य के स्वैच्छिक कार्यों में व्यक्त होती हैं।
2. सद्गुण जन्मजात नहीं होते हैं। वस्तु तथा प्रत्येक सद्गुण मनुष्य की किसी न किसी अतिवादी इच्छा को नियंत्रित करता है
जैसे-संयम वासनाओं को तथा साहस भय को नियंत्रित करता है।
3.अरस्तु ने सद्गुणों के संबंध में मध्यम मार्ग का सिद्धांत दिया है जिसके अनुसार प्रत्येक नैतिक गुणों को दो अतिवादी दृष्टिकोण के बीच की अवस्था है।
उदाहरण-के लिए संयम अनियंत्रित भोग और पूर्ण वैराग्य के बीच की स्थिति है ,इसी प्रकार साहस आक्रमकता व कायरता की बीच की स्थिति है ,कुल मिलाकर सद्गुण व्यक्ति को अतिवादी से मुक्त करते हैं व संतुलन के रास्ते पर चलना सिखाते हैं।
अरस्तु का न्याय सिद्धांत
अरस्तु के अनुसार न्याय राज्य का व जनता का प्रमुख सद्गुण है ,अरस्तु दो प्रकार के न्याय की चर्चा करते हैं-
1. आनुपातिक या विवरणात्मक न्याय
2 संशोधनात्मक या सुधारात्मक न्याय
अनुपातीक या विवरणात्मक न्याय के अंतर्गत लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार प्रति फल की प्राप्ति से है, अर्थात जब सम्मान व पुरस्कार व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार दिए जाते हैं तो इस अवस्था में न्याय को आनुपातिक न्याय या विवरणात्मक न्याय की अवस्था कहा जाता है।
संशोधनात्मक या सुधारात्मक न्याय के अंतर्गत अपराध करने के लिए दंड देने व क्षति पूर्ति करने की व्यवस्था होती है।
अरस्तु के अनुसार राज्य की अवधारणा*
अरस्तु के राजनीतिक विचार - MPPSC
अरस्तु ने राजनीति को नीति शास्त्र का एक भाग माना है ,और इसके चलते राज्य के संबंध में अपने विचार दिए हैं।
अरस्तु के अनुसार राज्य का उद्भव व्यक्ति ,परिवार, समाज ,गांव की क्रमिक विकास से हुआ है ,और फिर लोगों ने अपनी संपत्ति और सामाजिक सुविधाओं हेतु एक करार किया जिसमें राज्य अस्तित्व में आया ,अरस्तु का मानना था कि नागरिकों का कल्याण करना राज्य का दायित्व है और राज्य के निर्देशों का पालन करना जनता का दायित्व है।
यह दोनों अवस्थाएं होने पर राज्य व व्यक्ति दोनों सद्गुण से युक्त व नैतिक माने जाते हैं।
अरस्तु ने अन्य दार्शनिकों के स्थान पर एक संतुलित विचार प्रस्तुत किया है, जिसमें राज्य व नागरिक को दोनों को ही अधिकार व दायित्व दिए गए हैं।
अरस्तु के सामाजिक विचारों की आलोचना भी की जाती है , क्योंकि अरस्तु ने महिलाओं को अपूर्ण पुरुष माना है, इनका मानना था कि महिलाएं स्वभावतः शासित ही होना चाहती है।
इनके विचार की नारी वादियों द्वारा कड़ी आलोचना की जाती हैं ,साथ ही उन्होंने दासो को मनुष्य नहीं माना है ,और राज्य का अत्यधिक समर्थन किया है,
इनका मानना था कि "व्यक्ति को व्यक्ति राज्य ही बनाता है"।
उपरोक्त विचार तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार सही हो सकते हैं परंतु वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अरस्तु के इस विचार से सहमत नहीं हुआ जा सकता है।
अरस्तु ने ही सबसे पहले शासन का कानूनी रूप से वर्गीकरण प्रस्तुत किया था।
अरस्तु के अनुसार शासन के तीन अंग
Assembly
magistracy
judiciary
अरस्तु के प्रमुख सिद्धांत- MPPSC |
अरस्तु के अनुसार क्रांति के कारण :-
1.असमानता तथा अन्याय
2.अपमान
3.शासकों की निरंकुश नीति
4.भ्रष्टाचार
Theory of golden mean:-
उद्देश्य-समाज के साथ संतुलन बनाते हुए आनंद की प्राप्ति।