उत्तर वैदिक काल का आर्थिक जीवन
उत्तर वैदिक काल में कृषि ,पशुपालन ,उद्योग एवं व्यवसाय ,व्यापार एवं वाणिज्य
ऋग्वैदिक काल की अपेक्षा उत्तर वैदिक काल में आर्यों के आर्थिक जीवन में पर्याप्त प्रगति हो गई थी। उत्तर वैदिक कालीन लोगों के आर्थिक जीवन को निम्नांकित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है ,
* कृषि
उत्तर वैदिक काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। '
शतपथ ब्राह्मण' में कृषि से संबंधित चारों क्रियाओ जुताई बुआई कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख किया गया है।
इस ग्रंथ में 'विदेह माधव' की कथा का भी उल्लेख मिलता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि आर्य संपूर्ण गंगा घाटी में कृषि करने लगे थे। भूमि जोतने के लिए हल का प्रयोग किया जाता था। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और अच्छी फसल उगाने के लिए खाद का भी प्रयोग किया जाता था। जौ, चावल, गेहूं, उड़द, मूंग, तिल, मसूर आदि खाद्यान्न उगाए जाते थे और वर्ष में दो फसलें उत्पन्न की जाती थी।
* पशुपालन
उत्तर वैदिक काल में आर्यों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था।
हल चलाने के लिए 6 व 8 जोड़े बैल जाते जाते थे। दलदली भूमि पर हल चलाने के लिए यह पशु बहुत ही उपयोगी था। इस काल में गाय, बैल, भेड़, बकरी, घोड़ा, कुत्ता, गधा आदि के अतिरिक्त हाथी भी पाला जाने लगा था।
इस काल में अधिक से अधिक गायों को पालना वैभव का प्रतीक समझा जाता था।
* उद्योग एवं व्यवसाय
उत्तर वैदिक काल में कृषि और पशुपालन के अतिरिक्त अनेक प्रकार के उद्योगों और व्यवसायो के बारे में जानकारी तत्कालीन साहित्य से प्राप्त होती है,
शिकारी, मछुए, सारथी, कुम्हार, सुनार, लुहार, रस्सी बनाने वाले, टोकरी बुनने वाले, धोबी, नाई, जुलाहा, रंगरेज, नर्तक, ज्योतिषी, चिकित्सक, गायक आदि अनेक उद्योग एवं व्यवसाय प्रचलित थे।
वस्त्र निर्माण उद्योग एक प्रमुख उद्योग था।
* व्यापार एवं वाणिज्य
उत्तर वैदिक काल में स्वदेशी एवं विदेशी दोनों ही प्रकार के व्यापार प्रचलित थे।
वैदिक ग्रंथों में समुद्र यात्रा की भी चर्चा है जिससे वाणिज्य एवं व्यापार का संकेत मिलता है। साधारणतः व्यापार विनिमय प्रणाली के द्वारा ही होता था।
इस काल की मुख्य मुद्रा को 'शतमान' कहा जाता था। मुद्राओं का नियमित प्रचलन नहीं हुआ था। यद्यपि निष्क, शतमान, पाद, रत्तिका तथा गुंजा का उल्लेख मिलता है, किंतु इनका प्रयोग मुद्रा के रूप में नहीं, बल्कि माप की इकाई के रूप में होता था। व्यापार पण द्वारा संपन्न होता था
* धातुओं का ज्ञान
इस काल में आर्यों का धातु ज्ञान पहले से अधिक हो गया था। स्वर्ण एवं लोहे के अतिरिक्त इस युग के आर्य टिन,तांबा,चांदी और सीसा से भी परिचित हो चुके थे।
धातु शिल्प उद्योग बन चुका था। इस युग में धातु गलाने का उद्योग बड़े पैमाने पर होता था। संभवतः तांबे को गलाकर विभिन्न प्रकार के उपकरण एवं वस्तुएं बनाई जाती थी।
उत्तर प्रदेश के एटा जिले के अतरंजीखेड़ा में पहली बार कृषि से संबंधित लौह उपकरण प्राप्त हुए हैं।
इस प्रकार यद्यपि उत्तरवैदिक काल की अर्थव्यवस्था में ऋग्वैदिक काल की तुलना में सुधार हुआ, किंतु कुल मिलाकर इस काल में भी अर्थव्यवस्था का स्वरूप निर्वाह एवं ग्रामीण ही बना रहा।
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