गौतम बुद्ध /बौद्ध धर्म के प्रमुख विचार एवं सिद्धांत
[गौतम बुद्ध] Gautam buddha -MPPSC,UPSC MAINS EXAM, important fact for all competitive exams
महात्मा गौतम बुद्ध को The light of Asia- कहा जाता है। जो बौद्ध धर्म की संस्थापक थे।
गौतम बुद्ध का सामान्य परिचय*
जन्म- 563 ईसा पूर्व लुंबिनी
मृत्यु - 483 ईसा पूर्व( कुशी नारा देवरिया)
बचपन का नाम-सिद्धार्थ
पिता- शुद्धोधन (शाक्या गण के मुखिया)
माता- महामाया
सौतेली मां- ( गौतमी प्रजापति )
पत्नी - यशोधरा
पुत्र - राहुल
महत्वपूर्ण शिष्य- सारिपुतष्म और महामोदलायन
बौद्ध धर्म से संबंधित प्रतीक
कमल एवं सांड- जन्म
घोड़ा - ग्रहण त्याग (महाभिनिष्क्रमण)
पद चिन्ह- निर्माण
पीपल (बोधि वृक्ष)- ज्ञान
स्तूप- मृत्यु
बौद्ध धर्म से संबंधित विषय वस्तु
चार आर्य सत्य
अष्टांगिक मार्ग
क्षणिकवाद
अनात्मवाद
त्रिरत्न
त्रिपिटक
बोधिसत्व
अर्हत पद
बौद्ध धर्म की प्रमुख मान्यताएं
चार आर्य सत्य
1.दुख है
2.दुख समुदाय
3.दुख निरोध
4.दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा
यह चारों आर्य सत्य वैज्ञानिक क्रम में है यह लक्षण से प्रारंभ होकर कारणों की पहचान तथा उनके निवारण तक की संपूर्ण प्रक्रिया है इसलिए भगवान बुद्ध को "महावैद्य" ही कहा जाता है!
1. संसार में दुख है:- बुद्ध के अनुसार यह संसार दुखों से भरा है; संसार की प्रत्येक वस्तु में दुख है बुद्ध के अनुसार इस संसार में दुखियों ने जितने आंसू बहाए हैं उनका जल महासागरों के जल से भी ज्यादा है।
2. दुख समुदाय ( दुख का कारण):-द्वितीय आर्य सत्य मैं बुद्ध दुखों के कारणों की व्याख्या करते हैं बुद्ध ने दुखों की उत्पत्ति के 12 कारण बताएं जिसे द्वादश चक्र कहा जाता है।
बुद्ध के अनुसार दुख के एक कारण से दूसरा कारण उत्पन्न होता है इससे प्रतीत्य समउत्पाद कहते हैं। बुद्ध ने सभी दुखों की उत्पत्ति का कारण अविद्या को माना है।
3. दुख निरोध (दुख को दूर किया जा सकता है):-बुद्ध के अनुसार दुखों को समाप्त किया जा सकता है दुख निरोध का अर्थ है निर्माण जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सभी प्रकार के दुखों से मुक्त होना और दुखों को समाप्त करने का मूल तरीका अविद्या की समाप्ति करना है।
4. दुख निरोध मार्ग+ दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा):-दुख निरोध के मार्ग के रूप में बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को बताया है बुद्ध के अनुसार मनुष्य अष्टांगिक मार्ग पर चलकर दुखों से मुक्त हो सकता है।
अष्टांगिक मार्ग
1. सम्यक दृष्टि:- वस्तुओं को उनके वास्तविक स्वरूप में देखना
2. सम्यक संकल्प:- भौतिक सुखों के प्रति आकर्षण का त्याग करने का संकल्प
3. सम्यक वाणी :-सदा सत्य व
मधुर वचन बोलना
4. सम्यक कर्म:- सदा सत्य कर्म करना
5. सम्यक आजीविका:- सदाचार पूर्ण आजीविका अर्जित करना
6. सम्यक व्यायाम:- नैतिक मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति के लिए सतत प्रयास
7. सम्यक् स्मृति:-मिथ्या धारणाओं का परित्याग वह वास्तविक धारणाओं का स्मरण
8. सम्यक समाधि:- मन की एकाग्रता
क्षणिकवाद
बौद्ध दर्शन में शाश्वत वाद वह उछेदवाद के मध्य मार्ग को अपनाया गया है। बुद्ध के अनुसार संसार की सभी भौतिक और अभौतिक वस्तुएं प्रतिक्षण परिवर्तनशील है और इनका शनि का अस्तित्व है और कोई भी वस्तु शाश्वत नहीं है।
क्षणिक वाद के संबंध में बुद्ध निम्न उदाहरण प्रस्तुत करते हैं-
1. बुध दीपक की लो के आधार पर बताते हैं कि साधारण रूप से देखने पर दीपक की लो स्थिर दिखाई देती है परंतु यदि ध्यान पूर्वक सूक्ष्म निरीक्षण करके देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह तो कई क्षणिक लो का निरंतर प्रवाह है जिसमें एक क्षणिक लो के जाते ही दूसरी क्षणिक लो उसका स्थान ले लेती है और यह क्रम दीपक के जलने तक लगातार चलता रहता है।
2. नदी की धारा के आधार पर बुद्ध कहते हैं कि हम नदी की एक ही धारा में दो बार स्नान नहीं कर सकते हैं उसी प्रकार बीज भी परिवर्तनशील होता है बीज से वृक्ष का बनना तभी संभव हो पाता है जब वह परिवर्तनशील रहता है।
अनात्मवाद-
चार्वाक को छोड़कर भारतीय दार्शनिक परंपरा में आत्मा को शाश्वत और शरीर से स्वतंत्र रूप में स्वीकार किया गया है। बुद्ध ने इस सिद्धांत में भारतीय दार्शनिक परंपरा के विपरीत आत्मा को शाश्वत एवं स्वतंत्र नहीं माना है अपितु आत्मा को भी सांसारिक वस्तुओं की भांति क्षणिक एवं परिवर्तनशील माना है।
यदि अनात्मवाद के शाब्दिक अर्थ लिया जाए तो इसका अर्थ होता है कि आत्मा के अस्तित्व का खंडन करना किंतु बौद्ध दर्शन में मध्य मार्ग को अपनाते हुए आत्मा को क्षणिक एवं अनुभूतियों या संवेदना ओ का समूह मात्र माना है।
बुद्ध के अनुसार:-मैं जब जब एक नित्य एवं स्थाई आत्मा को खोजने के लिए अपने शरीर में प्रवेश करता हूं तो मैं दुख सुख भूख प्यास आदि अनुभूतियों से टकराकर वापस आ जाता हूं।
इस प्रकार भूत आत्मा को संवेदना ओं का समूह मानते हैं लेकिन बुध के अनुसार यह संवेदना इतनी तीव्रता से प्रसारित होती है कि एक स्थाई आत्मा का भ्रम उत्पन्न हो जाता है।
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न:-
बुद्ध
संघ
धम्म
निर्वाण:-निर्वाण बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य है जिसका अर्थ होता है दीपक का बुझ जाना अर्थात जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाना।
बौद्ध धर्म के तीन ग्रंथ:-
विनय पिटक
सुत्त पिटक (भाषा पाली)
अभिधम्म पिटक
बोधिसत्व:-यह बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का आदर्श हैं इसमें दूसरे के कल्याण को प्राथमिकता देते हुए अपने निर्वाण में विलंब करते हैं।
अर्हत पद:-यह बौद्ध धर्म की हीनयान संप्रदाय का आदर्श है जो अपनी साधना से निर्वाण प्राप्ति करते हैं उन्हें ही अरहद कहा जाता है।
बौद्ध धर्म की प्रमुख मान्यताएं-
1.बौद्ध धर्म में आत्मा ईश्वर तथा वेद की सत्ता को स्वीकार नहीं किया गया है
2. आत्मा को बौद्ध धर्म में सतत एवं परिवर्तनों का संघात माना है
3. बौद्ध धर्म में मोक्ष को स्वीकार किया गया है
4.बौद्ध धर्म में वर्ण व्यवस्था की निंदा की गई है तथा इसे अस्वीकार किया गया है
5. बौद्ध धर्म में कर्मकांड का खंडन किया गया है तथा पशु हत्या को आधार मिक बताया गया है।
बौद्ध दर्शन का मूल्यांकन
1. बुद्ध दर्शन में मानव मात्र की बात पर महत्व दिया गया है अर्थात इसमें समतामूलक समाज की बात की गई है।
2. बौद्ध दर्शन में मध्यम मार्ग का सिद्धांत मानव के लिए व्यवहारिक दृष्टिकोण से युक्त हैं।
3.दया भाव करुणा बौद्ध धर्म में मुख्य तत्व है जो संसार में परोपकार का मुख्य आधार है।
4. बौद्ध दर्शन में आत्म दीपो भव की अवधारणा मानव को भाग्य वाद की बजाय कर्ममवाद की महत्वपूर्ण शिक्षा देती है।
5. बौद्ध धर्म में मानव कल्याण को प्रमुख माना गया है
6.बौद्ध धर्म में व्यवहारिक अहिंसा पर बल दिया गया है जो समय तथा परिस्थितियों के अनुकूल होता है।
7. बौद्ध धर्म में स्वर्ग और नर्क आदि पर आलौकिक मति को निश्चित करके कर्मकांड उसे मुक्ति का मार्ग बताया गया है।