मध्यप्रदेश की प्रमुख शिल्प कला- सामान्य ज्ञान -MPPSC/MP POLICE/ MP SI/ PEB EXAM,
मध्यप्रदेश की प्रमुख शिल्प कला से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -सभी प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु ,
1. मिट्टी शिल्प कला:- मनुष्य के द्वारा सबसे पहले मिट्टी के बर्तन बनाए गए थे मिट्टी के खिलौने और मूर्तियां बनाने की प्राचीन परंपरा मध्यप्रदेश में प्रचलित है ,यह मुख्यता मध्यप्रदेश के झाबुआ ,मंडला तथा बेतूल जिले में प्रसिद्ध है।
2. काष्ठ शिल्प कला:- काष्ठ शिल्प कला भी मध्यप्रदेश में अग्रणी स्थान रहा है, मध्य प्रदेश में कोरकु के मृतक स्तंभ (मंडो) भीलों का कलात्मक ( दिवान्या )काष्ठ कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं,
3. खराद कला :-खराद कला ,मध्य प्रदेश में खराद पर लकड़ी को सुडौल रूप देने की कला भी प्रचलित है, शोपुर रीवा मुरैना आदि जिलों में खरात कला विशेष रूप से प्रसिद्ध है, खराद का काम सागवान कदंब सलाई गुजरे लाडला खेर की लकड़ी पर की जाती हैं
4. कंगी कला:- मध्य प्रदेश के उज्जैन रतलाम नीमच आदि जिलों में कंघी ऊपर अलंकरण किए जाने की परंपरा प्रचलित है , इस कार्य में बंजारा जाति विशेष रूप से दक्ष है,
5. तीर धनुष कला:- मध्य प्रदेश की वन जातियां विशेषकर भील ,कमार ,पहाड़ी कोरबा आदि में तीर धनुष रखने की परंपरा है ,तीर धनुष को पास मोरपंख लकड़ी लोहे आदि से बनाया जाता है।
6. बांस शिल्प:- झाबुआ मंडल आदि जिलों की जनजातियों में बांस की वस्तुएं जैसे टोकरी पशु पक्षी की आकृति बैठने के फर्नीचर आदि बनाने की परंपरा प्रचलित है।
7. पत्ता शिल्प:- मध्य प्रदेश की विभिन्न जनजातियों में पत्तों के खिलौने चटाई आसन बनाने की परंपरा प्रचलित है,
8. कठपुतली:- कठपुतली के प्रसिद्ध पात्र अनारकली बीरबल अकबर सांप योगी आदि लकड़ी व कपड़े से निर्मित कठपुतली को चमकीले गोटे लगाकर सजाया जाता है, इसे नचाने का प्रमुख कार्य मुख्यता नट जाति के लोगों के द्वारा किया जाता है।
9. गुड़िया शिल्प:- ग्वालियर अंचल में कपड़े लकड़ी और कागज से गुड़िया बनाई जाती है इस गुड़िया का विशेष महत्व है यहाँ गुड्डे गुड़िया का ब्याह रचाया जाता है तथा उनके नाम से व्रत पूजा की जाती है, झाबुआ में भील जनजाति में गुड़िया शिल्प का विशेष महत्व है ,झाबुआ की भेली गुड़िया राज्य स्तर पर प्रशंसा प्राप्त कर चुकी है।10. छिपा शिल्प:- कपड़े पर हाथ से बनाए जाने वाले छिपा शिल्प में विभिन्न छापों को उकेरा जाता है इसमें भील आदिवासी के विभिन्न प्रतीकों का समावेश होता है। उज्जैन का छिपा शिल्पा भेरूगढ़ के नाम से देश विदेश में प्रसिद्ध है।
11. महेश्वरी साड़ी:- महेश्वर के पारंपरिक बुनकरों द्वारा बनाई गई सूती और रेशमी महेश्वरी साड़ियां सुंदर एवं पक्के रंग की होती है ,इन पर धागों से बेल बूटे की कढ़ाई तथा चांदी व स्वर्णिम रंगों से जरी की जाती है ,महेश्वरी साड़ी उद्योग कला को स्थापित करने का श्रेय महारानी अहिल्याबाई को जाता है।
12. चंदेरी की साड़ी:- चंदेरी की साड़ी की विशेषता उसके चौड़े बॉर्डर तथा साड़ी के बीच में बड़े आकार की जरी रेशमी और सूती बेल बूटे है। पल्लू में कई रंगों की धार धार डिजाइनर भी चंदेरी की साड़ी की विशेषता है।
13.भील ,चौमाल ,बटुआ ,थेलिया, मोती माला :-धार व झाबुआ क्षेत्र में भील भीलवा महिला दैनिक उपयोग हेतु रंगीन धागों से चोमल बटुआ और थैलियां बनाती है। भीली महिलाएं विभिन्न प्रकार से मोतियों से मोती माला भी तैयार करती है मोती माला में छोटे-छोटे रंगीन तथा सफेद मोतियों का उपयोग किया जाता है।
14. प्रस्तर शिल्प :- मंदसौर और रतलाम में गुर्जर गायरी जाट भील आदि जातियों एवं जनजातियों के लिए नारायण राम शिव वीर तेजाजी गणपति दुर्गा लक्ष्मी हनुमान आदि देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। भेड़ाघाट तथा ग्वालियर प्रस्तर कला में प्रसिद्ध है।
15. लाख शिल्प:- वृक्ष की गोंदिया पर चिपके लाख की कीटों से लाख बनाई जाती है तथा इसे गर्म करके इससे जुड़े खिलौने पशु-पक्षी आदि कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती है, लाख का काम करने वाली जाति का नाम लखेरा या लकार है। यह कार्य मुख्यतः उज्जैन इंदौर रतलाम मंदसौर महेश्वर आदि जिलों में प्रचलित है।
by- Alkar Singh
Samarpan Classes Ujjain m.p.
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