मध्यप्रदेश की मिट्टियां
TYPES OF SOIL IN MP in Hindi
मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख मिट्टियां
मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली मिट्टियों के प्रकार उनकी विशेषताएं तथा उनके वितरण से संबंधित प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते हैं, यहां पर मध्य प्रदेश में पाए जाने वाले पांच प्रमुख मिट्टियों के नाम तथा उनकी विशेषताओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी आसान भाषा में दी गई है ,
मध्यप्रदेश में पांच प्रकार की मिट्टियां प्रमुख रूप से पाई जाती है जिनके नाम निम्नलिखित है-
- काली मिट्टी
- लाल पीली मिट्टी
- जलोढ़ मिट्टी
- कछारी मिट्टी
- मिश्रित मिट्टी
काली मिट्टी -
काली मिट्टी मध्यप्रदेश में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर पाई जाती है ,
काली मिट्टी को पुनः 3 उप भागों में विभाजित किया गया है - साधारण काली गहरी काली और छीछली काली
इन तीनों ही प्रकारों में साधारण काली मिट्टी का क्षेत्र सर्वाधिक है ,जो संपूर्ण मालवा का क्षेत्र एवं शिवपुरी ग्वालियर तक विस्तृत है,
गहरी काली मिट्टी का क्षेत्र मुख्य रूप से नर्मदा घाटी में नरसिंहपुर जिले में हरदा आदि जिलों में है,
इसी प्रकार से सतपुड़ा मेकाल श्रेणी वाले हिस्से में छिछली काली मृदा पाई जाती है ,
काली मिट्टी की विशेषताएं निम्नलिखित है -
काली मृदा को रेगुर एकम कपासी मृदा आदि नामों से भी जाना जाता है,
काली मिट्टी की जल धारण क्षमता सर्वाधिक होती है,
इस मिट्टी में कपास की फसल प्रमुखता से उत्पादित की जाती है ,
काली मिट्टी की प्रकृति क्षारीय होती है,
इस मृदा में लोहा एवं चूना प्रमुखता से पाया जाता है परंतु नाइट्रोजन फास्फोरस की कमी होती है,
इन मिट्टियों का निर्माण लावा द्वारा निर्मित बेसाल्ट चट्टान के अपक्षय से होता है,
काली मृदा का काला रंग लोहे के ऑक्साइड टिटेनिफेरस मैग्नेटाइट के कारण होता है ,
[नोट - भारत में सर्वाधिक काली मिट्टी का क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य में है उसके बाद मध्यप्रदेश का स्थान आता है]
जलोढ़ मिट्टी -
इसे दोमट मिटटी भी कहा जाता है,जलोढ़ मिट्टी मुख्य रूप से नदियों के द्वारा बहा कर लाई गई मिट्टी होती है, यह मिट्टी मध्य प्रदेश के मध्य भारत के पठार में पाई जाती है ,जिसमें भिंड मुरैना श्योपुर ग्वालियर शिवपुरी आदि जिले सम्मिलित होते हैं,
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है -
यह मिट्टी उदासीन प्रकृति की होती है इसलिए इस मिट्टी में विभिन्न प्रकार की फसलें उत्पादित की जा सकती है
यह मिट्टी सबसे ज्यादा उर्वर होती है इस मिट्टी में गन्ने की फसल के साथ-साथ गेहूं चना सरसों आदि भी विशेष रूप से उगाया जाता है
जलोढ़ मिट्टी को पुनः दो उप भागों में बांटा गया है- पुरानी जलोढ़ को बांगर कहते हैं तथा नवीन जलोढ़ को खादर कहते हैं
लाल पीली मिट्टी -
यह मिट्टी मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग विशेष रूप से बघेलखंड का पठार में विस्तृत है ,जिसके अंतर्गत मंडला बालाघाट शहडोल जिले आते हैं,
इस मिट्टी की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है-
लोहे के ऑक्साइड -फेरिक ऑक्साइड के कारण इसका लाल रंग होता है तथा जल मिलाने से यह मिट्टी पीली दिखाई देती है,
इस मिट्टी में लोहे की अधिकता होती है परंतु जैव पदार्थों एवं एवं नाइट्रोजन की कमी होती है ,
लाल पीली मिट्टी मुख्य रूप से चावल की खेती के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है
इस मिट्टी की प्रवृत्ति अम्लीय से लेकर क्षारीय तक होती है
मिश्रित मिट्टी -
इस मिट्टी को डोरसा मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है ,यह मिट्टी मध्यप्रदेश में मुख्यतः रीवा पन्ना के पठार तथा पूर्वी क्षेत्र बुंदेलखंड का पठार भी इसके अंतर्गत आता है ,इस मिट्टी में लाल पीली काली आदिमृदाओं का मिश्रण पाया जाता है ,
मोटे अनाज के लिएयह मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती है इस मिट्टी में नाइट्रोजन फास्फोरस एवं कार्बनिक पदार्थों की कमी पाई जाती है
कछारी मिट्टी-
नदियों में आई बाढ़ के दौरान नदियां अपने मार्ग में उपजाऊ मिट्टी बिछा देती है ,कछारी मिट्टी मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग जिसमें भिंड मुरैना ग्वालियर जिले आते हैं वहां पर प्रमुखता से पाई जाती है ,
इस मिट्टी की प्रवृत्ति लगभग जलोढ़ मृदा के समान ही है यह मिट्टी गन्ना कपास आदि फसलों के लिए काफी उपयुक्त मानी जाएगी
मध्य प्रदेश की मिट्टियों से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य -
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक भाग पर काली मिट्टी पाई जाती है ,
भारत में सर्वाधिक काली मिट्टी का क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य में है
भारत में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली मिट्टी जलोढ़ मिट्टी है
काली मिट्टी कपास की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है
लाल पीली मिट्टी में मुख्यतः धान की फसल उगाई जाती है ,
जलोढ़ मिट्टी सबसे उर्वर मानी जाती है इसमें सरसो को भी प्रमुखता से उगाया जाता है
मृदा अपरदन के कारण मिट्टी के नुकसान को मृदा की रेंगती हुई मृत्यु कहा जाता है ,
मध्यप्रदेश में मृदा अपरदन की समस्या मुख्यतः मध्य भारत के पठारी क्षेत्र जिसमें भिंड एवं मुरैना जिला विशेष रुप से सम्मिलित है ,
भिंड एवं मुरैना जिले में मृदा अपरदन का मुख्य कारण अवनालिका अपरदन है जो कि जल अपरदन का सबसे भयावह रूप है
मध्यप्रदेश में भोपाल शहर में केंद्रीय मृदा अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई है
शुष्क क्षेत्रों में मृदा संरक्षण हेतु राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र जोधपुर में स्थापित किया गया है जिसे सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टिट्यूट CAZRI कहा जाता है ,
भारत में सर्वाधिक मृदा अपरदन चंबल नदी के द्वारा होता है-
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