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उत्तर वैदिक काल के देवता/धार्मिक जीवन

 उत्तर वैदिक काल का धार्मिक जीवन  उत्तर वैदिक काल के देवता,यज्ञ,आडंबर ,कर्मकांडऔर अंधविश्वास उत्तर वैदिक काल की धार्मिक स्थिति उत्तर वैदिककालीन आर्यों की धार्मिक स्थिति में व्यापक परिवर्तन हुए,  इस काल की धार्मिक स्थिति का अध्ययन निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से किया जा सकता है -  * यज्ञ   यज्ञ इस संस्कृति का मूल था। यज्ञ के साथ-साथ अनेकानेक अनुष्ठान व मंत्रविधियाॅ भी प्रचलित हुई।  उपनिषदों में स्पष्टतः यज्ञो तथा कर्मकांडों की निंदा की गई है ,तथा ब्रह्म की एकमात्र सत्ता स्वीकार की गई। यज्ञों में बलि का महत्व बढ़ गया था। यज्ञों में पुरोहितों की संख्या भी बढ़ गई थी। यज्ञ आम जनता की पहुँच से दूर होने लगे थे।  यज्ञ भी विभिन्न प्रकार के होने लगे थे। जैसे -  अश्वमेघ यज्ञ,  राजसूय यज्ञ,  वाजपेय यज्ञ, सौत्रामणि यज्ञ,  पुरुषमेघ यज्ञ। *उत्तर वैदिक काल के देवता - ऋग्वैदिक कालीन देवताओं की इस काल में भी पूजा होती थी, परंतु अब उनकी स्थिति में परिवर्तन आ गया था , ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख देवता - इंद्र व वरुण आदि इस काल में प्रमुख नहीं रहे।  उत्तरवैदिक काल में प्रजापति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो गया

उत्तर वैदिक काल का आर्थिक जीवन- महत्वपूर्ण तथ्य एवं प्रश्न उत्तर

उत्तर वैदिक काल का आर्थिक जीवन   उत्तर वैदिक काल  में कृषि ,पशुपालन ,उद्योग एवं व्यवसाय ,व्यापार एवं वाणिज्य  ऋग्वैदिक काल की अपेक्षा उत्तर वैदिक काल में आर्यों के आर्थिक जीवन में पर्याप्त प्रगति हो गई थी। उत्तर वैदिक कालीन लोगों के आर्थिक जीवन को निम्नांकित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है , * कृषि उत्तर वैदिक काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। ' शतपथ ब्राह्मण' में कृषि से संबंधित चारों क्रियाओ जुताई बुआई कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख किया गया है।   इस ग्रंथ में 'विदेह माधव' की कथा का भी उल्लेख मिलता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि आर्य संपूर्ण गंगा घाटी में कृषि करने लगे थे। भूमि जोतने के लिए हल का प्रयोग किया जाता था। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और अच्छी फसल उगाने के लिए खाद का भी प्रयोग किया जाता था। जौ, चावल, गेहूं, उड़द, मूंग, तिल, मसूर आदि खाद्यान्न उगाए जाते थे और वर्ष में दो फसलें उत्पन्न की जाती थी।  * पशुपालन  उत्तर वैदिक काल में आर्यों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था।  हल चलाने के लिए 6 व 8 जोड़े बैल जाते जाते थे। दलदली भूमि पर हल चलाने के लिए यह प

उत्तर वैदिक काल का भौगोलिक विस्तार exam question mppsc upsc

उत्तर वैदिक काल का भौगोलिक विस्तार  उत्तर वैदिक काल/ सभ्यता का विस्तार /प्रभाव किन किन क्षेत्रों पर था ? *पंजाब से आर्यजन गंगा यमुना दोआब के अंतर्गत संपूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैल गए थे ,दो प्रमुख कबीले भारत और पुरू एक होकर कुरु नाम से विदित हुए। *आरंभ में वे लोग दोआब के ठीक छोर पर सरस्वती और दृष्टावती नदियों के प्रदेश में बसे शीघ्र ही कुरूओ ने दिल्ली क्षेत्र और दोआब के ऊपरी भाग पर अधिकार कर लिया जो कुरुक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ।  *हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया जो मेरठ जिले में पड़ता है।प्राचीन कथाओं के अनुसार जानते हैं कि हस्तिनापुर बाढ़ में बह गया और कुरू वंश से जो जीवित रहे वे इलाहाबाद के पास कौशांबी जाकर बस गए।  *उत्तर वैदिक काल का अंत होते-होते 600 ईसा पूर्व के आसपास वैदिक लोग दोआब से पूरब की ओर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कोशल और उत्तरी बिहार के विदेह में फैले।  अंततः इस काल की सभ्यता का केंद्र पंजाब से बढ़कर कुरुक्षेत्र तक आ गया था , 600 ईसा पूर्व के आसपास आर्य लोग कोशल विदेह एवं अंग राज्य से परिचित थे , शतपथ ब्राह्मण में उत्तर वैदिक कालीन रेवा और सदानीरा नदियों का उल्लेख

वैदिक आश्रम व्यवस्था के प्रकार /आश्रम व्यवस्था पर निबंध/बहुविकल्पीय प्रश्न

आश्रम व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ? वैदिक आश्रम व्यवस्था के प्रकार  आश्रम व्यवस्था पर निबंध    आश्रम व्यवस्था पर  बहुविकल्पीय प्रश्न MCQs वर्ण व्यवस्था के साथ-साथ  उत्तर वैदिक काल में  आश्रम व्यवस्था भी स्थापित हुई  उत्तर वैदिक कालीन समाज के अंतर्गत आश्रम व्यवस्था का संबंध व्यक्ति के व्यक्तिगत सुधारो एवं संस्कारों से था।  छांदोग्य उपनिषद में  केवल तीन आश्रमों का उल्लेख मिलता है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा वानप्रस्थ  किंतु जवालोपनिषद में चार आश्रम बताएं गए हैं जिनका विवरण निम्नांकित है -  आश्रम व्यवस्था के प्रकार एवं महत्व  1.ब्रह्मचर्य आश्रम : ब्रह्मचर्य आश्रम के अंतर्गत व्यक्ति जीवन के प्रारंभिक 25 वर्षों तक गुरु के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करता था और ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करता था।  2.गृहस्थ आश्रम : ब्रह्मचर्य आश्रम के पश्चात 26 से 50 वर्ष की आयु तक व्यक्ति गृहस्थ जीवन व्यतीत करता था जिसमें पति और बच्चों के साथ रहना, धन कमाना और अतिथि का स्वागत सम्मान करना उसके प्रमुख कर्तव्य माने जाते थे।  3.वानप्रस्थ आश्रम : गृहस्थ आश्रम के पश्चात 56 से 75 वर्ष की आयु तक व्यक्ति को वानप्रस्थ  आश्र

उत्तर वैदिक काल का राजनीतिक जीवन / स्थिति mppsc /upsc exam

उत्तर वैदिक काल का राजनीतिक जीवन  उत्तर वैदिक काल में राजनीतिक स्थिति  उत्तर वैदिक काल में आर्य सभ्यता धीरे-धीरे पूरब एवं दक्षिण में फैली ,प्राचीन आर्यों का उत्तरी पश्चिमी भारत अब उपेक्षित हो गया था, तथा आर्य संस्कृति का केंद्र अब कुरुक्षेत्र बन गया था,  उत्तर वैदिक काल में हिमालय से विंध्याचल के मध्य का संपूर्ण भाग आर्यों के प्रभाव क्षेत्र में आ गया था , उत्तरवैदिक काल की राजनीतिक व्यवस्था में हमें निरंतरता एवं परिवर्तन दोनों के तत्व दिखाई देते हैं  उत्तरवैदिक कालीन साहित्य से तत्कालीन राजनीतिक स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है जिसका अध्ययन निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है -   शक्तिशाली राज्यों का उदय उत्तर वैदिक काल में आर्यों के विस्तार के साथ साथ राज्यों और राजवंशों में भी परिवर्तन हुए। कौशल ,काशी ,विदेह, पांचाल ,कैकेय ,कलिंग , सूरसेन आदि  राजवंश प्रमुख बन गए।  आरंभ में पांचाल एक कबीले का नाम था  परंतु बाद में वह प्रदेश का नाम  हो गया ,इस काल में पांचाल सर्वाधिक विकसित राज्य था। इस काल में राज्यों के निर्माण 'कुल' के आधार पर न होकर भौगोलिक  आधार पर ह

वैदिक सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रश्न - mppsc/upsc

वैदिक सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर , वैदिक काल का धार्मिक जीवन , ऋग्वैदिक काल के देवता,  ऋग्वैदिक काल की राजनीतिक दशा, ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में अंतर,   vedic sabhyata question in hindi  Important question from ancient history of India , Vedic Era notes in Hindi प्राचीन इतिहास के महत्वपूर्ण प्रश्न वैदिक सभ्यता से संबंधित प्रश्न रिग वैदिक काल का सामाजिक धार्मिक एवं आर्थिक जीवन वैदिक काल नोट्स इन हिंदी , वेदों से संबंधित प्रश्न  वैदिक काल नोट्स पीडीएफ डाउनलोड  वैदिक सभ्यता के बारे में जानकारी  वैदिक काल का आरंभ  सिंधु सभ्यता के पतन के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसे वैदिक अथवा आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है , आर्य सभ्यता का ज्ञान वेदों से होता है ,जिसमें ऋग्वेद सर्व प्राचीन होने के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं, वैदिक सभ्यता भारत की प्राचीन सभ्यता है ,जिसमें वेदों की रचना हुई ,वैदिक शब्द वेद से बना जिसका अर्थ होता है 'ज्ञान' , वैदिक संस्कृति के निर्माता आर्य थे  ,वैदिक संस्कृति में आर्य शब्द का अर्थ 'श्रेष्ठ' अथवा 'उच्चकुल' हो