आश्रम व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ? वैदिक आश्रम व्यवस्था के प्रकार आश्रम व्यवस्था पर निबंध आश्रम व्यवस्था पर बहुविकल्पीय प्रश्न MCQs वर्ण व्यवस्था के साथ-साथ उत्तर वैदिक काल में आश्रम व्यवस्था भी स्थापित हुई उत्तर वैदिक कालीन समाज के अंतर्गत आश्रम व्यवस्था का संबंध व्यक्ति के व्यक्तिगत सुधारो एवं संस्कारों से था। छांदोग्य उपनिषद में केवल तीन आश्रमों का उल्लेख मिलता है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा वानप्रस्थ किंतु जवालोपनिषद में चार आश्रम बताएं गए हैं जिनका विवरण निम्नांकित है - आश्रम व्यवस्था के प्रकार एवं महत्व 1.ब्रह्मचर्य आश्रम : ब्रह्मचर्य आश्रम के अंतर्गत व्यक्ति जीवन के प्रारंभिक 25 वर्षों तक गुरु के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करता था और ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करता था। 2.गृहस्थ आश्रम : ब्रह्मचर्य आश्रम के पश्चात 26 से 50 वर्ष की आयु तक व्यक्ति गृहस्थ जीवन व्यतीत करता था जिसमें पति और बच्चों के साथ रहना, धन कमाना और अतिथि का स्वागत सम्मान करना उसके प्रमुख कर्तव्य माने जाते थे। 3.वानप्रस्थ आश्रम : गृहस्थ आश्रम के पश्चात 56 से 75 वर्ष की आयु तक व्यक्ति को वानप्रस्थ आश्र
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