आपने बहुत बार BIO PIRACY या BIO PATENT शब्द सुना होगा, भारत में पिछले कुछ सालों में बायोपाइरेसी को लेकर विश्व के कुछ देशों के साथ विवाद की स्थिति उत्पन्न होने के चलते यह शब्द काफी चर्चा में रहा ,आइए इस लेख में BIO-PIRACY या BIO-PATENT से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को आसान भाषा में समझते हैं।
WHAT IS BIO PIRACY/ WHAT IS BIO PATENT /BIO-PIRACY MEANING / BIO-PATENT MEANING & DEFINITION IN HINDI
सबसे पहले जानते हैं बायोपाइरेसी क्या है?? बायोपाइरेसी किसे कहते हैं??
बायोपाइरेसी के अंतर्गत किसी एक देश के जैविक संसाधनों (जैसे पेड़ पौधों ,जंगली वनस्पतियों ) का किसी दूसरे देश के व्यक्ति या संस्था द्वारा उस देश की सहमति या अनुमति के बिना उपयोग लेना जैव -पाइरेसी या बायो-पाइरेसी कहलाता है।
विकासशील देश जीव संसाधन व उससे संबंधित परंपरागत ज्ञान में विकसित देशों से अधिक समृद्ध है ऐसी स्थिति में औद्योगिक रूप से विकसित देश आधुनिक तकनीक अपनाकर विकासशील देशों के जीव संसाधनों का दोहन करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके चलते विकासशील देश आर्थिक रूप से शोषण का शिकार हो रहे हैं।
बायो-पायरेसी के द्वारा किस प्रकार विकसित देश विकासशील देशों का शोषण कर रहे हैं??
बायोपायरेसी को लेकर विकसित तथा विकासशील देशों के मध्य विवाद के प्रमुख बिंदु---
➱जैव संसाधनों का विश्लेषण कर मूल्यवान जैव संसाधनों की पहचान करके व्यापारिक उपयोग हेतु रणनीति तैयार करना।
➱जैव संसाधन से संबंधित परंपरागत ज्ञान का पेटेंट करा कर उसका व्यवहारिक उपयोग करना
➱अनुवांशिक संसाधनों का संग्रह कर उनका पेटेंट करवाना
➱जैव संसाधनों से मूल्यवान व उपयोगी जीवो का क्लोन तैयार करके उनका पेटेंट करा कर उनका व्यापारिक उपयोग करना।
उपरोक्त क्रियाओं को अपनाकर विकसित देश अपनी प्रौद्योगिकी क्षमता का उपयोग कर विकासशील देशों के जैव संसाधनों का अनैतिक रूप से दोहन कर रहे हैं, जिससे विकासशील देशों को काफी नुकसान पहुंच रहा है ,और अविकसित देश तथा विकासशील देश अपने जैविक संसाधनों एवं परंपरागत जीव विज्ञान के स्वभाविक लाभ से वंचित रह जाते हैं तथा अपने परंपरागत जैविक संसाधन का उपयोग करने के लिए विकसित देशों को धनराशि देने पर बाध्य होना पड़ता है, क्योंकि विकसित देश इन परंपरागत जैव संसाधनों पर येन केन प्रकारेण उसका पेटेंट प्राप्त कर लेते हैं।
BIO-PIRACY/ BIO-PATENT RELATED ISSUE IN INDIA
भारत में बायो पायरेसी या जैव पायरेसी तथा पेटेंट से संबंधित कुछ प्रमुख विवाद निम्नलिखित है--
➥भारत में प्राचीन काल अर्थात हड़प्पा सभ्यता के दौरान से ही चावल की खेती भारत में की जाती रही है ,भारत में चावल की विविधता से विश्व में सर्वाधिक समृद्ध राष्ट्र है
परंतु सितंबर 1997 में अमेरिका के टेक्सास प्रांत की एक कंपनी राइस टेक में बासमती चावल वंशावली का एवं खाद्यान्न पर एक पेटेंट हासिल किया ,भारत ने अमेरिकी कंपनी पर अंतरराष्ट्रीय नियमों के उलंघन व जैव पायरेसी अर्थात बायो-पायरेसी के आरोप लगाए ,भारत ने अपने परंपरागत उपयोग के साक्ष्य प्रस्तुत किए साथ ही धमकी दी कि यदि अमेरिका इस पेटेंट को समाप्त नहीं करेगा तो वह वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन अर्थात विश्व व्यापार संगठन में इस मामले को ले जाएगा व अमेरिका पर ट्रिप्स के उल्लंघन का मामला दर्ज करवाएगा ,
कुछ समय तक कूटनीतिक संकट भी पैदा हुआ परंतु अंततः अमेरिकी पेटेंट कार्यालय ने स्वयं के निर्णय की समीक्षा करते कंपनी का पेटेंट समाप्त कर दिया
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जैसा कि हम सभी जानते हैं हल्दी भारत में वर्षों से एक औषधि के रूप में उपयोग की जाती रही है इसका वर्णन भारतीय आयुर्वेद पद्धति के प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में भी मिलता है,
परंतु मई 1995 में अमेरिका के एक विश्वविद्यालय के चिकित्सा केंद्र ने घाव भरने में हल्दी का उपयोग करने से संबंधित विधि पर पेटेंट प्राप्त कर लिया।।
अमेरिका के विश्वविद्यालय के इस चिकित्सा केंद्र के द्वारा किए गए इस कार्य पर भारत के डॉ आर ए माशेलकर ने काफी सराहनीय कार्य किया डॉक्टर माशेलकर ने पेटेंट मुद्दे पर भारत में काफी जागरुकता फैलाई और उन्हीं के प्रयासों से मात्र 4 महीने में अमेरिकी पेटेंट कार्यालय ने अपने फैसले पर समीक्षा की और उस विश्वविद्यालय के चिकित्सा केंद्र का पेटेंट रद्द कर दिया।
➥नीम के उपयोग को लेकर के भी इसी प्रकार का बायोपायरेसी से संबंधित विवाद भी काफी सुर्खियों में रहा
जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत में नीम के विभिन्न भागों का चिकित्सा क्षेत्र में व्यापक उपयोग प्राचीन काल से होता रहा है परंतु यूरोप की प्रसिद्ध दवा कंपनी डब्लू आर ग्रेट एंड कंपनी में नीम के कवकनाशी गुणों के उपयोग पर एक पेटेंट हासिल कर लिया। हालांकि यूरोपीय पेटेंट कार्यालय में फर्म को पेटेंट एक निष्क्रिय तकनीक पर दिया था ।
परंतु वंदना शिव व अजय फड़के ने इस पैटर्न का विरोध किया, भारतीय मीडिया ने उन्हें पर्याप्त समर्थन दिया एवं यह निर्धारित एवं प्रचारित किया गया कि यूरोपीय पेटेंट कार्यालय में नीम के एंटी फंगल प्रॉपर्टी का पेटेंट फर्म को दिया है ,भारत सरकार ने इस मुद्दे में रुचि दिखाई और अंततः कूटनीतिक दबाव से 2005 में यह पेटेंट रद्द कर दिया गया है।
उपरोक्त वर्णन से बायोपाइरेसी से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर आपको अपनी समस्याओं का समाधान अवश्य मिला होगा ,अगर आपको इससे संबंधित कुछ और प्रश्न हो अथवा आप कुछ सुझाव देना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
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