MPPSC MAINS हिंदी पेपर- संक्षेपण एवं पल्लवन / MPPSC HINDI PAPER NOTES / MPPSC HINDI QUESTIONS
संक्षेपण
संक्षेपण का शाब्दिक अर्थ ही छोटा रूप कर देना !अर्थात किसी रचना का जब हम उसके मूल भाव की रक्षा करते हुए उसमें से अनावश्यक विस्तार को हटाकर उसके सार तत्व को ग्रहण कर लेते हैं तब उसे संक्षिप्त लेखन संक्षेपिका या संक्षेपण कहा जाता है।
लेखन में कम से कम शब्दों में किसी तत्व को कुशलता पूर्वक प्रस्तुत किया जाता है किसी भी बड़े अनुच्छेद में अभिव्यक्त विचारों को संक्षेप में समाज शैली में प्रस्तुत कर देना ही संक्षेपण कहलाता है। अर्थात सारांश लेखन की प्रक्रिया को संक्षेपण कहते हैं।
* संक्षेपण की विशेषताएं:-
1. पूर्णता2. संक्षिप्तता
3.स्पष्टता
4.भाषा की सरलता
5.शुद्धता
6.प्रवाह या क्रमबद्धता
7.मौलिकता
1. पूर्णता:- संक्षेपण स्वत: पूर्ण होना चाहिए, उसमें कोई महत्वपूर्ण बात छुटनी नहीं चाहिए।
2. संक्षिप्तता:- यह मूल रचना का अवतरण या 1/3 भाग होना चाहिए इसमें अनावश्यक विशेष उदाहरण आदि को स्थान नहीं देना चाहिए।
3. स्पष्टता:- "का संक्षेपण इस प्रकार लिखा जाना चाहिए की जिसके संदर्भ का अर्थ स्पष्ट और सरल हो जाए।
4. भाषा की सरलता:- संक्षेपण की भाषा सरल व परिष्कृत होनी चाहिए इसमें कठिन भाषा नहीं होनी चाहिए।
5. सुंदरता:- संक्षेपण में भाव व भाषा की शुद्धता होनी चाहिए।
6. प्रवाह या क्रमबद्धता:- उत्तम संक्षेपण में क्रमबद्धता व भाषा का प्रवाह होना चाहिए।
7. मौलिकता:- संक्षेपण के मूल रचना के शब्दों प्रकरणों को यथावत प्रस्तुत करके पुनः मूल ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए।
संक्षेपण के नियम:- यद्यपि संक्षेपण के निश्चित नियम नहीं बनाए जा सकते किंतु कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं-
1. मूल अनुच्छेद को स्पष्ट रूप से दो तीन बार पढ़ना चाहिए और निहित विचारों को भलीभांति समझना चाहिए।
2. मूल अनुच्छेद को स्पष्ट रूप से समझने के पश्चात निहित मूल भावो को रेखांकित कर लेना चाहिए।
3. रेखा अंकित किए गए मूल भाव या विचारों को उत्तर पुस्तिका में ट्रस्ट के बाएं तरफ और संक्षिप्त लेखन के प्रथम प्रारूप के रूप में नोट कर लेना चाहिए।
4. प्रथम प्रारूप तैयार कर लेने पर मूल रचना या अनुच्छेद से एक बार मिलान कर लेना चाहिए ताकि मूल अनुच्छेद का महत्व पूर्ण भाव छूट ना जाए।
5. प्रारूप के मूल विचारों के नियोजन के पश्चात हमें विचारों की क्रमबद्धता पर एक बार फिर से ध्यान देना चाहिए।
6. विचारों की क्रमबद्ध यता के पश्चात प्रारूप भाषा शैली की लिपि से परिष्कृत कर लेना चाहिए इसमें व्याकरण संबंधित दोष नहीं होना चाहिए।
7. संक्षेपण की भाषा सरल स्पष्ट एवं भाव तथा विचारों के अनुरूप होनी चाहिए।
8. संक्षिप्त लेखन भूतकाल में तथा अन्य पुरुष में होता है।
9. तत्पश्चात प्रारूप में प्रयुक्त शब्दों की सामान्य रूप से गणना कर यह अनुमान कर लेना चाहिए कि उक्त संक्षेपण मूल अनुच्छेद का 1/3 भाग है।
10. इसके बाद प्रारूप का पूर्ण परीक्षण कर उपयुक्त संक्षेपण देना चाहिए। शिक्षक छोटा होना चाहिए शिव शक्ति अथवा संक्षेपण के नीचे बाई और उक्त लेखन के प्रयोग शब्दों की संख्या एक कोष्टक में लिख देनी चाहिए।
पल्लवन
पल्लवन का अर्थ है किसी सूत्र व विचार या भाव को विस्तार से प्रस्तुत किया जाना। किसी वाक्य, कथन, मुहावरा या वाक्य के भाव को एक अनुच्छेद में व्यक्त करने की क्रिया को विस्तार अन्य पल्लवन कहते हैं अंग्रेजी में इसे Amplification कहते हैं।पल्लवन में किसी वाक्य अथवा कथन को एक अनुच्छेद में इस प्रकार स्पष्ट किया जाता है कि जिससे उसका संपूर्ण अर्थ स्पष्ट हो जाता है इस संदर्भ में एक या दो उदाहरण भी दिए जाते हैं इसका आकार ना तो अधिक छोटा और ना ही अधिक बड़ा होता है। इसमें व्यक्ति विचार को सू संबंध विचार अथवा सुकती के भाव के विस्तार को पल्लवन कहते हैं।
पल्लवन की प्रमुख विशेषता/ गुण/ तत्व:-
1.आकार
2. मूल भाव की रक्षा
3.संश्लिष्टता
4.सरलता
5. उदाहरण
1.आकार:- पल्लवन एक अनुच्छेद या पैराग्राफ का होता है इसकी शब्द सीमा 100 से 150 तक होती है।
2. मूल भाव की रक्षा:- पल्लवन में मूल कथन के भाव की रक्षा समर्थ होना चाहिए इसमें विषय अंतर को बिल्कुल स्थान नहीं देना चाहिए।
3. संश्लिष्टता:- के रूप में अनुच्छेद सू संगठित होता है इसमें विचारों की क्रमबद्धता होती है कुल मिलाकर पूरा अनुच्छेद संश्लिष्टता पूर्वक होता है।
4. सरलता:- पल्लवन में मुल कथन में निहित भाव स्पष्ट होते हैं इसकी भाषा सरल व सुबोध तथा स्पष्ट होती है।
5. उदाहरण:- कहावत एवं मुहावरे प्रस्तुत सूत्र वाक्य जिसका पल्लवन किया जाता है उसमें उदाहरण का प्रयोग कर जान डाल दी जाती हैं एवं मुहावरों से रोचकता प्रभाव बढ़ जाता है
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पल्लवन के नियम:-
1. सर्वप्रथम दिए गए अनुच्छेद, मूल कथन या सूक्ति को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए तथा इसमें निहित भावों को अच्छी तरह समझने का प्रयास करना चाहिए।2. मूल विचार या भाव के पीछे निहित सहायक विचारों को समझने का प्रयास करना चाहिए।
3. मूल व गौण विचारों को समझने के पश्चात एक-एक कर सभी निहित विचारों को एक-एक अनुच्छेद में लिखना आरंभ करना चाहिए ताकि कोई भाव या विचार छूट ना जाए विचार का विस्तार करते समय उसकी पुष्टि में यथा स्थान अलग से कुछ उदाहरण व प्रमाण दिए जा सकते हैं।
4. पल्लवन लेखन में अप्रासंगिक बातों का अनावश्यक विस्तार या उल्लेख बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। पल्लवन के मूल तथा गुण भाव या विचार की टीका टिप्पणी या आलोचना नहीं करना चाहिए
5. पल्लवन की रचना सदैव अन्य पुरुष में करनी चाहिए।
6. भाव भाषा की अभिव्यक्ति से पूरी स्पष्टता मौलिकता व सरलता होनी चाहिए। वाक्य छोटे छोटे व भाव अत्यंत सरल होना चाहिए पल्लवन में व्यास शैली का प्रयोग किया जाता है।
7. अनुच्छेद का व्याकरण की दृष्टि से परीक्षण करना चाहिए यदि शब्द संख्या निर्धारित है तो उसका उचित पालन किया जाना चाहिए।
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पल्लवन का महत्व:-
1. पल्लवन के अभ्यास से विद्यार्थियों की विचार शक्ति विकसित होती है।
2. इससे विचारों में परिष्कार परिमार्जन आता है।
3. पल्लवन से विद्यार्थियों की कल्पना शक्ति का विकास होता है।
4. जीवन के विविध क्षेत्रों जैसे संस्कृति, सामाजिक, धार्मिक से संबंधित अनुभव को समझने समझाने का विकास होता है।
5. तत्व संबंधित विज्ञान में अभिवृद्धि होती हैं इस प्रकार पल्लवन से विद्यार्थियों के वैचारिक प्रतिभा व व्यवहारिक, भाषा, कौशल, दक्षता का विकास होता है इस दृष्टि से हिंदी भाषा सीखने में पल्लवन का विशेष महत्व है।
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