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तुलसीदास जी का जीवन परिचय / निबंध

 तुलसीदास जी के प्रमुख विचार / गोस्वामी तुलसीदास -निबंध 
तुलसीदास जी का जीवन परिचय /निबंध / गोस्वामी तुलसीदास से सम्बंधित  प्रश्न उत्तर 

गोस्वामी तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास -MPPSC

गोस्वामी तुलसीदास ETHICS PAPER 

भक्ति काल के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म अभी तक विवादित माना जाता है ,कुछ विद्वान इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बोधापुर जिले के राजापुर गांव मैं मानते हैं तो ,कुछ विद्वान एटा जिले के शोरो नामक गांव में , 

गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिभा किरणों से ना केवल हिंदू समाज या भारत को अपितु समस्त संसार आलौकिक हो रहा है ,आधुनिक शोधों के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म 1544 इसवी माना जाता है।


* गोस्वामी तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं*

  • रामचरितमानस ,
  • पार्वती मंगल, 
  • गीतावली, 
  • कृष्णा गीतावली, 
  • बरवै रामायण ,
  • दोहावली ,
  • कवितावली ,
  • विनय पत्रिका, 
  • वैराग्य सांदीपनि, 
  • रामाज्ञा प्रश्न, 
  • जानकी मंगल


        तुलसीदास जी ने अपने जाति वंश के संबंध में कुछ स्पष्ट नहीं लिखा है पर विनय पत्रिका और कवितावली में इनके ब्राह्मण होने का संकेत मिलता है।

         तुलसीदास जी के माता-पिता के संबंध में कोई ठोस जानकारी नहीं है। जो जानकारी प्राप्त है उसके अनुसार इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे परंतु भविष्य पुराण के अनुसार इनके पिता का नाम श्रीधर बताया गया है ,और रहीम के दोहे के अनुसार इनकी माता का नाम हुलसी बताया गया है।

             तुलसीदास के गुरु के संबंध में कई व्यक्तियों के नाम लिखे जाते हैं जिनमें -राघवानंद, जगन्नाथ, नरहरी आदि।


गोस्वामी तुलसीदास


             तुलसीदास ने अपने जीवन काल में कुल 12 रचनाएं की हैं ,उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से भक्ति काल में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया,इनकी रचनाओं में काव्य साहित्य और दर्शन का सम्मिश्रण मिलता है,


 तुलसीदास जी की भक्ति काल के सद्गुण धारा की राम भक्ति शाखा के सर्वोच्च कवि थे। रामचरितमानस तुलसीदास का प्रमुख ग्रंथ है जो व्यक्ति को समाज में व्यवहार करने की कला सिखाता है ,

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में राम के चरित्र के माध्यम से एक आदर्श व्यक्ति का वर्णन किया अर्थात सामाजिक संबंधों का एक अद्भुत लेखा-जोखा रामचरितमानस में मिलता है।


                तुलसीदास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे ,और उनकी मान्यता थी कि निर्गुण ब्रह्म भक्तों के प्रेम के कारण मनुष्य शरीर धारण कर लौकिक  पुरुष के समान भाव को प्रदर्शित करते हैं ,

जिस प्रकार नाटक में एक अभिनेता अनेक पात्रों का अभिनय करते हुए उसके अनुरूप वेशभूषा धारण करता है तथा अनेक पात्रों का अभिनय करता है ,परंतु इस अभिनय में वह वास्तविक नहीं हो जाता, अपितु नट या अभिनेता ही रहता है 

उसी प्रकार रामचरितमानस में भगवान राम ने अलौकिक मनुष्य के अनुरूप जो विभिन्न लीलाए की  हैं ,उससे भगवान राम तत्व तथा वही नहीं हो जाते बल्कि वास्तविकता में राम निर्गुण ब्रह्म ही है। जिसे सामान्य मनुष्य समझ नहीं पाते हैं।

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