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[MPPSC PRE]* राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

national human rights commission in hindi

 rashtriya manav adhikar ayog - mppsc /upsc /competitive exam question 

 मानव अधिकार आयोग एवं मानव अधिकारों से संबंधित प्रश्न लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते हैं।


यहां पर मानव अधिकार क्या है? तथा मानव अधिकार आयोग के गठन ,अध्यक्ष, कार्यकाल एवं कार्य से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को आसान भाषा में प्रस्तुत किया गया है ,जो कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं तथा विशेष तौर से संघ लोक सेवा आयोग एवं राज्य लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षाओं के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग exam question



मानव अधिकार  what is human right-

मानव अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को उनके जन्म से ही प्राप्त ऐसे मूलभूत अधिकार है, जो जाति ,लिंग, राष्ट्रीयता ,भाषा ,धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किए बिना सभी को प्राप्त होते हैं।


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन


      यह एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत की गई ।


*संरचना*

एक अध्यक्ष

चार न्यायिक सदस्य

अन्य पदेन सदस्य (अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग, महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग ,बाल संरक्षण आयोग एवं दिव्यांगजन आयुक्त होते हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य -राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के वर्तमान अध्यक्ष -जस्टिस एच.एल.दत्तू है ,

इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष जस्टिस रंगनाथ मिश्र  थे।


राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को अधिक समावेशी और कुशल बनाने हेतु लोकसभा ने मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 [The Protection of Human Rights (Amendment) Bill] पारित किया है।

प्रमुख बिंदु

हालिया संशोधन के तहत

1.भारत के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो।

2.राज्य आयोग के सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर 2 से 3 किया जाएगा, जिसमे एक महिला सदस्य भी होगी।

3.मानवाधिकार आयोग में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांगजनों संबंधी मुख्य आयुक्त को भी सदस्यों के रूप में सम्मिलित किया जा सकेगा।

4.राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों के कार्यकाल की अवधि को 5 वर्ष से कम करके 3 वर्ष किया जाएगा और वे पुनर्नियुक्ति के भी पात्र होंगे।

5.मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग और मानवाधिकार न्यायालयों के गठन की व्यवस्था करता है।


संशोधन से क्या लाभ होंगे?

पेरिस सिद्धांत (Paris Principles) के आधार पर इस प्रस्तावित संशोधन से राष्ट्रीय आयोग के साथ-साथ राज्य आयोगों को भी स्वायत्तता, स्वतंत्रता, बहुलवाद और मानव अधिकारों के प्रभावी संरक्षण तथा उनका संवर्द्धन करने हेतु बल मिलेगा।


पेरिस सिद्धांत (Paris Principles) 

20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु पेरिस सिद्धांतों को अपनाया था।
इसने दुनिया के सभी देशों को राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएँ स्थापित करने के लिये निर्देश दिये थे।
पेरिस सिद्धांतों के अनुसार, मानवाधिकार आयोग एक स्वायत्त एवं स्वतंत्र संस्था होगी।
यह शिक्षा, मीडिया, प्रकाशन, प्रशिक्षण आदि माध्यमों से मानव अधिकारों को भी बढ़ावा देता हैं।

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*राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य*


1. मानवाधिकार की उल्लंघन संबंधी शिकायतों की जांच करना

2. जेलो ,बंदी ग्रह मैं जाकर वहां की स्थिति को देखना एवं सुधार हेतु अनुशंसा करना

3. मानव अधिकार संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधि एवं समझौतों का प्रभावी क्रियान्वयन करना

4. मानवाधिकार संबंधित विधिक उपाय के प्रति जागरूकता फैलाना

5. न्यायालयों में लंबित मानवाधिकारों जैसे हिंसा संबंधित मामलों में हस्तक्षेप करना

6. मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों के प्रयास की सराहना करना

7. मानव अधिकारों के क्षेत्र में शोध करना उन कारणों को जानना जिसके कारण मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है

8. आयोग द्वारा अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को सौंपना आदि।


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*आलोचना*

1. जांच संबंधी विशेष तंत्र का अभाव

2. आयोग की सलाह कारी है एवं सिफारिशें बाध्यकारी नहीं है

3. पीड़ित पक्ष को व्यवहारिक न्याय दिलाने में असमर्थ

4. इन शिकायतों की जांच नहीं जो एक वर्ष बाद दर्ज की जाए

5. सशस्त्र बलों के संबंध में सीमित शक्तियां इत्यादि।


     *निष्कर्ष*:-

कहा जा सकता है कि यद्यपि आयोग की प्रकृति सलाहकारीय  है ,किंतु सरकार को उसकी सलाह पर की गई कार्यवाही पर 1 महीने के भीतर सूचना देना होता है, सिफारिशें ना माने का कारण भी सदन में बताना होता है, अतः किसी ना किसी रूप में इसका नैतिक प्रभाव सरकार के ऊपर रहता है जो मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने क्या काफी हद तक प्रयास करते हैं।


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