भारतीय मृदा का वर्गीकरण / types of soil in India in Hindi./ classification of Indian Soil in Hindi.
यहां पर भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों की आठ प्रकार ,भारतीय मिट्टियों का वितरण एवं उनकी विशेषताओं से संबंधित परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद( ICAR) ने भारतीय मिट्टियों को 8 प्रमुख भागों एवं 27 उप भागों में या प्रकारों में विभाजित किया है।
भारतीय मृदा के आठ प्रकार
भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों के 8 प्रकार एवं उनकी विशेषताएं तथा प्राप्ति स्थल
- जलोढ़ मिट्टी Alluvial soil
- काली मिट्टी Black soil
- लाल एवं पीली मिट्टी Red and yellow soil
- लेटराइट मिट्टी Laterite soil
- वन एवं पर्वतीय मिट्टी Forest and mountain soil
- शुष्क एवं मरुस्थलीय मिट्टी Dry and desert soil
- लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी Saline and alkaline soil
- दलदल युक्त एवं पीट मिट्टी Marshy and peat soil
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- जलोढ़ मिट्टी Alluvial soil
जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएं तथा प्राप्ति स्थल
जलोढ़ मृदा को दोमट मिट्टी एवं काँप मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
जलोढ़ मृदा भारत के सर्वाधिक क्षेत्र में पाई जाने वाली मिट्टी है।
यह भारत के करीब 22% क्षेत्रफल पर पाई जाती है।
इन मिट्टियों का निर्माण नदियों के द्वारा अपने मार्ग में मलबा निक्षेप के द्वारा होता है।
जलोढ़ मिट्टी में फास्फोरस नाइट्रोजन एवं humus की कमी होती है ,तथा पोटाश एवं चूने की प्रधानता होती है।
जलोढ़ मृदा काफी उपजाऊ मानी जाती है, तथा यह मिट्टी उदासीन प्रकृति की होती है ,अर्थात इसका pH मान 7 के करीब होता है।
बांगर एवं खादर जलोढ़ मृदा के प्रमुख उप विभाजन है।
बांगर --- पुरानी जलोढ़ मिट्टी को कहते हैं जबकि खादर नवीन जलोढ़ मिट्टी को कहते हैं।
जलोढ़ मृदा भारत के उत्तरी मैदानी भागों में पश्चिम में सतलज नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी घाटी तक विस्तृत है।
2. काली मिट्टी Black soil
काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है ।
काली मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के द्वारा होता है,
इस मिट्टी में आयरन ,चुना ,मैग्निशियम ,एल्युमीनियम तत्वों की प्रधानता होती है,
काली मिट्टी का काला रंग टाइटैनिफरस मैग्नेटाइट तथा जीवाश्म [जिसे ह्यूमस भी कहा जाता है] के कारण होता है,
काली मिट्टी में ऑर्गेनिक मैटर की प्रधानता होती है,
कपास की खेती के लिए काली मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है इसी कारण से इसे काली कपासी मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है
जल धारण क्षमता [वॉटर होल्डिंग कैपेसिटी] सर्वाधिक काली मिट्टी की होती है।
भारत में काली मिट्टी के क्षेत्र -
गुजरात, महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग ,उड़ीसा के दक्षिणी क्षेत्र ,कर्नाटक के उत्तरी क्षेत्र तमिलनाडु के उत्तरी क्षेत्र में काली मिट्टी प्रमुखता से पाई जाती है।
3. लाल एवं पीली मिट्टी Red and yellow soil
इन मिट्टियों का निर्माण जलवायु परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप होता है ,
लाल मिट्टी में मुख्य रूप से सिलिका एवं आयरन की अधिकता होती है।
लाल मिट्टी का लाल रंग लोहे के ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है
लाल पीली मिट्टी की उर्वरता काफी कम होती है।
यह अम्लीय प्रवृत्ति की मिट्टी है। इसमें चूना मिलाकर इस की उर्वरता कुछ हद तक बढ़ाई जा सकती है।
भारत में लाल पीली मिट्टी की प्राप्ति स्थल-
मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग ,छोटा नागपुर के पठार क्षेत्र ,पश्चिम बंगाल के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र, उत्तरी पूर्वी राज्यों में मुख्य रूप से मेघालय के गौरो खासी जयंतिया पहाड़ी क्षेत्र ,राजस्थान की अरावली पर्वत के निकट का क्षेत्र तथा कर्नाटक के कुछ भागों में लाल पीली मिट्टी मुख्य रूप से पाई जाती है।
4. लेटराइट मिट्टी Laterite soil
यह मिट्टियां मानसूनी जलवायु की आद्रता एवं शुष्कता के क्रमिक परिवर्तन के परिणाम स्वरुप निर्मित होती है।
लेटराइट मिट्टी में आयरन और सिलिका की अधिकता होती है।
लेटराइट मिट्टी में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों में -चाय काजू इलायची कॉफी आदि फसलें मुख्य है।
लेटराइट मिट्टी के तीन प्रकार होते हैं -
गहरी लाल लेटराइट
सफेद लेटराइट तथा
भूमिगत लेटराइट
सफेद लेटराइट मिट्टी सबसे कम उपजाऊ होती है इसे की केओलिन के नाम से भी जाना जाता है ,
भारत में Laterite soil - कर्नाटक ,केरल में प्रमुख रूप से ,साथ ही साथ महाराष्ट्र ,तमिलनाडु ,मध्य प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में भी पाई जाती है,
5.वन एवं पर्वतीय मिट्टियां Forest and mountain soil
यह मिट्टियां मुख्य रूप से पर्वतीय भागों में पाई जाती है।
इन मिट्टियों में जैविक पदार्थ एवं जीवांश अधिकता में पाए जाते हैं।
यह मिट्टी अम्लीय प्रवृत्ति की होती है।
भारत में वन एवं पर्वतीय मिट्टियां -जम्मू-कश्मीर ,उत्तराखंड ,सिक्किम ,अरुणाचल प्रदेश आदि हिमालय भागों में प्रमुखता से पाई जाती है।
6.शुष्क एवं मरुस्थलीय मिट्टी Dry and desert soil
जिन क्षेत्रों में औसत वर्षा 50 सेंटीमीटर या इससे कम होती है उन क्षेत्रों में इसके मरुस्थली मिट्टियां प्रमुखता से पाई जाती है।
इन मिट्टियों में पोषक तत्वों की कमी होती है ,इनमें नाइट्रोजन फास्फोरस कार्बनिक पदार्थ नहीं पाए जाते हैं।
7.लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी Saline and alkaline soil
लवणीय एवं क्षारीय मृदा को उसर मृदा /भूर मृदा /कल्लर / राथड आदि नाम से भी जाना जाता है।
इन मिट्टियों का निर्माण शुष्क एवं खराब अपवाह क्षेत्रों में जहां पर जलभराव की समस्या अधिक होती है वहां पर इन मिट्टियों का निर्माण प्रमुखता से होता है।
भारत में लवणीय एवं क्षारीय मिट्टियां प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश ,बिहार ,हरियाणा ,पंजाब एवं महाराष्ट्र राज्यों की शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है ,
नहरों के द्वारा अधिक सिंचाई करने के कारण भी इन मिट्टियों के निर्माण में वृद्धि हुई है।
8. दलदली एवं पीट मृदा Marshy and peat soil
इन मिट्टियों में जैव पदार्थ सर्वाधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
जलाक्रांत (वाटर लॉजिंग) व anaerobic situation में इनका निर्माण होता है।
दलदली मिट्टियां मुख्य रूप से -ओडिशा पश्चिम बंगाल एवं तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
समुद्रतट क्षेत्रों में इन मिट्टियों में जो वनस्पति पाई जाती है उसे मैंग्रोव वनस्पति कहा जाता है।
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