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** राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश की भूमिका

  राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में मध्यप्रदेश की भूमिका मध्यप्रदेश में खिलाफत /असहयोग आंदोलन 1919 एवं 1920,मध्य प्रदेश में झंडा सत्याग्रह 1923,सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930, मध्य प्रदेश:-चरण पादुका नरसंहार 1931 ,मध्य प्रदेश:भारत छोड़ो आंदोलन मध्य प्रदेश:- for English version- click here  राष्ट्रीय स्वतंत्र आंदोलन में मध्य प्रदेश की जनता ने बढ़ चढ़कर भाग लिया मध्य प्रदेश में राजनीतिक क्रियाकलापों की शुरुआत 1906 ईस्वी से प्रारंभ हुई थी 1906में मध्य प्रदेश का प्रांतीय अधिवेशन जबलपुर में आयोजित हुआ था जिसमें मध्य प्रदेश के पंडित रविशंकर शुक्ला राघवेंद्र सिंह डॉक्टर सिंह गौड़ आदि नेता शामिल हुए आगे  1907 में जबलपुर में क्रांतिकारी दल का गठन हुआ था 1915 में जबलपुर में ही होमरूल लीग की स्थापना की गई थी। मध्यप्रदेश में खिलाफत एवं असहयोग आंदोलन 1919 एवं 1920:- मध्यप्रदेश में सिवनी जिले में आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसमें कांग्रेस के असहयोग तथा खिलाफत आंदोलन का रूप ले लिया मध्यप्रदेश में सहयोग एवं खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व क्रमशः प्रभाकर ढूंढी राज यादव एवं अब्दुल गफ्फार खान ने किया था । मध्य प्रदेश में

imp*मंदिर निर्माण शैलियां* -नागर शैली द्रविड़ शैली बेसर शैली

मंदिर निर्माण की तीन प्रमुख शैलियां-Exam Gk मंदिर निर्माण शैलियां -नागर शैली द्रविड़ शैली बेसर शैली Nagar Shaili/ Dravid Shaili/ Besar Shaili in Hindi. मंदिर निर्माण की तीन प्रमुख शैलियों -नागर शैली ,द्रविड़ शैली एवं बेसर शैली से संबंधित प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे MPPSC ,MPSC exam ,Railway Exam, patwari exam test ,SSC exam ,IBPS exam,peb exams आदि में प्रमुखता से पूछे जाते  है। यहां पर मंदिर निर्माण की तीन प्रमुख शैलियों नागर शैली द्रविड़ शैली एवं बेसर शैली की प्रमुख विशेषताओं के बारे में  महत्वपूर्ण जानकारी सरल भाषा में प्रदान की गई है। मंदिर स्थापत्य कला अर्थात मंदिरों के निर्माण की क्रिया गुप्त काल से प्रारंभ मानी जाती है। शिल्प ग्रंथों में मंदिर स्थापत्य कला के क्षेत्र में तीन प्रकार के शिखरों का उल्लेख मिलता है, जिनके आधार पर मंदिर निर्माण की तीन शैलियों का विकास हुआ यह तीन शैलियां निम्न है  नागर शैली  द्रविड़ शैली तथा  बेसर शैली। नागर शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषताएं / Feature of Nagar Shaili temple in Hindi नागर शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

[imp*]सिख धर्म गुरु उनके गुरु काल एवं कार्य की सूची

 सिख धर्म गुरु उनके गुरु काल एवं कार्य की सूची- सिख धर्म के 10 गुरुओं के नाम, उनका समय, उनके क्रमानुसार सूची तथा विभिन्न गुरुओं के प्रमुख कार्यों से संबंधित प्रश्न एवं महत्वपूर्ण जानकारी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछी जाती है, यहां पर सिख धर्म में 10 गुरुओं से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी तथा सिख धर्म से संबंधित अन्य तथ्य आसान भाषा में दिए गए हैं। list of 10 Sikh gurus names in order  सिख धर्म में 10 गुरुओं की क्रमानुसार सूची  1.गुरु नानक देव  इन्होंने ही सिख धर्म की स्थापना की तथा आदि ग्रंथ की रचना भी गुरु नानक देव के द्वारा की गई , इनका कार्यकाल 1469 से 15 39 ईसवी तक रहा। 2.गुरु अंगद  यह सिख धर्म के दूसरे गुरु हुए ,इनका समय 1539 से 1552 ईसवी तक रहा , गुरु अंगद को गुरुमुख लिपि के जनक के रूप में भी जाना जाता है।। 3.गुरु अमर दास यह सिख धर्म के तीसरे गुरु थे इनका कार्यकाल 1552 से 1574 ईसवी तक रहा,  गुरु अमर दास ने सिख धर्म के प्रचार प्रसार हेतु 22 गद्दीयों की स्थापना की थी। 4.गुरु रामदास   यह सिखों के चौथे गुरु थे,इन्होंने ही सन 1577 में अमृतसर नगर की स्थापना की थी तथा इनका गु

उत्तर वैदिक काल के देवता/धार्मिक जीवन

 उत्तर वैदिक काल का धार्मिक जीवन  उत्तर वैदिक काल के देवता,यज्ञ,आडंबर ,कर्मकांडऔर अंधविश्वास उत्तर वैदिक काल की धार्मिक स्थिति उत्तर वैदिककालीन आर्यों की धार्मिक स्थिति में व्यापक परिवर्तन हुए,  इस काल की धार्मिक स्थिति का अध्ययन निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से किया जा सकता है -  * यज्ञ   यज्ञ इस संस्कृति का मूल था। यज्ञ के साथ-साथ अनेकानेक अनुष्ठान व मंत्रविधियाॅ भी प्रचलित हुई।  उपनिषदों में स्पष्टतः यज्ञो तथा कर्मकांडों की निंदा की गई है ,तथा ब्रह्म की एकमात्र सत्ता स्वीकार की गई। यज्ञों में बलि का महत्व बढ़ गया था। यज्ञों में पुरोहितों की संख्या भी बढ़ गई थी। यज्ञ आम जनता की पहुँच से दूर होने लगे थे।  यज्ञ भी विभिन्न प्रकार के होने लगे थे। जैसे -  अश्वमेघ यज्ञ,  राजसूय यज्ञ,  वाजपेय यज्ञ, सौत्रामणि यज्ञ,  पुरुषमेघ यज्ञ। *उत्तर वैदिक काल के देवता - ऋग्वैदिक कालीन देवताओं की इस काल में भी पूजा होती थी, परंतु अब उनकी स्थिति में परिवर्तन आ गया था , ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख देवता - इंद्र व वरुण आदि इस काल में प्रमुख नहीं रहे।  उत्तरवैदिक काल में प्रजापति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो गया

*पुनर्जागरण क्या है ?संबंधित प्रश्न उत्तर PSC UPSC EXAM

पुनर्जागरण से संबंधित प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते ,हैं इस लेख में निम्नलिखित महत्वपूर्ण तथ्यों को सम्मिलित किया गया है जैसे - पुनर्जागरण क्या है? पुनर्जागरण के क्या कारण थे ? पुनर्जागरण के क्या प्रभाव हुए एवं पुनर्जागरण के महत्वपूर्ण घटनाक्रम तथा व्यक्ति से संबंधित परीक्षा उपयोगी जानकारी आसान भाषा में दी गई है। WORLD HISTORY NOTES IN HINDI FOR MPPSC , UPSC EXAM  पुनर्जागरण क्या है? इसका क्या अर्थ है?  ( renaissance in hindi ) पुनर्जागरण का सामान्य अर्थ होता है फिर से जागना। यह वह स्थिति थी जब यूरोपीय समाज मध्य काल के अंधकार में समय को पीछे छोड़कर नवीन मानवतावादी आधुनिक काल में प्रवेश कर रहा था। पुनर्जागरण कोई धार्मिक या सामाजिक आंदोलन नहीं था बल्कि यह एक बौद्धिक एवं मानसिक क्रांति थी। जिसका प्रारंभ सबसे पहले यूरोप के इटली में हुआ। तथा सोलवीं सदी के आते आते यह क्रांति यूरोप के विभिन्न देशों में फैल गई। यूरोप/इटली में पुनर्जागरण के क्या कारण थे ? यूरोप में पुनर्जागरण के पीछे निम्नलिखित महत्वपूर्ण कारण जिम्मेदार थे। 1.धर्म युद्ध या कूसेड की भूमिका यह धर्म युद्ध

वैदिक आश्रम व्यवस्था के प्रकार /आश्रम व्यवस्था पर निबंध/बहुविकल्पीय प्रश्न

आश्रम व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ? वैदिक आश्रम व्यवस्था के प्रकार  आश्रम व्यवस्था पर निबंध    आश्रम व्यवस्था पर  बहुविकल्पीय प्रश्न MCQs वर्ण व्यवस्था के साथ-साथ  उत्तर वैदिक काल में  आश्रम व्यवस्था भी स्थापित हुई  उत्तर वैदिक कालीन समाज के अंतर्गत आश्रम व्यवस्था का संबंध व्यक्ति के व्यक्तिगत सुधारो एवं संस्कारों से था।  छांदोग्य उपनिषद में  केवल तीन आश्रमों का उल्लेख मिलता है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा वानप्रस्थ  किंतु जवालोपनिषद में चार आश्रम बताएं गए हैं जिनका विवरण निम्नांकित है -  आश्रम व्यवस्था के प्रकार एवं महत्व  1.ब्रह्मचर्य आश्रम : ब्रह्मचर्य आश्रम के अंतर्गत व्यक्ति जीवन के प्रारंभिक 25 वर्षों तक गुरु के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करता था और ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करता था।  2.गृहस्थ आश्रम : ब्रह्मचर्य आश्रम के पश्चात 26 से 50 वर्ष की आयु तक व्यक्ति गृहस्थ जीवन व्यतीत करता था जिसमें पति और बच्चों के साथ रहना, धन कमाना और अतिथि का स्वागत सम्मान करना उसके प्रमुख कर्तव्य माने जाते थे।  3.वानप्रस्थ आश्रम : गृहस्थ आश्रम के पश्चात 56 से 75 वर्ष की आयु तक व्यक्ति को वानप्रस्थ  आश्र