विजयनगर साम्राज्य की स्थापना ,
विजयनगर साम्राज्य के प्रतापी राजा ,
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विजयनगर साम्राज्य के पतन के कारण,
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ईस्वी में हरिहर और बुक्का राय नामक दो भाइयों ने की थी ,
यह मध्यकालीन दक्षिण भारत का एक ऐसा साम्राज्य था जिसने 310 वर्षों तक राज किया था ।
इस साम्राज्य के चार वंश हुए ➤➤
पहला वंश संगम वंश था,
जो 1336 से 1490 तक था। इसका पहला राजा हरिहर राय था और अंतिम राजा प्रॉढराय था।
दूसरा वंश सालुव वंश था
सालुव वंश 1490 से 1505 तक चला था। इस वंश का पहला राजा नरसिंह देव राय और अंतिम नरसिंह दीप्तिय था।
तीसरा वंश तुलुव वंश था,
तुलुव वंश 1505 से 1570 तक चला , इस वंश का पहला राजा वीर सिंह राय और अंतिम सदाशिव राय था।
अंतिम वंश अरविंदु वंश था।
अरविंदु वंश 1570 से 1646 तक चला था इस वंश का पहला राजा अलीराई और अंतिम श्रीरंग था।
विजयनगर साम्राज्य के शासक
विजयनगर साम्राज्य में प्रतापी एवं शक्तिशाली राजाओं की कमी नहीं थी। युद्ध प्रिय होने के साथ-साथ सभी हिंदू संस्कृति के संरक्षक भी थे, स्वयं कवि तथा विद्वानों के आश्रय दाता थे।इनमें कृष्ण देव राय संगम वंश के सबसे प्रतापी राजा थे
। इन्होंने अपने साम्राज्य को दक्षिण का एक विस्तृत शक्तिशाली साम्राज्य बनाया था। उसके समय में अनेक नवीन मंदिर तथा भवन भी बनाए गए थे।
दूसरा राजवंश सालुव नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश के संस्थापक नरसिंह थे। उसने अपनी शक्ति क्षीण हो जाने पर अपने मंत्री नरेश नायक को विजयनगर का संरक्षक बनाया और कुछ ही समय में तुलुव वंश की स्थापना हुई
विजयनगर साम्राज्य बहुत बड़ा साम्राज्य बन गया था उस समय दिल्ली ही एकमात्र स्वतंत्र राज्य था,
दूसरा राजवंश सालुव नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश के संस्थापक नरसिंह थे। उसने अपनी शक्ति क्षीण हो जाने पर अपने मंत्री नरेश नायक को विजयनगर का संरक्षक बनाया और कुछ ही समय में तुलुव वंश की स्थापना हुई
विजयनगर साम्राज्य बहुत बड़ा साम्राज्य बन गया था उस समय दिल्ली ही एकमात्र स्वतंत्र राज्य था,
कृष्णदेव राय के शासन में आने के बाद उन्होंने अपनी सेना को इस तरह विस्तार किया जिससे डेढ़ लाख घुड़सवार सैनिक और 88000 पैदल सैनिक और कई तोपे भी थी ।
वे महान प्रतापी शक्तिशाली और शांति संस्थापक सर्वप्रिय और व्यवहार कुशल शासक थे। उन्होंने विद्रोहियों को दबाया ,ओडिशा पर आक्रमण किया और पूरे भारत के भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित किया ,
सोलहवीं सदी में यूरोप से पुर्तगाली भी पश्चिमी किनारे पर आकर डेरा डाल चुके थे। उन्होंने कृष्णदेवराय से व्यापारिक संधि करने की विनती की जिससे विजयनगर साम्राज्य में काफी वृद्धि हो सकती थी, लेकिन कृष्ण देव राय ने मना कर दिया और पुर्तगालियों को भारत से बाहर खदेड़ दिया था ।
तुलुव वंश का अंतिम राजा सदाशिव परंपरा को कायम न रख सका और शासन पर रहते हुए भी उसका सारा कार्य राम राय द्वारा संपादित होता था। सदाशिव के बाद राम राय ही विजयनगर राज्य का स्वामी हुआ। और उसने चौथे वंश अरविंदु का प्रथम सम्राट बना
राम राय का जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था। हिंदू नरेश इस्लाम का विरोध करते रहे , इस कारण मुस्लिम सुल्तानों से शत्रुता बढ़ती ही गई और मुसलमानी सेना ने विजयनगर को नष्ट कर दिया था। जिससे दक्षिण भारत में भारतीय संस्कृति को काफी क्षति पहुंची।
अरविंदो वंश के अंतिम राजा बहुत ही निर्भल थे ,जिससे विजयनगर साम्राज्य का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। हिंदू संस्कृति के इतिहास में विजयनगर साम्राज्य का महत्वपूर्ण स्थान रहा है । विजय नगर साम्राज्य में सायण द्वारा साहित्य की टीका तथा विशाल मंदिर का निर्माण दो ऐसे इतिहासिक स्मारक है जो आज भी उसका नाम अमर बनाए हुए हैं।
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