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[imp*]भारतीय मानसून की प्रमुख विशेषताएं / Indian monsoon characteristics in Hindi

मानसून क्या है ?  इसकी विशेषताएं - उत्पत्ति ,प्रकति वितरण -exam gk  मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द मौसीम से हुई है ,अरबी भाषा में मौसीम का अर्थ ऋतु है अर्थात मानसून का तात्पर्य एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा में परिवर्तन हो जाता है। अर्थात मानसूनी पवन एक मौसमी पवन है भारतीय मानसून की प्रमुख विशेषताएं    Indian monsoon characteristics in Hindi, भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां की अर्थव्यवस्था में कृषि का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है तथा कृषि को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला तत्व मानसून ही है, क्योंकि देश में होने वाली कुल वर्षा का करीब 80% भाग दक्षिणी पश्चिमी मानसून की ऋतु में प्राप्त होता है। मानसून से होने वाली वर्षा मौसमी अर्थात सीज़नल है जो कि सामान्यता जून के महीने से प्रारंभ होकर सितंबर माह तक प्राप्त होती है। मानसून वर्षा मुख्य रूप से पृथ्वी के भागों की आकृति अर्थात पर्वतों की ऊंचाई ,ढाल आदि के द्वारा नियंत्रित होती है। भारत के पश्चिमी घाट पर एवं उत्तर पूर्वी भारत में वर्षा का ज्यादा मात्रा में होना वहां की पर्वतों की आकृति के कारण ही संभव हो पाता है। जैसे-जैसे मानसून

[imp*] पृथ्वी की आंतरिक संरचना - internal structure of earth in Hindi

पृथ्वी की आंतरिक संरचना- क्रस्ट मेंटल कोर  [Earth crust Mantle Core] पृथ्वी की आंतरिक संरचना की तीन परतों -अर्थ क्रस्ट (भूपर्पटी)आवरण (मेंटल) एवं आंतरिक भाग (कोर)की विभिन्न विशेषताओं से संबंधित प्रश्न सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।  यहाँ पृथ्वी की आंतरिक संरचना एवं इसकी विभिन्न परतों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को आसान भाषा में चित्र के साथ दर्शाया गया है, जो कि प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे एमपीपीएससी, एसएससी पुलिस भर्ती परीक्षा, शिक्षक पात्रता परीक्षा ,बैंकिंग एग्जाम, रेलवे एग्जाम, सिविल सेवा परीक्षा आदि की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। पृथ्वी की त्रिज्या अर्थात पृथ्वी की सतह से लेकर की केंद्रीय भाग तक की लंबाई  6370 किलोमीटर है। पृथ्वी की सतह से लेकर  केंद्रीय भाग तक की दूरी को विभिन्न विशेषताओं जैसे तापमान ,आयतन ,घनत्व आदि की विशेषताओं के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है -भू पर्पटी ,आवरण एवं आंतरिक भाग (Earth crust Mantle,Core) भू पर्पटी -Earth crust की प्रमुख विशेषताएँ - पृथ्वी की आंतरिक संरचना में भूपर्पटी पृथ्वी के ऊपरी भाग वाली परत क

imp*मंदिर निर्माण शैलियां* -नागर शैली द्रविड़ शैली बेसर शैली

मंदिर निर्माण की तीन प्रमुख शैलियां-Exam Gk मंदिर निर्माण शैलियां -नागर शैली द्रविड़ शैली बेसर शैली Nagar Shaili/ Dravid Shaili/ Besar Shaili in Hindi. मंदिर निर्माण की तीन प्रमुख शैलियों -नागर शैली ,द्रविड़ शैली एवं बेसर शैली से संबंधित प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे MPPSC ,MPSC exam ,Railway Exam, patwari exam test ,SSC exam ,IBPS exam,peb exams आदि में प्रमुखता से पूछे जाते  है। यहां पर मंदिर निर्माण की तीन प्रमुख शैलियों नागर शैली द्रविड़ शैली एवं बेसर शैली की प्रमुख विशेषताओं के बारे में  महत्वपूर्ण जानकारी सरल भाषा में प्रदान की गई है। मंदिर स्थापत्य कला अर्थात मंदिरों के निर्माण की क्रिया गुप्त काल से प्रारंभ मानी जाती है। शिल्प ग्रंथों में मंदिर स्थापत्य कला के क्षेत्र में तीन प्रकार के शिखरों का उल्लेख मिलता है, जिनके आधार पर मंदिर निर्माण की तीन शैलियों का विकास हुआ यह तीन शैलियां निम्न है  नागर शैली  द्रविड़ शैली तथा  बेसर शैली। नागर शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषताएं / Feature of Nagar Shaili temple in Hindi नागर शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

सौरमंडल -सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर एवं महत्वपूर्ण तथ्य

 सौरमंडल सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर एवं महत्वपूर्ण तथ्य  gk question and important facts on solar system  in hindi सौर मंडल से संबंधित प्रश्न जैसे सौर मंडल के विभिन्न ग्रह, ग्रहों की विशेषताएं,  सूर्य और पृथ्वी के बीच के विभिन्न संबंध ,उपभू -अपभू आदि से संबंधित प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रमुखता से पूछे जाते हैं, यहां पर सौर मंडल से संबंधित अति महत्वपूर्ण तथ्यों, परिभाषाएं एवं महत्वपूर्ण प्रश्नों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जो कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे - SSC, banking exam- IBPS, railway ,police exam, UPSC, MPPSC ,Teacher Eligibility Test ,patwari exam आदि की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए काफी महत्वपूर्ण एवं उपयोगी हैं।  सौर मंडल मैं कौन-कौन से आकाशीय पिंड सम्मिलित होते हैं/ सौरमंडल किसे कहते हैं ? सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले सभी आकाशीय पिंड सौरमंडल का हिस्सा होते हैं। इन आकाशीय पिंडों में आठ ग्रह, शुद्र ग्रह ,धूमकेतु ,उल्काए, तथा अन्य आकाशीय पिंड सम्मिलित होते हैं  सूर्य (sun)से संबंधित परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य सौरमंडल का केंद्र सूर

[imp*]पवनों के प्रकार [Types of winds in Hindi ] पवन कितने प्रकार की होती है?

  Types of winds in Hindi. पवनों के प्रकार एग्जाम क्वेश्चन  यहां पर पवनों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जैसे पवन/हवा क्यों चलती है ? पवन कितने प्रकार की होती है?  व्यापारिक पवने ,प्रचलित पवने ,पछुआ पवनें, स्थानीय पवने ,मौसमी पवन  किसे कहते हैं ? आदि के बारे में आसान भाषा में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है ,यहां पर जेट स्ट्रीम के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है तथा पवनों के प्रकार से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर भी सम्मिलित किए गए हैं ,जो कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रश्नों को हल करने में सहायक सिद्ध होगी. पवन क्या होती है? यह एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों प्रवाहित होती है? पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न स्थानों पर वायुमंडलीय दाब एक समान नहीं होता है ,जिसके कारण पृथ्वी पर कहीं पर अधिक वायुमंडलीय दाब का क्षेत्र बन जाता है तथा कहीं पर निम्न वायुमंडलीय दाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है , इसी कारण से वायुमंडल की हवाएं अधिक दाब से निम्न दाब की ओर प्रवाहित होती है और इन्हीं क्षितिज रूप से गतिशील हवाओं को पवन कहते हैं,  अगर यह गतिशील हवाएं ध

[imp*]सिख धर्म गुरु उनके गुरु काल एवं कार्य की सूची

 सिख धर्म गुरु उनके गुरु काल एवं कार्य की सूची- सिख धर्म के 10 गुरुओं के नाम, उनका समय, उनके क्रमानुसार सूची तथा विभिन्न गुरुओं के प्रमुख कार्यों से संबंधित प्रश्न एवं महत्वपूर्ण जानकारी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछी जाती है, यहां पर सिख धर्म में 10 गुरुओं से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी तथा सिख धर्म से संबंधित अन्य तथ्य आसान भाषा में दिए गए हैं। list of 10 Sikh gurus names in order  सिख धर्म में 10 गुरुओं की क्रमानुसार सूची  1.गुरु नानक देव  इन्होंने ही सिख धर्म की स्थापना की तथा आदि ग्रंथ की रचना भी गुरु नानक देव के द्वारा की गई , इनका कार्यकाल 1469 से 15 39 ईसवी तक रहा। 2.गुरु अंगद  यह सिख धर्म के दूसरे गुरु हुए ,इनका समय 1539 से 1552 ईसवी तक रहा , गुरु अंगद को गुरुमुख लिपि के जनक के रूप में भी जाना जाता है।। 3.गुरु अमर दास यह सिख धर्म के तीसरे गुरु थे इनका कार्यकाल 1552 से 1574 ईसवी तक रहा,  गुरु अमर दास ने सिख धर्म के प्रचार प्रसार हेतु 22 गद्दीयों की स्थापना की थी। 4.गुरु रामदास   यह सिखों के चौथे गुरु थे,इन्होंने ही सन 1577 में अमृतसर नगर की स्थापना की थी तथा इनका गु

उत्तर वैदिक काल के देवता/धार्मिक जीवन

 उत्तर वैदिक काल का धार्मिक जीवन  उत्तर वैदिक काल के देवता,यज्ञ,आडंबर ,कर्मकांडऔर अंधविश्वास उत्तर वैदिक काल की धार्मिक स्थिति उत्तर वैदिककालीन आर्यों की धार्मिक स्थिति में व्यापक परिवर्तन हुए,  इस काल की धार्मिक स्थिति का अध्ययन निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से किया जा सकता है -  * यज्ञ   यज्ञ इस संस्कृति का मूल था। यज्ञ के साथ-साथ अनेकानेक अनुष्ठान व मंत्रविधियाॅ भी प्रचलित हुई।  उपनिषदों में स्पष्टतः यज्ञो तथा कर्मकांडों की निंदा की गई है ,तथा ब्रह्म की एकमात्र सत्ता स्वीकार की गई। यज्ञों में बलि का महत्व बढ़ गया था। यज्ञों में पुरोहितों की संख्या भी बढ़ गई थी। यज्ञ आम जनता की पहुँच से दूर होने लगे थे।  यज्ञ भी विभिन्न प्रकार के होने लगे थे। जैसे -  अश्वमेघ यज्ञ,  राजसूय यज्ञ,  वाजपेय यज्ञ, सौत्रामणि यज्ञ,  पुरुषमेघ यज्ञ। *उत्तर वैदिक काल के देवता - ऋग्वैदिक कालीन देवताओं की इस काल में भी पूजा होती थी, परंतु अब उनकी स्थिति में परिवर्तन आ गया था , ऋग्वैदिक कालीन प्रमुख देवता - इंद्र व वरुण आदि इस काल में प्रमुख नहीं रहे।  उत्तरवैदिक काल में प्रजापति को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हो गया

उत्तर वैदिक काल का आर्थिक जीवन- महत्वपूर्ण तथ्य एवं प्रश्न उत्तर

उत्तर वैदिक काल का आर्थिक जीवन   उत्तर वैदिक काल  में कृषि ,पशुपालन ,उद्योग एवं व्यवसाय ,व्यापार एवं वाणिज्य  ऋग्वैदिक काल की अपेक्षा उत्तर वैदिक काल में आर्यों के आर्थिक जीवन में पर्याप्त प्रगति हो गई थी। उत्तर वैदिक कालीन लोगों के आर्थिक जीवन को निम्नांकित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है , * कृषि उत्तर वैदिक काल में आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। ' शतपथ ब्राह्मण' में कृषि से संबंधित चारों क्रियाओ जुताई बुआई कटाई तथा मड़ाई का उल्लेख किया गया है।   इस ग्रंथ में 'विदेह माधव' की कथा का भी उल्लेख मिलता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि आर्य संपूर्ण गंगा घाटी में कृषि करने लगे थे। भूमि जोतने के लिए हल का प्रयोग किया जाता था। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और अच्छी फसल उगाने के लिए खाद का भी प्रयोग किया जाता था। जौ, चावल, गेहूं, उड़द, मूंग, तिल, मसूर आदि खाद्यान्न उगाए जाते थे और वर्ष में दो फसलें उत्पन्न की जाती थी।  * पशुपालन  उत्तर वैदिक काल में आर्यों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था।  हल चलाने के लिए 6 व 8 जोड़े बैल जाते जाते थे। दलदली भूमि पर हल चलाने के लिए यह प